“मेले की तैयारियां देख रही हो?” कुंवर खम्मन सिंह ढोलू ने सुंदरी से पूछा था।

दरबार हॉल में बैठे कुंवर साहब, पत्नी इंद्राणी और सुंदरी पारिवारिक गतिविधियों का जायजा ले रहे थे!

“मेरा अनुमान है कि इस बार जोरों का मेला उठेगा!” इंद्राणी की राय थी।

“क्यों?” कुंवर साहब ने प्रश्न पूछा था।

“इसलिए भाई साहब कि अब लोग जागृत हो रहे हैं। भौतिकवाद से परहेज करने लगे हैं। पढ़ा नहीं आपने पीटर वेल्स ने सब कुछ दान में दे दिया और सनातन भी स्वीकार कर लिया!”

“अब सनातन का सच सामने आ रहा है।” इंद्राणी बोली थी। “मेले में इस बार बहुत सारे विदेशी भी आने हैं।”

“तो फिर तो सुंदरी ..?” कुंवर साहब सुंदरी की ओर मुड़े थे। “तुम ..?”

“मैंने पहले ही सब कुछ अरेंज कर लिया है भाई साहब! सुनहरी झील – और मैदानगढ़ी के ग्राऊंड में कैंप लगेगा। टेंट हाउस तय है। खाने पीने का मीनू भी बदल दिया है इस बार!”

“गुड!” कुंवर साहब बेहद प्रसन्न थे। “अब एक बार मंदिर को भी तो देख लो! पंडित कमल किशोर इस काम में तनिक ढीले हैं।” वो मुसकुराए थे। “मार दो एक चक्कर!” उनकी राय थी। “मंदिर की सजावट ..”

“फिकर न करें भाई साहब!” सुंदरी तुरंत बोली थी। “मैं चली!” कहते हुए वह मंदिर जाने के लिए निकल पड़ी थी।

अचानक ही सुंदरी को याद आने लगा था वो दृश्य, वो आदमी और वो – उसके प्रेमाकुल मन का मचल जाना!

“राम चरन – कौन?” सुंदरी को अपना किया प्रश्न फिर से याद हो आया था।

लेकिन राम चरन ने कोई उत्तर न दिया था। वह चुप ही बना रहा था। लेकिन क्या वो आज फिर से राम चरन से उत्तर मांगेगी? सुंदरी ने निश्चय कर लिया था ..

दोपहर का समय था। मंदिर खाली पड़ा था। पंडित कमल किशोर भी आराम कर रहे थे। मंदिर खुला था। सुंदरी ने जोर से ब्रेक मारे थे और कार को मंदिर के सामने छोड़ वह एक तूफान की तरह मंदिर में दाखिल हुई थी। उसे लग रहा था कि उसके पैरों में प लग गए थे। वह हवा में तैर रही थी। वह राम चरन से मिलने के लिए बेचैन थी। वह किसी भी तरह उसे पा लेना चाहती थी। पूछ लेना चाहती थी कि ये राम चरन था कौन?

बार-बार, कई बार सुंदरी के सामने महेंद्र का चेहरा उग आया था। लेकिन आज महेंद्र भी राम चरन के सामने टिक न पा रहा था।

हां! कॉलेज के दिनों में महेंद्र के साथ खेली वो तमाम प्रणय लीलाएं सुंदरी को याद आ रही थीं। लेकिन हर बार आज महेंद्र को छका कर राम चरन ही हाजिर हुआ था।

“लेकिन .. लेकिन ये है कहां?” सुंदरी अब मंदिर की तलाशी ले रही थी। बावली की ओर वह झांक आई थी। बगीचे में भी खोज लिया था। मंदिर की छत पर चढ़ कर भी पूरे आस पास को टटोला था। लेकिन राम चरन का कहीं खोज तक न मिला था।

“ये क्या माया है, प्रभु!” सुंदरी ने कातर निगाहों से ढोलू शिव की ओर देख प्रश्न पूछा था।

आज पहली बार था जब सुंदरी का मन किसी पुरुष के लिए इतना मचला था।

महेंद्र की मौत एक दर्दनाक घटना थी। सुंदरी का सुहाग उजड़ा था तो चारों ओर त्राहि-त्राहि हो उठी थी। वो दोनों युवा थे, करिजमैटिक थे और दोनों रॉयल थे। मैसूर घराने का राजकुमार था – महेन्द्र! और जब महेंद्र का प्लेन क्रेश हुआ था तो ..

“आज मेरा मन क्रेश कैसे हो गया?” सुंदरी बार-बार स्वयं से पूछ रही थी। “और .. और कहां गायब हो गया ये राम चरन? भाग गया क्या?”

सुंदरी का मन बेहद उदास था। उसका मन भी शिथिल पड़ गया था और आंखें खाली-खाली थीं। पैर भी बेदम हो चुके थे और ..

निराश हुई सुंदरी घर लौट आई थी।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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