“कल रात खाने पर बुलाया है, भाभी जी ने!” सुंदरी ने राम चरन को संदेश दिया था।
दोनों ने पलट कर एक दूसरे को आंखों में देखा था।
खुशियों के चिराग जल उठे थे चारों ओर। उन दोनों के अंतर्मन एकाएक प्रज्वलित हो उठे थे। घोर निराशा के बीचों बीच आशा का सूरज यों उगा था – मानो ढोलू शिव ने वरदान दिया हो। राम चरन न चाहते हुए भी कभी-कभी ढोलू शिव का आभारी हुआ लगता था। करिश्मा होते थे वह मानता था, लेकिन आज जैसा करिश्मा तो ..
सुंदरी आज अतिरिक्त उत्साह के साथ अपनी मां तुल्य भाभी जी की आभारी थी। उसे इंद्राणी ने कभी मां का अभाव महसूस नहीं होने दिया था। और आज का आया संदेश तो सुंदरी को जीवनदान से कम न लगा था। अगर राम चरन उसे मिल जाता है तो ..
तो वह ढोलू सराय की महारानी बनेगी। उसकी वंश बेल चलेगी और ढोलू वंश डूबने से बच जाएगा।
और राम चरन के लिए तो इससे बड़ी और कोई खुशखबरी हो ही नहीं सकती थी।
राम चरन ने अनायास ही ढोलू सराय के किले पर इसलाम के परचम को फहराते देख लिया था। और उसने देख लिया था कि .. फिर लाल किला भी था कितनी दूर? यों एक सदियों से देखा सपना एकाएक साकार हो जाएगा – उसे अभी भी विश्वास न हो रहा था।
चारों ओर हिन्दुस्तान की सरजमीन पर उसने मुसलमानों के मकबरे, मजारें, गुंबद और खंडित किलों को भीगी पलकों के पार से देखा था। वो आए थे और लड़ते-लड़ते खेत रहे थे, लेकिन न हिन्दुओं को मिटा पाए न सनातन को। लेकिन आज .. शायद अब वो वक्त आने वाला था जब वह स्वयं हिन्दुस्तान का प्रथम सम्राट बनेगा .. और
अजब-गजब सपना था। राम चरन मानता था कि आदमी चाहे कितने भी बड़े से बड़े मंसूबे बना ले – अल्लाह उसकी मदद अवश्य करता है। सच के साथ सामर्थ्य जुड़ी होती है और वो आ जाती है बशर्ते कि आप अपनी मांग के प्रति सच्चे और ईमानदार हों।
“मैंने ग्रे सूट और पिंक टाई तैयार करा दी है – रात के डिनर के लिए।” सुंदरी ने राम चरन के पास आकर मधुर वचन बोले थे।
राम चरन उल्लसित हुआ था। राम चरन की परम प्रसन्नता ने आ कर पहली बार उसकी बांह गही थी। जीवन भर भटकने के बाद आज उसे अपनी मंजिल दिख रही थी।
“तुम क्या पहनोगी?” राम चरन आज पहली बार भावुक था। उसे आज सुंदरी पर स्नेह हो आया था।
“तुम बोलो!” सुंदरी ने पलट कर राम चरन से प्रश्न किया था। “आज तो तुम्हारी चॉइस चलेगी।” उसने प्रस्ताव सामने रख दिया था।
“महेन्द्र के लिए जो साड़ी पहनी थी – वो ..!” राम चरन ने सुंदरी को चौंका दिया था। ताकि उसकी मांग खारिज न हो जाए!
सुंदरी अचानक ही पलटी थी। अचानक ही महेन्द्र उसके सामने आ खड़ा हुआ था। अब प्रश्न पूछता महेंद्र बेहद प्रासंगिक हो उठा था। सुंदरी को अपना वायदा एक बार फिर से याद हो आया था। अमर प्रेम की सौगंध उठाते वो दोनों ..
“ये क्या मांग लिया चन्नी?” सुंदरी का आवाज आद्र हो आई थी।
“अपना हक ही तो मांगा है, बेगम!” राम चरन की आवाज अति आत्मीय थी।
लेकिन सुंदरी जैसे बुझ गई थी।
महेन्द्र अभी भी जिंदा था – और कहीं सही सलामत उसके जेहन में बैठा था। वह नहीं चाहता था कि कोई घुसपैठिया उसके सुराज में सेंध लगाए। लेकिन सुंदरी के लिए ये एक ऐसी विडंबना थी जो किसी भी सती नारी के लिए अवांछित थी। लेकिन क्या करती वह? उसका मन तो राम चरन के लिए ही बावला हो गया था।
“चलो मान लिया!” सुंदरी ने हंस कर राम चरन का आग्रह स्वीकार लिया था।
ढोलू वंश को एक पुरुष की आवश्यकता है – ढोलू शिव सुंदरी के मन में आ उत्तर बता रहे थे। राम चरन के सिवा और कोई विकल्प ही नहीं है – उनकी परामर्श थी। सब कुछ ईश्वर की इच्छा से ही होता है, उनका अंतिम वाक्य था।
सुंदरी ने भी सर नवा कर ईश्वर का आदेश मान लिया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड