“इस्लामिस्तान बनने के बाद हिन्दुस्तान की कैपिटल हैदराबाद होगी सज्जाद भाई!” मुनीर खान जलाल ने एक नई घोषणा की थी। “ये बहुत पहले हो गया होता अगर अंग्रेज गांधी को मरवा न देते।” मुसकुराया था मुनीर। “हिन्दुस्तान का दिल समझो हैदराबाद को।”

“निजाम भी हारा नहीं था जनाब। अगर पाकिस्तान ..?” सज्जाद भाई ने उलाहना दिया था।

“वक्त को समझा करो सज्जाद मियां! तब का वक्त अंग्रेजों की उंगलियों पर नाचता था और आज वही अंग्रेज हमारी उंगलियों पर नाच रहे हैं। हाहाहा!” हंसता रहा था मुनीर।

सज्जाद भाई अचानक हैदराबाद के निजाम की हार पर भावुक हो आए थे।

“निजाम जैसा शासक – लोग कहते हैं आज भी कोई नहीं है।” सज्जाद भाई बताने लगे थे। “हिन्दू मैजोरिटी के बीच रह कर जजिया कर वसूल करना निजाम का एक अलग ही करतब था जनाब! मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू मानते थे निजाम को। लाख कोशिश के बाद भी कांग्रेस आंदोलन नहीं चला पाई थी।”

“कहते है – बहुत माल टाल था उनके पास!” मुनीर खान जलाल जोरों से हंसे थे। “वो माल गया कहां?”

“लूट हुई थी।” टीस कर बताया था सज्जाद भाई ने। “निजाम तो एक-एक पाई का हिसाब रखता था। कंजूस तो खूब था लेकिन अल्लाह ..” चुप हो गए थे सज्जाद भाई।

मुनीर खान जलाल का आज मन खिला हुआ था। न जाने क्यों उसे जंच गया था – हैदराबाद! राजधानी बनने के बाद तो छटा ही अलग होनी थी – वह जानता था। पूरे हिन्दुस्तान का संचालन हैदराबाद से सुगम रहना था। गैर मुल्क अगर आक्रमण करता तो हैदराबाद आसानी से हारने वाला नहीं था।

“पैसा नहीं पहुंचा है जनाब!” सज्जाद भाई ने शिकायत की थी।

“पहुंचेगा!” मुसकुराए थे मुनीर खान जलाल। “आज दुनिया भर का मुसलमान माला माल है मियां।” वह बता रहे थे। “और यही वक्त है कि हमें ..”

“मुसल्ला फौजें आएंगी कैसे जनाब?” सज्जाद भाई ने अचानक एक अलग प्रश्न पूछ लिया था।

“आएंगी नहीं, आ चुकी हैं सज्जाद मियां। सो रहे हो क्या?” मुनीर खान जलाल ने तनिक झिड़क कर कहा था। “मैं और आप ही मुसल्ला फौजों के सिपहसालार है!” मुनीर बताने लगा था। “इस बार साऊथ से हमला होगा। साऊथ समर्थ है, अब बस जंग की तैयारी होनी है। हर हिन्दू के घर में मुसलमानों का दखल होना ही चाहिए। हिन्दू का लड़का है तो मुसलमान की लड़की चलेगी और अगर लड़की है तो मुसलमान का लड़का। खासकर जितने भी ऊंचे और संभ्रांत लोग हैं उनके घर में घुसना जरूर है। उसके बाद तो सब आसान हो जाएगा मियां!”

“जनाब ये तो अजीब ही जंग होगी। हिन्दुस्तान की फौज है, पैरा मिलिट्री है, पुलिस है और हिन्दू हैं। फिर हम लोग ..?”

“क्या फौजियों के परिवार हमारे साथ नहीं रहते?”

“रहते तो हैं।”

“तो फिर मुसीबत कहां है? जब तक किसी को जंग की भनक लगेगी हम देश ले चुके होंगे मियां।” हंस रहा था मुनीर खान जलाल। “सीधे-सीधे तो हम कभी जंग जीतेंगे ही नहीं।”

सज्जाद मियां मुनीर खान जलाल को एक अजूबे की तरह देखते रहे थे।

लेकिन मुनीर खान जलाल की नजरों के सामने जल्लाद बना मुसलमान सड़कों पर कहर ढा रहा था1 हिन्दू कांप रहा था। हिन्दुओं की समझ में ही न आ रहा था कि हो क्या रहा था। क्या होने वाला था और क्यों हो रहा था।

इस्लाम का तूफान अकेले हिन्दुस्तान में ही नहीं पूरब से पश्चिम तक आकर पार जाना था। न कोई मिसाइल दागनी थी, न कोई तोप चलानी थी और न ही हवाई जहाजों के आक्रमण होने थे। और न पानी के जहाजों की जरूरत थी। एक हल्ला उठना था – अल्लाह हू अकबर का हल्ला और इसे दुनिया के आर पार हो जाना था।

अल्लाह के सिपाही अजेय थे। हिन्दू और ईसाई कायर थे। ये लोग मरने से डरते थे। और हिंसा से कतराते थे। आराम परस्त जो थे। संपन्न तो थे लेकिन लड़ने मरने में विश्वास नहीं रखते थे।

लेकिन एक बार अल्लाह के बंदे बनने के बाद अल्लाह ने इन्हें कबूल कर लेना था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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