इंद्राणी एक बारगी अकेली पड़ गई थी।

कुंवर साहब पर चुनावी भूत सवार हो गया था। पहली बार ही था जब वो इस तरह अपनी सुधबुध भूल गए थे। लगा था जैसे राजा छोटूमल ढोलू की अपूर्ण अभिलाषा को तिरंगे की तरह हाथ में थामे वह भारत निर्माण पर निकल पड़े थे। उन्हें एहसास था कि आज ये घड़ी केवल और केवल बी जे पी की बदौलत ही मोहिया हुई थी। कांग्रेस ने तो देश को बुरी तरह से उजाड़ दिया था। चाह कर भी वो अकेले राजा छोटूमल ढोलू की तरह कांग्रेस के सामने टिक न पाए थे। लेकिन आज ..

सुंदरी राम चरन के साथ मिल कर ढोलू शिव के मेले के संयोजन में व्यस्त थी। उसे भी रात दिन की फुरसत न थी। या यों कहें कि वह दिन रात राम चरन के साथ ही बिताना चाहती थी – शायद सही था।

“प्यार करना तो कोई राम चरन से सीखे!” सुंदरी ने मन में दोहराया था और अपनी इस उपलब्धि पर उसे बहुत घमंड हुआ था।

राम चरन जैसे सर्व गुण संपन्न पुरुष था और ऐसा कुछ न था जिसे राम चरन न कर पाता! मेला को ही लें तो राम चरन ने मेले को एक नया ही लुक दे दिया था। उसने आने वाले लोगों के लिए भी ढोलू शिव को भारतीय संस्कृति से जोड़ दिया था। मेले में आए भक्त व्यवस्था की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे।

और सुंदरी ..? न जाने कैसे राम चरन उसके तन मन में समा गया था। अब उसे न किसी समाज की चिंता थी, न उसकी सेवा की परवाह थी। न उसे अब लोक लाज का डर था और न ही उसे कोई और आकर्षण सताता था। उसे राम चरन के साथ ही परमानंद प्राप्त होता था।

लेकिन सुंदरी के साथ आने से राम चरन बेखबर न था!

राम चरन जानता था कि अब एक नई जंग जुड़ेगी। उसे पता था कि जैसे ही बात कुंवर खम्मन सिंह ढोलू के कानों तक पहुंचेगी – एक भयंकर विस्फोट होगा। उसे कुंवर साहब की ताकत का अंदाजा था। उसे विश्वास था कि इस बार कुंवर साहब चुनाव में जरूर ही सफल होंगे और ..

“कैसे टिक पाओगे तूफान के सामने?” राम चरन हर पल हिसाब लगाता रहता था।

सुंदरी ढोलू खानदान की राजकुमारी थी। वह समाज सेविका थी। उसे अब एक आदर्श नारी के रूप में जानते थे लोग और पहचानते थे और उसकी इज्जत करते थे। लेकिन जैसे ही खबर उड़ेगी कि सुंदरी और राम चरन ..

“भूचाल तो आएगा अवश्य!” राम चरन ने अपने आप को खबरदार किया था। “लेकिन – नो गेन विदाउट पेन!” उसने स्वयं को दिलासा दिया था और हंस गया था।

इंद्राणी की उंगलियों में भी यही भूचाल भरा था।

वह भी जानती थी कि कुंवर साहब इस घटना को हलके में नहीं लेंगे! सुंदरी उनकी छोटी बहन थी जिसे वो बेहद प्यार करते थे। सुंदरी की हर पल प्रशंसा करना तो जैसे उनकी हॉबी थी। लेकिन जब पता लगेगा कि सुंदरी – एक पतिता थी, बदचलन थी, किसी अनजान पुरुष के साथ फंसी थी .. तो ..

“गोलियां चल सकती थीं!” इंद्राणी को अंदाजा था। “हो सकता था कि कुंवर जी आपा खो दें और हो सकता था कि ..”

“जनमेजय को बुला भेजूं तो ..?” इंद्राणी ने अपने भाई जनमेजय को याद किया था जो जोधपुर महाराज का साला था।

लेकिन राम चरन ने तो इस जंग को निहत्थे ही लड़ना था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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