रात के सन्नाटे में ढोलू सराय का किला सजग प्रहारी सा अटल खड़ा था।
किले ने अनगिनत आक्रमणकारियों को आते जाते देखा था। युद्ध लड़े गए थे। जीते गए थे। हारे गए थे। लेकिन ढोलू वंश अभी तक सुरक्षित था। कुंवर साहब का देश का कृषि मंत्री बनना एक गौरवपूर्ण घटना थी। ढोलू वंश के महा वीरों ने भारत देश की रक्षा सुरक्षा में महते बलिदान दिए थे। इतिहास में सब कुछ दर्ज था। और अब ..
“देश के लिए हम दोनों ही समर्पित हो जाते हैं, इंद्रा।” कुंवर साहब ने इंद्राणी के तपते सर को सहलाते हुए कहा था। “मैं तुम्हारी पीड़ा जानता हूँ। मॉं न बन पाने का दुर्भाग्य टला ही नहीं।” कुंवर साहब ने मुड़ कर इंद्राणी की आंखों में देखा था। “देश हमारा है। तन मन से सेवा करते हैं।” कुंवर साहब ने एक नया प्रस्ताव इंद्राणी के सामने रख दिया था।
“मैं तो सदा आपके साथ हूँ।” भरे कंठ से इंद्राणी कठिनाई से बोल पाई थी। “लेकिन ..” वह चुप हो गई थी।
“व्यथा क्या है इंद्रा? कहो न – प्लीज! मुझसे पहली बार तुम कुछ छुपा रही हो।” कुंवर साहब ने आरोप लगाया था – जो सच भी था।
“हां! पहली बार ही मैंने आप से दुराव किया है। क्षमा चाहती हूँ।” उदास हो आई थी इंद्राणी। उसकी आंखें भर आई थीं।
“हुआ क्या ..?”
“सुंदरी ..!”
“क्या हुआ उसे?”
“पथभ्रष्ट हो गई!”
“क्या ..?”
“हां, कुंवर जी!” इंद्राणी सिसकियां ले रही थी। “हमारी परम प्रिय सुंदरी .. राम चरन .. न जाने कौन पुरुष है – पता नहीं! मंदिर में आ गया है। उसी के साथ ..” फुक्का फाड़ कर रो पड़ी थी इंद्राणी। “कुल की मर्यादा डुबो दी! कहीं का नहीं छोड़ा हमें।” इंद्राणी के आंसू थम नहीं रहे थे। उसने बिस्तर में मुंह छुपा लिया था।
कुंवर साहब को मानो बिजली का करंट लगा हो – वो तड़प कर रह गए थे।
अचानक राजा छोटूमल ढोलू उदय हुए थे। क्रोध में लाल-लाल लोचन घुमाते फिराते राजा साहब कोई कहर ढा देना चाहते थे। इस आदमी को खम्मन पेश करो। इसे सजा दो, इसका सर काट कर ..
“सुंदरी ..?” कुंवर साहब ने लंबी आह छोड़ कर मुद्दे को पकड़ा था। “बिना सुंदरी की सहमति के तो ..?” उनका विवेक बोला था। “समर्थ है सुंदरी! यों तो कोई उसे छू भी नहीं सकता!” कुंवर साहब ये जानते थे।
ढोलू कुल की स्त्रियां उसका आभूषण थीं। कुल की स्त्रियां – सती नारी थीं। स्त्रियां देश, जाति और कुल की प्रथाओं और परम्पराओं की पवित्रता से बंधी थीं। लेकिन सुंदरी ..?
महेन्द्र की विधवा थी सुंदरी। उसने स्वयं व्रत लिया था और दूसरी शादी नहीं की थी। फिर क्या हुआ कि वो किसी यूं ही ऐरे गैरे मर्द के साथ ..?
“षड्यंत्र!” अचानक कुंवर साहब को सूझा था। “कोई विरोधियों की चाल तो नहीं थी?” उनका अंतर बोला था।
सुंदरी पर पहली बार आज उन्हें क्रोध चढ़ आया था।
“कुल खानदान की इज्जत तो जाएगी ही साथ में अगर कोई काण्ड खुला तो शायद है कि इस्तीफा देना पड़े!”
कुंवर साहब ने जन्मेजय को बुला भेजा था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड