आने वाले इतवार को सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स के उद्घाटन होने की उद्घोषणा हुई थी।

समारोह को संपन्न करने की जिम्मेदारी सुंदरी और राम चरन की थी। इंद्राणी ने चीफ गैस्ट होना था, तो कुंवर साहब की उपस्थिति अनिवार्य थी। बाकी सब तो फेमस और डाई हार्ड आने थे। मुख्यतया तो कैपिटलिस्ट, डिवलपर्स, बिजनिस मैन और कस्टमर्स ने ही आना था। प्रेस को भी बुलाया था ताकि कॉम्पलैक्स की पब्लिसिटी ठीक से हो और खरीददार भारी संख्या में आएं।

सुंदरी और राम चरन ने सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स का जमीन पर जा कर जायजा लिया था।

प्रथम दृष्टया सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स उन्हें धरती पर उतर आया स्वर्ग समान कोई संसार लगा था। वहां सब कुछ था। वहां हर सुविधा थी। वहां एक नए ढंग से रहने खाने का निमंत्रण था, जो बे मामूल दामों पर उपलब्ध था।

ढोलू इनक्लेव में रहने के लिए फ्लैट्स बने थे। देखते ही बनता था – उनका आकर्षक डिजाइन जो एक बेजोड़ रचना थी। देखते ही मन प्रसन्न हो जाता था। और रहने का मन बन जाता था। इससे भी ज्यादा उम्दा था ढोलू सिने कॉम्पलैक्स। रंगारंग कार्यक्रमों के लिए एक बेहद उम्दा वातावरण मोहिया कराया गया था। शॉपिंग सेंटर से लेकर स्टेडियम और क्लब कॉम्पलैक्स भी बनाया गया था। झील के किनारे और दोनों ओर आधुनिक बगीचों का निर्माण किया गया था।

इस नए नवेले, नूतन सनातन पार्क को सुंदरी ने बड़े चाव से देखा था।

“ये .. ये ऑफिस कॉम्पलैक्स मेरे लिए रहा, चन्नी।” सुंदरी ने चुप्पी तोड़ी थी। “हमारा नारी शक्ति का जमावड़ा यहीं जमा करेगा।” सुंदरी खुल कर हंसी थी।

“लेडीज फर्स्ट – यू मीन ..?” राम चरन ने परिहास किया था। दोनों साथ-साथ खूब हंसे थे।

समारोह का शुभारंभ पंडित कमल किशोर ने हवन पूजन से प्रारंभ किया था।

हवन पर सुंदरी, राम चरन, इंद्राणी और कुंवर खम्मन सिंह ढोलू बैठे थे। मुख्य आहुतियां सुंदरी और राम चरन ने ही दी थीं। तय था कि वही दोनों अब ढोलू स्टेट के मालिक थे।

कुंवर साहब ने सभा आरंभ होने पर पहली घोषणा की थी।

“सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स के ढोलू इनक्लेव का फ्लैट नम्बर एक पंडित कमल किशोर जी को भेंट में दिया जाता है।” कुंवर साहब ने घोषणा की थी। “आइए पंडित जी!” उन्होंने आदर पूर्वक आग्रह किया था।

पंडित कमल किशोर ने फ्लैट नम्बर एक की फाइल ग्रहण की थी तो जम कर तालियां बजी थीं। पंडित कमल किशोर भेंट देते राम चरन के आभार के नीचे दब से गए थे। उन्हें राम चरन आज एक दिव्य पुरुष दिखा था। वह राम चरन की दी सेवाएं भी भूले न थे।

यह सर्व विदित हो गया था कि सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स के सी ई ओ और एग्जिक्यूटिव ऑफीसर राम चरन ही नियुक्त हुए थे।

सभी मुख्य अतिथियों ने अपने-अपने ढंग से राम चरन का स्वागत किया था और भेंट प्रदान किए थे, जिन्हें सुंदरी स्वयं ही समेटती रही थी।

राम चरन के भीतर एक अजीब किस्म का तूफान भरने लगा था।

“आपने धर्म परिवर्तन क्यों किया था, दादू?” राम चरन जोरावर से पूछ बैठा था। “हिन्दू होना तो एक गर्व की बात है। इतना उदार .. इतना भोला .. दयालु और दीन दयाल तो हिन्दू ही हो सकता है। हिन्दू को कोई नहीं हरा सकता। हिन्दू तो अपनी ही मौत मरता है!”

“बहको मत बेटे!” ये वही आवाज थी जो राम चरन ने भवानी संग्रहालय में सुनी थी। “मेरा और तुम्हारा मिशन अब एक है।”

और जोरावर फरीद खान जलाल बन इस्लाम का परचम थामे राम चरन के आगे-आगे चल पड़ा था।

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मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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