“आप से कोई कन्या मिलने आई है।” क्रांति वीर आश्रम हैदराबाद में नई क्रांति लाने के उपक्रम में व्यस्त सुमेद को सूचना मिली थी।
सुमेद चौंका था। उसे दाल में कुछ काला दिखा था। उसे लगा था कि अब उसके मिशन को फेल करने के लिए कोई था जो चाल चल रहा था। कोई चाह रहा था कि वो किसी तरह से अपने उपक्रम में फेल हो जाए। क्रांति वीरों की अगली सभा सोमवार से आरंभ हो रही थी। इसकी घोषणा हो चुकी थी। और अब ..
“बुलाओ!” सुमेद ने संभल कर कहा था।
एक सजीले छबीले स्वप्न की तरह एक अति आकर्षक, सुंदर और दिव्य युवती सुमेद के सामने आ कर खड़ी हो गई थी।
सुमेद ने उसे देखा था। पहचाना था और स्मृति पटल पर घूम गए सारे विगत को पकड़ कर पास बिठा लिया था।
संघमित्रा ने सुमेद के ऋषि कुमारों से व्यक्तित्व को नजरों में भर-भर कर सींचा था, सराहा था, चूमा था और प्यार किया था। एक लंबे अंतराल के बाद आज वो अपने बाल सखा को एक पूर्ण और समर्थ युवक के रूप स्वरूप में देख रही थी।
“मित्रा .. तुम?” सुमेद ही बोला था।
“हां! मैं ही आई हूँ। तुम लौटे नहीं तो सोचा ..”
“भूला तो नहीं था लेकिन व्रत ही ऐसा ले बैठा मित्रा कि ..” सुमेद चुप हो गया था।
सुमेद ने अपने संघर्षों को याद किया था तो संघमित्रा उसमें किसी भी रूप में शामिल न थी। उसने तो ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था। उसने भारत में एक नई क्रांति लाने की कल्पना की थी। उसने सोचा था – उसकी देश को जरूरत है। संघमित्रा को हो सकता है उसका ये विचार न भाए। यही कारण था कि उसने मुड़ कर पीछे न देखा था।
“हुआ क्या?” संघमित्रा ने सुमेद के पास बैठते हुए पूछा था। वह तो सुमेद को अंतर वाह्य – हर तरह से जानती थी। वह जानती थी कि सुमेद वचन का पक्का आदमी था। “किसी ने बताया ही नहीं ..” उसने शिकायत की थी। “मौसी भी रोती ही रही थीं पर कहा कुछ नहीं।”
“मिल कर आई हो मां से?” अचानक सुमेद अधीर हो आया था।
“हां! बहुत बीमार थीं। मैं आई तो .. घंटों रोईं मुझे बांहों में ले कर। सच सुमेद मुझे तुम पर बहुत क्रोध आया था। तुम ..”
“सुनाऊंगा अपनी भी कथा व्यथा – तुम्हें जरूर बताऊंगा कि ..” सुमेद ने पहली बार संघमित्रा को आंखों में देखा था। “थैंक्स मित्रा!” सुमेद बुदबुदाया था। “तुम चली आईं!” उसने स्वागत किया था। “लेकिन .. मैं ..”
“ब्रह्मचारी हूँ! क्रांतिकारी हूं! देश भक्त हूँ! यही कहोगे न?”
“हां मित्रा ..”
“तो मुझे भी वही सब मान लो, सुमेद! मेरा मन भी छोटे मोटे प्रेम प्रलाप में नहीं लगता। पिताजी ने मुझे शिक्षा ही ऐसी दी है सुमेद कि मैं ..”
“शादी क्यों नहीं की?”
“आया था एक वंशी पुत्र, यू ऐस रिटर्न और शादी कर साथ अमेरिका ले जाना चाहता था। लेकिन मैं अमेरिका जा कर क्या करती सुमेद?” संघमित्रा ने इस बार फिर उसे आंखों में देखा था। “मेरा मन तो तुम से ..” संघमित्रा ने पलकें झुका ली थीं।
“मौसी ..? मेरी देवकी मौसी ..”
“नहीं रहीं!”
“हे भगवान!” सुमेद ने हाथ जोड़ कर जैसे अपनी देवकी मौसी को प्रणाम किया था। “हमारी दोनों की मां और मौसी ..”
“और हम और तुम ..?” संघमित्रा ने कहते हुए सुमेद को छू दिया था।
दो युग स्वयं आ कर एक दूसरे से मिले थे – पहली बार।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड