“अंधे कुंए में छलांग लगाने से पहले सोच लो सुंदरी!” एक चेतावनी थी जो कार चलाते-चलाते सुंदरी के दिमाग में उठ बैठी थी।
सुंदरी ने कार में जोरों से ब्रेक मारे थे। कार खड़ी कर इंजन भी बंद कर दिया था। ताजी हवा आने के लिए शीशे खोल दिए थे। चारों ओर उगे पेड़ों की हरियाली को चूमा था। धक्का खा गए मन को तनिक सा सहलाया था। राम चरन को पल भर के लिए भूल उसने अपने विगत से बातें की थीं।
“यू आर माइन फॉर एवर!” सुंदरी ने महेंद्र के कंठ स्वरों को पहचान लिया था।
महेंद्र सच्चा प्रेमी था। महेंद्र एक आकर्षक पुरुष था। महेंद्र राज कुमार था। महेंद्र बात का धनी था। महेंद्र से शादी करने से पहले उसे ये सब पता था। लेकिन राम चरन कौन था? क्यों भागी जा रही थी वह राम चरन को पाने?
“डिबेट में तुमने जान कर मुझे जिताया। क्यों?” सुंदरी ने महेंद्र से प्रश्न पूछा था।
“इसलिए लव कि मैं नहीं चाहता कि हम फिर से द्रोपदी की तरह नारी को जूए में हार जाएं!” महेंद्र तनिक मुसकुराया था। “उसके बाद तो हम सब हारते गए और गुलाम बन गए!” महेंद्र की आवाज में एक दर्प उगा था। “राज घराने एक नाम के सिवा और हैं क्या?”
“लेकिन .. लेकिन ..” सुंदरी के भी प्रश्न थे।
“हमें फिर से वहीं पहुंचना होगा सुंदर! सच वही है – सुंदर भी वही है। नारी को हमें बराबरी पर लाना ही होगा।”
महेंद्र विचारवान व्यक्ति था – सुंदरी को याद आने लगा था। पता नहीं क्यों ईश्वर को मंजूर ही न था वरना तो महेंद्र ..
“लौट कर कहां जाऊं?” आज पहली बार सुंदरी को लगा था कि वो एक बियाबान में आ खड़ी हुई थी। महेंद्र के बिना वह निपट अकेली थी। अब कौन राह थी जहां वो ..
फोन बज उठा था। सुंदरी घबरा गई थी। न जाने कैसे उसे आभास हुआ था कि राम चरन ही था जो उसे पुकार रहा था। राम चरन किसी कीमत पर भी उसे छोड़ नहीं रहा था – छेड़ रहा था। वह उसके साथ खेलना चाहता था, उसके साथ उत्पात मचाना चाहता था और राम चरन उसके तन में उसके मन में ..
“सुधा बोल रही हूँ दीदी!” फोन पर मधुर आवाज गूंजी थी। “आ रही हो न मीटिंग में?” उसने पूछा था।
अचानक सुंदरी को भूली याद की तरह मीटिंग याद हो आई थी। कमाल ये था कि आज पहली बार वो समाज सेवक संघ की मीटिंग की तारीख भी भूल गई थी। ऐसा शायद इसलिए कि राम चरन ने उसे पागल बना दिया था।
“हां-हां! आ रही हूँ सुधा!” सुंदरी ने गहक कर कहा था। “पहुंच जाऊंगी!” उसने वायदा किया था।
समाज सेवा संघ की मीटिंग में आज सुंदरी ने भावपूर्ण भाषण दिया था।
“हमें विधवाओं और बच्चों की ओर ज्यादा ध्यान देना होगा।” वह कहती रही थी। “आज लोग विधवाओं को घर से निकाल बाहर करते हैं और बच्चों के साथ ..” खूब तालियां बजी थीं।
घर लौटते समय आज पहली बार सुंदरी को एहसास हुआ था कि वो भी तो महेंद्र की विधवा थी! अगर वह राम चरन के साथ जाती है तो भाई साहब को कैसा लगेगा? भाभी साहिबा तो शर्म के सागर में डूब मरेंगी। उसका ये आचरण अभद्र माना जाएगा! और महेंद्र .. मृत महेंद्र की आत्मा ..
“उन्नत समाज का सृजन आज की आवश्यकता है!” सुंदरी को अपने ही दिए प्रवचन याद हो आए थे। “विधवा विवाह बुरा नहीं है – बुराई को खत्म करने का एक उपचार है!” स्वीकार में सबने खूब तालियां बजाई थीं।
होते विधवा विवाहों में गूंजती शहनाइयां अचानक ही सुंदरी को सुनाई देने लगी थीं।
और राम चरन घर लौटते वक्त उसके साथ ही चला आया था। माना नहीं था और वह रात भर सपनों में उसे सताता रहा था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड