इतवार के दिन दिल्ली के रईस आज कल सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स में सैर करने चले आते थे।
सत रंगी भीड़ से भरा कॉम्पलैक्स अनूठे रंग ढंग में डूब जाता था। चूंकि यहां हर किस्म का सौदा सुल्फ उपलब्ध था और आमोद प्रमोद के भी सभी साधन मौजूद थे अतः दिल्ली के संभ्रांत परिवार इतवार के दिन परिवार सहित चले आते थे और शोर गुल में शामिल हो जाते थे। क्या बच्चे तो क्या बूढ़े सभी मौज लेते दिखाई देते थे। लेटैस्ट फैशन के अंतर्गत महिलाएं बड़े ही करीने से सजी धजी कॉम्पलैक्स की शोभा में चार चांद लगा देती थीं।
राम चरन आदतन इतवार के दिन कॉम्पलैक्स में निरीक्षण के लिए जरूर निकलता था।
जागृति जलपान गृह के आस पास जुड़ी भीड़ की गहमागहमी देख वह खड़ा-खड़ा कई तरह के अनुमान लगाने लगा था। फिर जाकर भीड़ में मिल गया था और तब उसने कालू को देख लिया था। उसे घर का खाना याद हो आया था जब दो दिन के भूखे राम चरन ने घर का खाना पेट भर खाया था तो ..
“प्रणाम सर!” राम चरन को आया देख कालू ने दौड़ कर चरण स्पर्श करना चाहा था तो राम चरन ने उसे रोक लिया था।
“कैसा काम चल रहा है?” राम चरन ने बड़े ही विनम्र स्वर में पूछा था।
“आप की छत्र छाया में ..”
“अरे नहीं! तुम्हारी तो मेहनत रंग लाती है।” राम चरन हंसा था। “जान छूटी उस रेहड़ी से ..”
“ये भी आप का ही किया करिश्मा है।” हंसा था कालू। “कहां से कहां ..!” उसने आसमान की ओर देखा था।
अनायास राम चरन को भी अपनी मंजिल दिखाई दे गई थी।
“अब दिल्ली दूर नहीं!” राम चरन ने मन में दोहराया था। “इस बार दिल्ली को लूटेंगे नहीं!” उसने विहंस कर स्वयं से कहा था। “इसे बसाएंगे! यह इस्लामिक स्टेट की राजधानी होगी! और दिल्ली ..” राम चरन अपने इरादे दोहराता रहा था।
“थोड़ा जल पान?” कालू ने विनम्र भाव से पूछा था।
तभी आर एस एस के स्वयं सेवक भीड़ में आकर भर गए थे। युवा थे। शायद शाखा के बाद आए थे। सभी के चेहरे चमक रहे थे। आंखों में नई रोशनी थी जिसे देख राम चरन अचानक अंधा हो गया था।
“ये लोग ..?” राम चरन कुछ पूछना चाह रहा था।
“अरुण ..!” अचानक कालू ने आवाज दी थी। “वरुण को भी बुला!” उसने कहा था।
अरुण और वरुण दोनों स्वयं सेवक कालू के पास आ कर खड़े हो गए थे। “इनसे मिलो आप के राम चरन अंकल हैं!” कालू ने उन दोनों का परिचय राम चरन से कराया था। “सर! ये दोनों आप के बेटे हैं!” कालू ने राम चरन को भी उन का परिचय दिया था।
राम चरन के प्राण सूख गए थे। स्वयं सेवक बने कालू के दोनों बेटे अरुण और वरुण उसे जोरावर और महरावत के अवतार लगे थे। इतिहास स्वयं को दोहराता है – क्या ये सच था? क्या ये सच था कि ..
“नमस्ते अंकल!” अरुण और वरुण ने राम चरन के पैर छूए थे।
अब क्या आशीर्वाद दे – राम चरन सकते में आ गया था।
नए भारत का निर्माण होने जा रहा था – राम चरन ने एक बारगी महसूस किया था जबकि पाकिस्तान के उलटे बांस बरेली जा रहे थे।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड