पहली बार ही राम चरन ने पंडित कमल किशोर को इतना हैरान परेशान देखा था।
“क्या हुआ गुरु जी?” राम चरन ने बड़े ही आत्मीय ढंग से पूछा था। “खैरियत तो है?” उसने जानना चाहा था।
पंडित कमल किशोर चुप थे। कुछ बोल ही न पा रहे थे। एक सदमा उनके चेहरे पर विराजमान था। वह बहुत हारे-हारे लग रहे थे। कुछ अघटनीय घट गया था – राम चरन ताड़ गया था।
“क्या मैं कुछ मदद कर सकता हूँ?” राम चरन ने सहमते हुए पूछा था।
“अब तो ढोलू शिव भी मदद नहीं कर सकते राम चरन!” पंडित जी आहिस्ता से बोले थे। “जो होना था – हो लिया!” पंडित जी रुआंसे हो आए थे। “सौभाग्य था कि कॉनवेंट में एडमीशन मिल गया था .. और ..” पंडित जी का गला रुंध गया था। “राजेश्वरी बच जाए तभी है!” पंडित जी टीस आए थे। “संतान सुख ..” बेबस होते जा रहे थे पंडित कमल किशोर।
“क्या हुआ संतान को?” राम चरन ने हिम्मत जुटा कर पूछा था।
“सुमेद ने कांड कर दिया है!”
“कैसा कांड?”
“हैडली के ऑफिस में उसके मुंह पर कहा – तुम गद्दार हो! देश द्रोही हो! जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो! देश तो हमारा है – तुम होते कौन हो?” रुके थे पंडित जी। उन्होंने आंख उठा कर राम चरन को देखा था। राम चरन का चेहरा भी बुझ गया था। “रेस्टीकेट नहीं करता तो क्या करता हैडली?” रो पड़े थे पंडित जी।
“कौन सिखाता है – इन बच्चों को ये सब?” राम चरन ने पूछा था।
“ये .. ये .. आर एस एस वाले ही हैं।” पंडित कमल किशोर अब रोष में थे। “ये ही करते हैं – हिन्दू मुसलमान – सिख ईसाई .. और”
“लेकिन देश तो सब का है?” राम चरन ने जोर देकर कहा था। “हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ..?”
“कहते हैं – पर कोई नहीं है भाई-भाई!” गरजे थे पंडित कमल किशोर। “मुसलमान गजवाए हिन्द चला रहे हैं, तो ईसाई कॉन्वेंट को लेकर बैठे हैं! सिक्खों को भी खालिस्तान चाहिए!” बिफर पड़े थे पंडित जी। “पता नहीं ..” उन्होंने राम चरन से जैसे संधि कराने की गुहार लगाई थी। “सब ठीक-ठाक ही चल रहा था .. पर ..” पंडित जी बड़बड़ाने लगे थे।
पहली बार ही था जब राम चरन दहला गया था। सुमेद की उम्र ही क्या थी? लेकिन जो उसने किया था वो तो आश्चर्यजनक ही था। बात बच्चों तक पहुंच चुकी थी तो इसका तो अर्थ ही अलग था।
“अब क्या करेगा सुमेद?” राम चरन ने एक चालाक प्रश्न पूछ लिया था।
“कहता है मंदिर में ही काम करेगा। गीता प्रवचन से आरम्भ करेगा और देश समाज को जगाएगा! बताएगा कि ये मिशनरी और मुसलमान किसी के भी सगे नहीं हैं। ये लोग हमारे अपने नहीं हैं – दुश्मन हैं, आक्रमणकारी थे और आज भी हैं। और न जाने क्या-क्या अंट संट बकता है!”
“पागल तो नहीं हो गया?” राम चरन का आखिरी प्रश्न था।
“शक तो मुझे भी लगता है!” पंडित जी ने राम चरन को खुश कर दिया था। “चिंता अब मुझे राजेश्वरी की है भाई!”
राम चरन की नींद एक बार फिर उड़ गई थी। वह तो सफलता के सोपान चढ़ चुका था। लेकिन यहां तो सूरज पश्चिम दिशा से उग आया था।
“इससे पहले कि हिन्दू जागें ..” राम चरन दूर से आती आवाजें सुनने लगा था। “वी स्ट्राइक हार्ड!” उसे कमांड मिल चुकी थी।
“कैरी ऑन रिगार्डलैस ..!” राम चरन ने अपने परम प्रिय जुमले को दोहराया था। “डॉन्ट लुक बैक!” उसने स्वयं को आदेश दिया था।
राम चरन अपने मंजिल के मुंह पर आ बैठा था।
“सुंदरी कहां होगी?” राम चरन का हारा थका मन मौजों की ओर मुड़ गया था। “लैट मी इंजॉय दी बैड लक!” वह तनिक सा मुसकुराया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड