सुंदरी आज कल अपनी शोशल मीटिंग्स में ज्यादा व्यस्त हो गई थी अतः राम चरन को भी खुला वक्त मिल गया था। उसका सोच विमोच आजकल खलीफात के निर्माण को ले कर परवान चढ़ता जा रहा था।

पटना से लौटने के बाद न जाने क्यों राम चरन की खुशी और उल्लास दो गुना हो गया था।

“जनाब! हिन्दुस्तान तो बनाना स्टेट है।” बदलू की आवाजें आने लग रही थीं। “आदमी – आम आदमी है!” बदलू खूब हंसा था। “आम को काट कर खाओगे तो कित्ता मजा आएगा? हाहाहा!” बदलू प्रफुल्लित हो कर हंसता ही जा रहा था। “इस बार चूकना नहीं है जनाब!” बदलू ने अपना इरादा व्यक्त कर दिया था।

एक नम्बर का कसाई था – बदलू। रहम नाम की किसी चीज को तो वो जानता ही नहीं था। उसका नाता और इरादा दोनों ही जुल्म, हिंसा, कत्ले आम और लूट पाट तक जाता था।

“ये हिन्दू पेट में भी नहीं खाता जनाब! हमारे लिए बीस परसेंट हर रोज बचाता है। हाहाहा! इस बार तो तगड़ा माल हाथ लगेगा!” आंखें शरारत में डूब-डूब जाती थीं – बदलू की।

अचानक राम चरन को हिन्दुस्तान के साथ हुई पाकिस्तान की जंगें याद हो आई थीं।

“इट वॉज बट फॉर आर्मी – नॉट फॉर लीडर्स!” वह प्रत्यक्ष में कहता रहा था। “आर्मी जरनल्स ने ही बचाया देश, वरना तो कब का हमारा हो जाता!” राम चरन एक अफसोस में आ कर धंस गया लगा था। “आर्मी का तोड़ निकाले बिना असंभव ही था खलीफात का पूरा अभियान!” उसकी समझ में बात बैठ गई थी। “लेकिन – लेकिन कैसे ..?” राम चरन की कुछ समझ न आ रहा था।

राम चरन ने एकांत पा कर चुपके से फाइलें खोली थीं।

खलीफात के नक्शे पर सब कुछ दर्शाया गया था। इंडोनेशिया, मलेशिया और म्यांमार से लेकर बांग्लादेश तक खलीफात में शामिल थे। भारत को नीले रंग में मार्क किया था। इसे अभी तक खलीफात में मिलाया नहीं गया था। लेकिन प्लान के मुताबिक पूरी स्कीम नक्शे पर मार्क की गई थी। कलकत्ते से ले कर पटना तक और लखनऊ तक एक चेन थी, तो दूसरी चेन्नई से आरंभ हो कर भोपाल तक जाती थी। बंबई से अहमदाबाद अलग लिंक थी। दिल्ली अमृतसर और श्री नगर का अलग ट्राइएंगल था। असम को म्यांमार के साथ मिला दिया था। पाकिस्तान से ले कर अफगानिस्तान तक और फिर मंगोलिया तक हदें जाती थीं खलीफात की।

उधर उम्मीद थी कि अमरीका और यूरोप जल्दी ही घुटने टेक देगा। इस्लाम की आबादी ही इतनी हो जाएगी कि ये गोरे लोग हथियार डाल देंगे।

अभी तक का हिन्दुस्तान में रहने का अनुभव जो राम चरन को बता रहा था, वो बड़ा ही पॉजिटिव था।

आर एस एस वाले तो यूं ही सलाम प्रणाम करते हैं – बदलू के बोल राम चरन ने फिर एक बार सुने थे। वह गदगद हो उठा था। बेकार ही डरता रहा था वो आर एस एस से। जहां तक सुमेद के हिन्दुओं का सवाल था वो तो बनने से पहले ही बिगड़ चुका था।

मुसल्ला फौजों के दस्ते राम चरन को निरीह और निहत्थे हिन्दुओं को लूटते पीटते दिखाई देने लगे थे। कत्ले आम करते मुसलमान पीछे मुड़ कर नहीं देख रहे थे। मुगलों का इतिहास एक बार फिर हिन्दुस्तान में घटने लगा था। औरतों की लूट हो रही थी और बच्चों को मौत के घाट उतारा जा रहा था। हिन्दुओं का धन माल लूटा जा रहा था। संपत्तियां हड़पी जा रही थीं। निर्मम हिंसा का तांडव सड़कों पर खुले आम घट रहा था।

“दैट्स इट बदलू!” राम चरन के होंठों से शब्द फूटे थे। “यू आर ए सोल ऑफ चंगेज खां!” उसने बदलू को किए नरसंहार के लिए बधाई दी थी।

और फिर न जाने कैसे राम चरन की आंखों के सामने घोड़े पर सवार चंगेज खान की फौजें नृशंस हत्याएं करने लगी थीं। शहर उजड़ रहे थे, गांव जल रहे थे और लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा था।

“आप के चले आने का शुक्रिया जनाब!” राम चरन घोड़े से कूद सामने आ खड़े चंगेज खान से हाथ मिला रहा था। “मैं मुनीर खान खलीफा ऑफ ..”

फोन की घंटी बज उठी थी। सुंदरी ने सारा गुड गोबर कर दिया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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