रानी को इसी जगह दफनाया गया है। रानी की मौत मेरे सामने हुई। या यों कहें कि हमारी मौत साथ साथ हुई। रानी के मरने के बाद मुझे जीने के अहसास कब हो पाये हैं। रानी थी तो जीवन था और जीने जैसा सब था। परेड़ .. ड्रिल .. पनिशमेंट और इंस्पैकशन। रानी मेरा कर्म क्षेत्र थी .. मेरा लक्ष्य थी और एक कभी ना सूखने वाला प्रेरणा स्रोत भी। जी हॉं! रानी मेरा अजस्र प्रेरणा स्रोत थी। अगर आप भी चाहें तो रानी के जीवन से प्ररणा ले सकते हैं।

रानी का जीवन एक सपाट जीवन नहीं था, जो आम खच्चर जी लिया करती हैं। बैटरी की तमाम खच्चरों के बीच मेरी रानी अलग से ही नजर आया करती थी। बादामी रंग था रानी का। कद कोई पौने पॉंच फुट और कमर तीन गिठ चौड़ी थी। रानी के लिये सैडिलरी भी खास ऑडर देकर तैयार कराई गई थी। जब भी कोई इंस्पैकशन होता, रानी को ही पहले दिखाया जाता और तब ..।

“हैलो बेबी!” रानी की चिकनी पींठ पर हाथ फिराते हुए इंस्पैक्टिंग ऑफिसर ने दुलारना चाहा था उसे, “यू आर ब्यूटिफुल!” उन्होने रानी की प्रसंशा की थी।

“धडाक! धडाक!” रानी ने मुडकर जो दुल्त्ती मारी कि बेचारे इंस्पैक्टिंग ऑफिसर का हुलिया ही पिचका दिया।

‘हो-हो’ की हँसी लोगों के होठों में भिची रह गई थी। अन्य खच्चरें हिनहिना कर न जाने रानी से क्या-क्या कह रही थीं। एक तरह का कोहराम छा गया था। पूरे अस्तबल में एक शॉक वेव जैसी निकल गई थी। रानी की ओर जब बैटरी कमांडर ने अग्नेय नेत्रों से आग की चिंगारियॉं निकाल उसे जलाने का भागी थीं तो मन हुआ था कि बीच में लक्ष्मण बन में उसे आती शक्ती को में अपने सीने पर ओट लूँ, पर क्या करता! रानी को पनिशमेंट मिला। मैने स्वयं ही बालू की भरी बोरियॉं रानी पर लादकर उसका पसीना निकाला। सप्ताहों तक भी पूछने पर कहता “साहब! बड़ी ही बहादुर खच्चर है। ये तो मेहरबानी मच्छरों की हुई, जो ऐन उसी वक्त रानी से लड़ गये और उसे क्रोधित कर दिया वरना रानी ..।”

हॉं! रानी बहादुर थी। मुझे लड़ाई का वो दृष्य आज भी याद है जब मैं, रानी और हमारी ओ पी पार्टी दुश्मन के घेरे में आ गये थे। लांगला पास के ऊपर राजा टेकरी पर हमारा ओ. पी. पोस्ट था। इस पोस्ट की ऊँचाई करीब 18000 फीट है और यहॉं से सामने हथेली सी पसरी घाटी में एक एक पेड़ नजर आता है। दुश्मन की छोटी हरकत भी हम लोग देख लिया करते ओर ..।

“आरगेट जी एफ ..! दुश्मन की कॉनवाई ..! टारगेट नम्बर .. वन जीरो राऊन्डस गन फायर ..!” कैप्टन कौशल दुश्मन की गाड़ियॉं देखते ही अपनी तोपों को हुकुम दाग देते।

जब तोपों के गोले तड़ातड़ दुश्मन की गाडियों के गिर्द फूटते तो गजब हो जाता। घबराए तिलचट्टों की तरह दुश्मन की गाड़ियॉं इधर उधर कलवटों के सायों की ओर दौड़तीं। गाड़ियों में सवार दुश्मन जमीन पर लेट धूल चाटने लगता। हम उन ध्वस्त होती गाड़ियों और घायलों की चीख-चिल्लाहटें सुन-सुनकर उल्लसित होते। रानी एक अजीब सी चंचलता से भर आया करती। हिनहिनाती हुई जब वो मुझे चाटने लगती तो इसका मतलब होता था – रानी अपनी खुशी जाहिर कर रही थी।

हमने इस ओ. पी. पोस्ट पर पोजीशन लेकर दुश्मन के हमले की तमाम तैयारियॉं बेकार कर दी थीं। हमारे यहॉं रहते हुए ये संभव ही न था कि दुश्मन के फौजी दस्ते आगे बढ़ आयें। चाहे दिन हो या रात, अंधेरा हो या उजाला, कोहरा छाया हो या बरफ गिर रही हो, हम ऑंखों पर दूरबीन लगाये निरंतर सामने की घाटी पर कुहासे के पड़े घूंघट के उस पार कानी ऑंख से देखते ही रहते।

दुश्मन ने एक दिन आगे बढ़ने का विकल्प खोज ही लिया। हमारी पोस्ट पर पीछे से हमला हुआ। आक्रमण के साथ साथ दुश्मन के तोपखाने का इतना भयंकर फायर आया कि हमारे बनाये बंकरों में दरारें पड़ गईं। इससे पहले कि हम संभलते और अपने तोपखाने से फायर करते, दुश्मन हमारे सरों पर आ खड़ा हुआ। फिर भी कैप्टन कौशल ने कमाल कर दिखाया। अपनी ही पोस्ट पर गोले बरसाकर दुश्मन को हताहत किया। लेकिन .. वह दुर्भाग्य पूर्ण धमाका .. जो कैप्टन कौशल के ओ. पी. बंकर में हुआ, मैं कभी भूल नहीं सकता। कप्तान साहब का शरीर गोले के फटने से टुकड़े टुकड़े हो गया था। एक टैकनिकल असिस्टेंट और एक वायरलैस औपरेटर की जान भी साथ में गई। मैं और रानी तथा दूसरे औपरेटर रतीराम मौत को मंजूर न हुए। शायद हमारे भाग्य में वह मोक्ष न बदा था। सीधा स्वर्ग जाना शायद हमारे नसीब में न था।

बदनसीबों की तरह हम सब पकड़े गये। दुश्मन हम सबको बैल- गायों की तरह हांक कर ले गया। साथ चलते हुए मैंने रानी की ऑंखों में देखा था। एक विषाद वितृष्णा और घोर ग्लानी के भाव थे रानी की ऑंखों में। मुझे लग रहा था – रानी अब दुलत्तियॉं मारेगी .. रानी जरूर विद्रोह करेगी ..। रानी ..। शायद रानी को अब भी मेरे आदेश का इंतजार था, लेकिन मैं भी किसी सही और स्वस्थ मौके की तलाश में था। मैं भी चाहता था कि अंधेरा तनिक और भी गहरा हो जाय। दुश्मन की ऑंखों में धोखे का खंजर भोंके बिना कामयाबी नसीब ही कहॉं होती है!

लेकिन रानी को ये सब मंजूर न था। जब मैं चुप रहा और मैंने उसकी ओर से ऑंखें ही फेर लीं तो रानी ने अपना अमोघ अस्त्र इस्तेमाल किया। खड़ाक-खड़ाक। खटाक-खटाक। खट-खट-खट! दुलत्तियां झाड़ने के बाद रानी अब भागी जा रही थी। दुश्मन के तीन सैनिकों के दांत तोड़े थे रानी ने। एक के घुटने में भारी जख्म आया था। बचे दो रानी को पकड़ने उसके पीछे भागे। कारण् कि रानी के ऊपर इन सैनिकों ने अपने वायरलैस सैट और लड़ाई का अन्य सामान लादा हुआ था और अब रानी उनका ये सब माल असबाब लेकर भागी जा रही थी।

रानी द्वारा घायल सैनिकों को घाव सेंकते छोड़ हम भी आहिस्ता से हुए हंगामे की आड़ ले भाग छूटे। मेरे मन में रानी के लिये इज्जत, प्यार और वात्सल्य के भाव भरे थे। मैं अब निडर था .. नीशंक हो आगे बढ़ रहा था .. और अपने साथियों को रानी के बारे में बता रहा था। रानी हमारी गुमराह टोली का पथ-प्रदर्शक बन हमारे मनों में देश -प्रेम और सच्चे साहस का स्रोत उगाती रही। चौबीस दिनों की वो कठिन यात्रा, जो हमने नंगे पैरों, भूके पेटों और फटे कपड़ों से तय की। सब रानी की ही बदौलत थी वरना ..।

लौटने पर मेरा और रानी की फिर से मुलाकात हुई। मैं अस्पताल से एक माह के बाद लौटा था। रती राम गेंगरीन रोग होने के बाद मर चुका था, लेकिन मैं जिन्दा था .. शायद रानी के लिये .. या कहूँ कि रानी के ही भाग्य से। रानी की ऑंखों को मैंने पहली बार नम होते देखा था। मैंने रानी के गले से लिपटकर उसे प्यार किया, उसे चूमा, पुचकारा और उसके बादामी बदन पर हाथ फिराया। रानी ने जब हिन हिन की जो लगा, उसने मुझे स्वीकार लिया है, फिर से अपना पथ-प्रदर्शक और चालक मउन लिया है; लेकिन मैंने भी इस घटना के बाद कभी रानी को एक खच्चर नहीं माना। वह एक सच्चा सैनिक थी।

देश-प्रेम, देश-भक्ति और साहस-शौर्य के लिए रानी मरी गुरू बनी। रानी को वीर चक्र प्राप्त हुआ। रानी की साख पल्टन में एक सूरमा की साख थी। जो भी पल्टन में वी. आई. पी. आता रानी से बिना मिले न जाता।

भारतीय तोपखाने की पहली खच्चर थी रानी जो दुश्मन के चंगुल से भागकर आई थी और प्रमाण के लिये उनका एक वायरलैस सैट, एक ओवरकोट तथा तीन दुरबीनें साथ लाई थी। इस लूट के सामान को सजा-संभालकर पल्टन के रिक्रिएशन रूम में रख दिया गया था। अब एक मैं ही नहीं था, जो रानी के इस साहसिक कथन से प्ररणा लेता था – पल्टन के अनेक लोग इसमें शामिल थे।

मेरे और रानी के पूर्व अनुभव के अनुसार फिर से हमें सन् पैंसठ की लड़ाई में जी. पी. पर जाने के आदेश मिले। छम्ब सैक्टर में घमासान युद्ध चल रहा था। हमले पर हमले हो रहे थे। छीना झपटी की होड़ लगी थी। देश-भक्त देश-प्रेम के नारे लगा-लगाकर कुरबानियॉं दे रहे थे। मैं और रानी फिर से किसी बेहतरीन मौके की तलाश में थे।

ये मौका हमें तब मिला जब फिर से हमें कैप्टिन अमरजोत साहब के साथ आक्रमण में जाने का आदेश मिला। अंधेरी रात में छाती-छाती नाला पार कर हम लोग पीछे से पहाड़ी चढ़ रहे थे। चोरों की तरह सांस साध हम लोग दुश्मन को उबासियां लेते पकड़ लेना चाहते थे। ऑब्जैक्टिव हमें नजर आने लगा था। सैनिकों ने साइफलों में गोलियां भर उंगलियों को ट्रैगर पर धरा हुआ था। अचानक मेरा अनुसरण करती रानी कूदने लगी थी। रानी पर वायरलैस सैट, टेलीफोन का तार, मोर्चा खोदने के हथियार और थोड़ा बहुत राशन लदा हुआ था। मैंने रानी को पुचकार कर शांत करने की कोशिश की, लेकिन रानी ने मेरी एक न सुनी।

रानी कूदकर मेरे सामने आ गई। इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता, एक जारदार धमाका हुआ। मैं पल-भर के लिए अंधा हो गया, लेकिन उस अंधेपन से पहले मैंने देखा था कि रानी टुकड़ों-टुकड़ों में विभक्त हो जमीन पर बिखर चुकी है। वायरलैस सैट, टेलीफोन का तार और राशन कपड़े सब वहीं बिखरे पड़े थे। मैं हक्का-बक्का हुआ उस दृष्य को देख ही रहा था कि दुश्मन ने हमारे ऊपर फायर खोल दिया। हम दुश्मन के माइन फील्ड के किनारे पर खड़े थे। न जाने कैसे रानी को इस माइन फील्ड का आभास हुआ था और उसने अपनी जान झोंककर हम सबकी जानें बचा ली थीं।

मेजर राना ने सीधा हमला किया। कम्पनी हल्ला बोलकर ऑब्जैक्टिव पर जा चढ़ी। बहुत सारी जानें गईं। मैं जख्मी हुआ, लेकिन मौत मुझे फिर से छोड़कर लौट गई। लेकिन रानी ..।

यही तो वो जीता हुआ पोस्ट है। यहॉं पर ही रानी को दफनाया गया। लगता है, जैसे मैंने भी अपना सबकुछ रानी के साथ ही दफन कर दिया हो। जब भी रानी की याद में आंखें सजल हो आती हैं, मैं उसकी कब्र पर लगे इस पत्थर को पढ़ कर हंस लिया करता हूँ।

कब्र पर लिखा है – रानी – जिसने खच्चर होते हुए वीरचक्र प्राप्त कर एक ऐतिहासिक घटना को जन्म दिया और अपने जीवनकाल में छ: सीनियर ऑफिसर, पन्द्रह मेजर, तीस कैप्टिन और करीबन दो सौ सिपाहियों को दुलत्तियां झाड़ीं, इस कब्र में जलती मशाल की तरह जिंदा है – जिंदा रहेगी।

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