
हम तो जब जानें ……
हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए ऐसा क्या लिख दिया होगा पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने अपनी २०१६ में लिखी किताब में जो कुछ लोग न्यायालय तक पहुंचे और गुहार लगाईं कि वो विषय-वास्तु इस किताब से निकाल दी जाए और फिर मामला उच्च-न्यायालय तक पहुँच गया ! राष्ट्रपति भवन में बैठ कर लिखी इस पुस्तक में उन्होंने न जाने हिन्दुओं से ऐसा क्या कह दिया ….जो ….
वो तो स्वयं भी हिन्दू है !
अपनी बात कहूँ तो मैंने राष्ट्रपति भवन को थोडा पास से और थोडा दूर से देखा है . कई बार तो मेरा मन भी हुआ था कि …इस भव्य राष्ट्रपति भवन के बारे में भी दो चार फाहिस-फिकरे लिखूं और इस की महानता का वर्णन कर कुछ खोज लूं ….कुछ पा लूं …जैसे कि मेरे जैसे कुछ लोगों ने ‘पदम् श्री’ पा लिया है और अब वो साल में एक बार राष्ट्रपति भवन में जा कर दावत उड़ा आते हैं …राष्ट्रपति महोदय से मिल आते हैं ….उन के साथ चित्र खिंचवा कर साल की रोज़ी-रोटी निकाल लेते हैं ….और …..
बहुत आसान तरीका है …अगर आप को आए – तब ! आप को सुहाए तब – यह एक स्तर की जिन्दगी जीने का नायाब तरीका है !!
लेकिन मैं चाह कर भी इस विचार के पीछे कभी गया ही नहीं . मैं जब भी वहां गया – मैंने वहां जाते ही कुछ ऐसा देखा,सुना और पाया कि ….मेरा संस्कारी हिन्दू मन बिदक गया . उदाहरण के लिए लें तो ….’मुग़ल गार्डन’ का नाम जैसे ही मैंने सुना था और …उस भव्य-बगीचे को देखा था …पहली-पहली बार , तो मैं चौंक पड़ा था . आज़ाद भारत में ये ‘मुग़ल गार्डन’ क्यों …? यहाँ तो अंग्रेज भी रह कर चले गए ….फिर ये मुग़ल क्यों नहीं गए ….? राष्ट्रपति भवन के इस इतने विशाल बगीचे का नाम …’अग्रसेन उद्यान’ ही रख लेते तो क्या बुरा था …? मुग़लों के प्रस्थान के बाद भी उन्हें …यहाँ बसाए रखने में कौन सी तुक थी …? हमारे ही किसी पुरखे को यहाँ जगह मिल जाती तो ….
अरे, हाँ ! यहाँ प्रश्न पूछना तो बिलकुल ही मना है ! राष्ट्रपति भवन है …सो तो है …! और जो यहाँ है …आप केवल वही देखेंगे ….!!
पर मैं क्या करूं …? दूसरी बार जब फिर इत्तफाक हुआ यहाँ आने का ..तो मैंने निगाह उठा कर देखा कि …दीवारों पर उन लोगों के विशाल तेल-चित्र टंगे हैं ….जिन्होंने हमारे ऊपर हुकूमत की ….हमें हंटरों से पिटवाया …गुलाम बनाया …और जाते-जाते हमें बाँट कर बर्वाद कर गए ! ये लोग यहाँ क्यों थे …? क्या कर रहे थे , ये …?
प्रश्न भुलाने की कोशिश में मैं खान-पान में जा उलझा ! लेकिन यहाँ भी वही पराया ढर्रा …! अपना कहीं कुछ नहीं !! रहन-सहन पर निगाह दौड़ाई तो …निपट निराशा हुई . गुलामी के तुर्रे पहने …अपने ही लोग नज़र आए ! वही साहिब और मुसाहिब का भेद-भाव ….जो वो दे गए थे …! वही हवा तो थी – जो जब चला कराती थी ….! हमारा अपना तो यहाँ बाल तक दिखाई नहीं दिया ….? देशी नाम की चिड़िया तो …किसी भी डाल पर बैठी निगाह नहीं पड़ी …
लेकिन मेरी तो तलाश जारी थी ! अब मेरी जिद थी कि मैं वहां ….किसी अपने छोटे-मोटे देवी-देवता के मंदिर को ही खोज लूं . मैं छटपटाने लगा था – यह पाने के लिए कि ….शायद हमारे विश्व के दो महानायक- राम-कृष्ण में से ही कोई किसी कौने में खड़ा या पड़ा मिल जाए …? फिर मैं यह तलाशने लगा था कि शायद हमारे किसी पूर्व राष्ट्रपति ने यहाँ आ कर कोई हवन -यज्ञ रचाया हो …? कोई हनुमान-चालीसा का कभी पाठ हुआ हो …? या कि कभी कोई रामायण जी की स्तुति की गई हो …? नहीं , जी ! मुझे तो कोई ऐसा चिन्ह तक नहीं मिला ! और न कोई वैसी सूचना ही प्राप्त हुई . अपितु पूछने पर उल्टा ही मुझे शाकिय निगाहों से देखा जाने लगा !
हाँ,हाँ …! शाही …रॉयल ….राजकीय …भव्य …महान …बे-मिशाल …बे-जोड़ …वो सब तो वहां मौजूद था ! और वो पद-चिन्ह भी वहां थे – जो हमारे कभी थे ही नहीं ! विचार धारा …वह बहती विचार धारा …भी हमारी नहीं थी . और वहां रहते राष्ट्रपति भी शायद हमारे न थे ….उन के ही एवजी थे !
हमारा तो कोई इक्का-दुक्का दुखिया वहां ज़रूरत के लिए पुकार-गुहार के लिए गया मिला था जिसे कोई सनद-सर्टिफिकेट लेना था . बाकी सब तो बेगाने ही थे !
आज सब साफ़-साफ़ समझ में आ रहा है !
पूर्व राष्ट्रपति महामना श्री प्रणव मुखेर्जी का सामना राष्ट्रपति भवन में घुसते ही इन यहाँ के स्थाई वाशिंदों से हुआ होगा जो हमारी गरीबी ,गुलामी ,अशिक्षा और अनैतिकता के लिए जिम्मेदार है और मैं जानता हूँ कि वो ज़रूर-ज़रूर इन सब से बारी-बारी लडे होंगे ! पर कब तक …? पांच साल का समय कोई कम नहीं होता ! और ये रोज़-रोज़ की लड़ाई तोडती है , आदमी को !! अंत में वो भूल ही गए होंगे कि वो हिन्दू हैं ….मान गए होंगे कि …बाहर देश में रहते लोग अपनी होती दुर्दशा के लिए स्वयं ही जिम्मेदार है . और क्रोध में आ कर उन्होंने हिन्दुओं की भावनाओं के खिलाफ लिख डाला होगा कि ….
और मैं भी दाबे के साथ कह सकता हूँ कि …आप में से जो चाहे वो राष्ट्रपति बन जाए …..पांच साल के लम्बे अंतराल के बाद वो भी भूल ही जाएगा कि वो हिन्दू है …और न ही वो मानेगा कि ….बहार सडकों पर बैठी ये बे-रोजगारी उस के कारण है ….या कि …देश की दुर्दशा के लिए कोई और नहीं – वही जिम्मेदार है !
किताब लिखने से क्या होता है ….? लोगों का आभार न मान कर उन्हें बद-दुआएं देने से कोई फायदा ?
हाँ ….! वहां भीतर के बसे उस असोच को कोई राष्ट्रपति तोड़े तो जानें ….? हवन -यज्ञ की पहली समिधा जला कर ऐसी सुगंध से भरदे राष्ट्रपति भवन को ….ताकि हिन्दुओं के पितर वहां आ कर बस जाएं- तो मानें ! हम तो जब जानें ….राष्ट्रपति जी ….तब …..
………………
श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!