नई उमंग के साथ आज कालू घर से व्यापार के लिए निकला था।

भोंदू – नया नौकर रेहड़ी खींच रहा था। पुराना नौकर राम चरन आ कर सर्विस संभालेगा वह जानता था। उसने व्यापार को आगे बढ़ाना था। कारण – अरुण वरुण का एडमीशन था। अंग्रेजी पढ़ लिख कर अरुण वरुण का कलक्टर बनना भी जैसे तय था। उस हाल में कालू को भी एक सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए था, उसने महसूस किया था।

श्यामल सज-वज कर घर से निकली थी। उसे मेरी एंड जॉन्स स्कूल का पता था। वह जानती थी कि मंगी की मेहरबानी से अरुण वरुण का एडमीशन होना तय था। वह आज पहली बार ही किसी स्कूल की चौखट लांघने वाली थी। अब तक तो उसने दूर से ही स्कूलों को देखा था। लेकिन आज ..?

“अरुण वरुण कलक्टर बन जाएंगे तब तो ..” श्यामल के दिमाग में मात्र विचार उमंगें भर रहा था। “बड़े आदमी हो जाएंगे – कालू?” उसे अहसास हुआ था। “नहीं-नहीं! कालू नहीं तब तो ये कलीराम होंगे!” विहंस कर श्यामल ने कालू का अचानक ही ओहदा बढ़ा दिया था।

घर का खाना – मशहूर होने लगा था। मनचले लोग रुटीन में खाना खाने रेहड़ी पर आने लगे थे। राम चरन भी कमाल का आदमी निकला था। बड़ी सफाई से थालियों में खाना परोसता था और ग्राहकों को निपटाता ही चला जाता था। भोंदू झूठी थालियां धो-धो कर अंबार लगा देता था तो कालू का मन बाग-बाग हो जाता था। स्टूल पर अलग बैठा कालू पैसे का हिसाब रखता था। वह अब मालिक था।

“अरुण वरुण अंग्रेजी पढ़ कर अब कलक्टर बनेंगे!” कालू का मन हुआ था कि वो राम चरन को भी यह खबर देगा। “तब हम लोग ..” वह आगे का कुछ सोचने लगा था।

“नहीं-नहीं!” कालू के दिमाग ने ही उसे टोका था। “राम चरन हमारा नौकर है!” चेताया था उसे दिमाग ने। “नौकरों से इस तरह की भेद भरी बातें नहीं किया करते!” कालू के लिए ये उपदेश था। “बड़ा बनना है तो नौकरों से एक फासला रखना ही होगा!”

अचानक उसे श्यामल याद हो आई थी।

श्यामल स्कूल गई होगी – वह जानता था। उसे उम्मीद थी कि मंगी एडमीशन अवश्य करा देगी। गांव घर के लोग मदद कर ही देते हैं – कालू को हर्ष हुआ था।

शाम को घर लौटते वक्त कालू ने मंदिर के सामने भोंदू को रेहड़ी रोकने को कहा था। राम चरन के साथ वह मंदिर जा रहा था। पंडित कमल किशोर ने उन दोनों को साथ-साथ आते देखा था तो सन्न रह गए थे। अब ये राम चरन को ले जाएगा – पंडित जी ने ताड़ लिया था। कितने जतन से रक्खा था राम चरन को लेकिन अब इस कालू से कैसे बचाते?

“प्रणाम पंडित जी!” कालू ने विनम्र भाव से पंडित जी के पैर छूए थे तो उन्होंने उसके मस्तक पर चंदन का तिलक लगा दिया था।

राम चरन मंदिर में अंदर चला गया था। कालू ने नजर भर कर ढोलू शिव की प्रतिमा को देखा था। अचानक ही उसका मन प्राण श्रद्धा से भर आया था। उसने शिव के सामने आ कर दंडवत प्रणाम किया था और मन ही मन शिव से मांगा था कि अरुण वरुण का एडमीशन मेरी एंड जॉन्स में करा दें।

“मैं .. मैं आपकी पूजा करूंगा! दूध से नहलाऊंगा! बेल पत्र चढ़ाऊंगा और .. और एडमीशन होने पर मैं और श्यामल दर्शन करने आएंगे और तब हम दोनों ..” कालू वायदे करता ही जा रहा था।

आदमी ईश्वर को तभी याद करता है जब उनसे कुछ मांगना होता है – या कि कोई विपदा आ कर घेर लेती है! वरना तो वह अपने आप को ईश्वर से कई गुना बड़ा मान कर चलता है।

खाली हाथ लौट रहे कालू को पंडित कमल किशोर ने आभारी आंखों से देखा था। वह राम चरन को किसी भी कीमत पर खोना न चाहते थे।

राम चरन कपड़े बदल ढोलू शिव की सेवा में उपस्थित हो गया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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