कुछ याद नहीं था – राम चरन को। न पाकिस्तान का पता था और न हिन्दुस्तान की कोई खबर थी। न वो पहले कुछ था – क्या था – पता नहीं। एक ही पता था – वह जहां संघमित्रा थी। संघमित्रा के लाजवाब अंग विन्यास उसे रह-रह कर याद आ रहे थे। सबसे ज्यादा सुंदर तो उसकी आंखें थीं। दीप शिखाओं सी जलती आंखें। आमंत्रित करती आंखें। सपने संजोती आंखें और .. और ..! उसकी देह संगमरमर की बनी थी। गेसुओं को एक अकेली चोटी में समेट वह संदेश देती कोई दिव्य अप्सरा थी। उसके हाव भाव .. साधारण न थे। वह भी साधारण न थी ..

“क्या हुआ हुजूर? फिर से बहक गए?” सलमा थी – प्रश्न पूछ रही थी।

राम चरन ने सलमा को उठा कर संघमित्रा के सामने खड़ा कर दिया था। और अब पूछ रहा था कि है कोई मुकाबला?

“तुम .. सलमा .. यू .. ए ..” राम चरन को क्रोध चढ़ने लगा था। “ए चीट!” उसने कठोर शब्द का प्रयोग किया था।

सलमा और सोलंकी .. सलमा और बलूच और फिर सलमा और मुनीर खान जलाल – एक जुनून का नाम था – दोस्ती का दूसरा नाम था और प्रेम प्रीत का अड्डा था। सलमा खुली-खुली रहती थी। सलमा सबकी बनी रहती थी। पता नहीं चलता था कि सलमा ..

“बट आई लव्ड हर!” राम चरन ने गहरी निश्वास छोड़ी थी। “आई वॉज कमिटिड टू हर।” वह कहीं दूर देखने लगा था। “प्रेगनेंट सलमा को प्रश्न पूछने के बजाए उसने निकाह कर लिया था। सलमा ने उसे झपट लिया था। सोलंकी निकाह करने से नाट गया था। बलूच ने प्रश्न पूछे थे। लेकिन उसने .. उसने मौका देख सलमा से निकाह कर लिया था। अब सलमा उसकी थी – उसने मान लिया था।

“पागल थे – तुम .. मुनीर!” तनिक मुसकुराया था राम चरन। “सोलंकी ने शादी ही नहीं की और बलूच शादी कर के बच गया। और तुम ..?”

बलूच ने सलमा को माफ नहीं किया था और यही कारण था कि वह सलमा से स्कोर इविन करना चाहता था। वह चाहता था कि किसी तरह से सलमा और मुनीर को भिड़ा दे और दोनों का बदला उतार दे।

“मैं तो तेरा जिगरी हूँ मुनीर!” बलोच कह रहा था। “मैं तेरे लिए जान भी दे सकता हूँ – तू जानता है।” उसने न जाने क्यों ये वायदा किया था। “लेकिन मैं फिर कहता हूँ कि ये सोलंकी किसी का सगा नहीं है।”

“यारों का यार है बे!” मुनीर बोला था।

“बकवास है! बे!” बलोच तुनक कर बोला था। “तु .. तु क्या समझता है कि वो तेरे घर क्यों पड़ा रहता है? मुहब्बत है ..?” बलोच प्रश्न करता ही रहा था।

बलोच बेईमान तो था, पर था तो यारों का यार! जान जोखिम में डालने का उसका कोई तोड़ न था। याद करते ही हाजिर होता था बलोच। लेकिन सलमा से खुंदक खाता था। सलमा भी उसे तिरछी निगाहों से देखती थी। जब भी बलोच आता था सलमा टर्र हो जाती थी। पीता बहुत था। पीते-पीते हम दोनों भूल ही जाते थे कि ..

सोलंकी चीफ बनने वाला था। मुनीर की लाइन भी क्लियर थी। लेकिन बलोच अटक गया था। सोलंकी चीफ बनता था तो बलोच रिटायर हो कर घर चला जाना था। और ..

“तेरा ट्रम्प कार्ड तो कायम है।” बलोच पी कर कहता तो कहता ही जाता। “तुझे तो कोई रोक ही नहीं सकता।” वह हाथ फैला कर कहता। “अपुन साले गधे हैं!” वह खुद को कोसता रहता।

बलोच की बात भी सच थी। मुनीर का सारा कैरियर सलमा के ऊपर से जाता था। सलमा ने मुनीर की हर रिपोर्ट लिखवाई थी। हर हालत में सलमा ने उसे ..

सलमा फ्री रहती थी। दोनों बेटे इंग्लैंड में पढ़ रहे थे। सलमा एक दम फ्री थी। सलमा ..

“ये कहानी नई है सलमा!” राम चरन हंसा था। ये काशी का गंगा जल में तराशा हीरा है। ये तो .. ये तो पवित्र परमेश्वर जैसी एक कल्पना है। और तुम .. बदबूदार एक पुराना आईटम हो।” राम चरन ने सलमा को जलील किया था। “तुम्हारा अपराध ..?” राम चरन को फिर से सोलंकी याद हो आया था।

और न जाने कैसे आज पहली बार राम चरन ने गन शॉट्स को सुना था – धांय-धांय! गोलियां चली थीं। सात गोलियां फायर हुई थीं। बलोच ने सातों खाली खोखे गिने थे और अपनी जेब में डाल लिए थे। वह तो पागल हो गया था। बलोच ही उसे सहारा दे कर अपने घर ले आया था। उस रात भी उन दोनों ने डट कर पी ली थी।

“तीन गोलियां शेष थीं।” राम चरन को याद आ गया था। उसने तीनों गोलियों को बलोच के सीने से पार करना था। सबूत मिटाना था। लेकिन .. कभी-कभी अंजाने में भयंकर गलती हो ही जाती है।

बलोच आज भी जिंदा था।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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