सब कुछ वही था। द्वीप के चारों ओर समुंदर के विस्तार बिखरे थे। सघन वन से आच्छादित द्वीप दुलहन जैसा लग रहा था। सतरंगी रोशनी ने हर दिशा को सजा दिया था। आसमान पर आज नए सितारे चमक रहे थे। नया उल्लास था, नई उमंगें थीं और इस्लाम का परचम पूरे विश्व पर फहरा रहा था।
मुनीर खान जलाल खलीफा बना जजमेंट सीट पर बैठा था।
“खलीफा की खिलाफत करते ये चंद लोग, नाचते-गाते लोग, शैतान लोग, अजीब गरीब लोग तंत्र मंत्र मारते लोग – नास्तिक हैं। ये खिलाफत की बातें जुबान पर लाते हैं। अगर इन्हें खत्म न किया गया जहांपनाह तो बगावत होते देर न लगेगी।”
“कत्ल कर दो इन सब को!” खलीफा का हुक्म आया था – तुरंत।
पकड़-पकड़ कर उन शैतानों को लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा कर दिया था। जल्लाद के लिए हुक्म हुआ था कि उन सब का सर कलम कर दे। जल्लाद अपना फरसा लिए पहले शैतान को कत्ल करने चला ही था कि उसके हाथ रुक गए थे। भरे दरबार में सबने देखा था कि शैतान की जगह एक सुंदर स्त्री आ कर खड़ी हो गई थी।
“तुम्हारे लिए हुक्म नहीं हुआ है बेगम!” जल्लाद ने अपना फरसा रोक कर कहा था।
सुंदरी को यों भरे दरबार में आया देख खलीफा की भूमिका में जजमेंट सीट पर बैठा मुनीर खान जलाल दंग रह गया था।
“हमारा धर्म ईसार – त्याग और बलिदान पर आधारित है। मैं अपनी जान इन लोगों की एवज देने को तैयार हूँ।” सुंदरी ने सर उठा कर गर्व से कहा था। “खुदा की खिदमत का ये एक बेहद मुबारक मौका है। मेरा सर कलम किया जाए और ..”
“आपको नहीं – शैतानों को शरिया के मुताबिक मौत मिलेगी!” काजी बीच में बोल पड़ा था। “इस्लाम की हुक्म अदूली का अंजाम ..”
“सुनो काजी!” सुंदरी बोल पड़ी थी। “इन लोगों को भी अल्लाह ने ही पैदा किया है। इन्हें भी जिंदगी और मौत, कयामत और कमाल उसी से हासिल है। इनका खुदा इनके पास ही रहता है। गाना बजाना तो इनका इल्म है!”
“जहांपनाह! ये लोग अगर नास्तिक नहीं हैं तो धार्मिक भी नहीं हैं। आप इनका नसीब नहीं बदल सकते!”
“हमारे हुक्म को रोक दो!” खलीफा ने जौमदार आवाज में फरमान दिया था।
अजीब हलचल हुई थी – दरबार-ए-आम में। सब कुछ पुराना नया हो रहा था। बदलाव का महत्व बढ़ गया था। हवाओं की रौनक भी बदल गई थी। शैतानों के चेहरे चांद से खिले थे। अभयदान का उन्माद सभी को पागल किए दे रहा था।
मुनीर खान जलाल के देखते-देखते वहां हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हो गई थी।
“मैंने तुम्हारे बेटों – शिव चरन और श्याम चरन को पूरब और पश्चिम के राष्ट्र दे दिए हैं।” मुनीर खान जलाल ने सुंदरी को आगोश में भर लिया था। “खुश तो हो सुंदा?” वह पूछ रहा था।
मुनीर खान जलाल ने सहसा सुंदरी के शरीर से आती अलग तरह की सेंट की खुशबू से परहेज किया। यह सुगंध तो अलग थी – उसने पहचान लिया था।
मुनीर खान जलाल की आंखें खुल गई थीं।
“आई लव यू ..” शगुफ्ता सोलंकी ने धीमे से सोते मुनीर खान जलाल के कान में कहा था।
“आई लव यू टू!” मुनीर खान जलाल ने आदतन उत्तर दिया था।
मुनीर खान जलाल ने महसूसा था कि एक गलती होने से बाल-बाल बच गई थी। अगर गलती से वह सुंदा कह जाता तो कबाड़ा हो जाता।
आज अचानक ही मुनीर खान जलाल का मन हुआ था कि शगुफ्ता सोलंकी को जी भर कर लतियाए ओर समुंदर में फेंक चलाए। लेकिन वो जानता था कि शगुफ्ता सोलंकी और मंजूर अहमद ने अभी उसकी रिपोर्ट फाइल करनी थी। तनिक सी चूक पर उसका सारा साम्राज्य बह जाता – वह जानता था।
सुंदरी का यों ख्वाब में आना आज उसे बहुत भला लगा था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड