ढोलू सराय का किला आज गजब की गहमागहमी से सजग हो उठा था।

चुनाव आते थे तभी किले में इस तरह की भीड़ बढ़ती थी और देश प्रेम तथा देश भक्ति के नारे गूंज उठते थे। कुंवर साहब बढ़ चढ़ कर चुनाव में हिस्सा लेते थे और आज तक कभी भी चुनाव न हारे थे। ढोलू सराय की सीट उनके पिता राजा छोटूमल ढोलू की पुश्तैनी सीट थी। वो कभी कर्मठ कांग्रेसी थे लेकिन ..

“अब निभेगी नहीं जवाहर!” राजा छोटूमल ढोलू ने स्पष्ट ऐलान किया था। “मैं भारत को बंटता नहीं देख सकता।” उन्होंने ऐलान किया था। “तुम बिक गए हो ..”

“छोटू ..!” जवाहर ने भी वार किया था। “भूल जाओ कि तुम राजा थे। अब राज जनता का होगा। जनमत जो कहेगा – वो होगा। है हिम्मत तो आजाओ मैदान में।” नेहरू ने उन्हें चुनौती दी थी।

चुनाव लड़े थे राजा छोटूमल ढोलू। अपनी स्वतंत्र पार्टी बना कर मैदान में कूदे थे। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि जनमत उनके साथ था। लेकिन चुनावों के परिणाम बेहद निराशाजनक निकले थे। कुल तीन सीट जीत पाई थी उनकी पार्टी। जबकि कांग्रेस नेहरू के सहारे परवान चढ़ी थी। देश में नेहरू गांधी का राज स्थापित हो गया था। नेहरू ने बड़ी ही चतुराई के साथ गांधी की सारी उपलब्धियां – यहां तक कि उनका नाम भी अपने नाम लिख लिया था।

लेकिन आज आजादी का कोई नया पर्व सामने आ रहा था।

कांग्रेस घुटनों के बल खड़ी थी और बी जे पी की दहाड़ पूरे देश पर छा गई थी। कुंवर साहब को इतना तो याद है कि बी जे पी जब खड़ी हुई थी तब इसे व्यापारियों की पार्टी कहा जाता था। कभी कभार कोई सीट जीत लेती थी लेकिन ..

“कितना बदला है वक्त?” आंख उठा कर कुंवर साहब ने जमा नेताओं को देखा था। यही लोग थे जो कभी दर-दर वोट मांगते फिरते थे और लोग इनपर हंसते थे।

“राजा साहब लंगोटिया यार थे नेहरू जी के।” भवानी धीर बताने लगे थे। सभी ने एक साथ दरबार हॉल में लगे राजा छोटूमल ढोलू के आदम कद चित्र को देखा था। “क्लास फैलो थे उनके!” वीर भद्र कह उठे थे। “इंग्लैंड में साथ-साथ लॉ की पढ़ाई की थी। कांग्रेस में भी साथ-साथ आए थे। लेकिन बंटवारे के बाद जुदा हो गए थे।”

“क्यों?” सुदर्शन प्रश्न पूछ बैठे थे।

“राजा साहब चाहते थे कि विकास गांव से आरंभ हो। किसान मजदूर को काम मिले। देश की अर्थ व्यवस्था जमीन से जुड़ी हो। लेकिन नेहरू जी उधार के आईडिए बाहर से ले आए थे। इस पर बहुत बिगड़े थे राजा साहब।” भवानी धीर ने पूरा किस्सा कह सुनाया था। “अब वक्त आ गया है कुंवर साहब!” उन्होंने अपना मंतव्य बयान किया था। “अब आप बी जे पी में आइए और राजा साहब छोटूमल ढोलू का सपना पूरा कीजिए।” वह मुसकुरा रहे थे।

“मेरा विचार कुछ और है धीर भाई!” कुंवर साहब कहीं गहरे सोच में डूबे थे। “मैं ..”

“तो आप हमें इन बहिन जी को दे दीजिए!” भट्ट जी का आग्रह था। “हमें आज हर हाल में आपको पार्टी से जोड़ना है।”

“नहीं!” सुंदरी ने हाथ उठा कर कहा था। “मैं पॉलिटिक्स ज्वाइन नहीं करूंगी। समाज सेवा में ही मेरी लगन है, बस!”

“पार्टी आपको कृषि मंत्री के रूप में देखना चाहती है, कुंवर साहब!” धीर ने बात साफ की थी। “आप किसान मजदूरों के मसीहा हैं। हमें .. आप ..”

कुंवर खम्मन सिंह ढोलू जिंदा बाद के नारे हॉल में गूंज उठे थे।

कुंवर खम्मन सिंह ढोलू बी जे पी में शामिल हो गए थे – उसी दिन!

देर रात कुंवर खम्मन सिंह ढोलू घर लौटे थे। इंद्राणी अकेली थी। बीमार थी। सुंदरी घर पर न थी। उन्होंने इंद्राणी से कई सवाल किए थे लेकिन मिला उत्तर पहेली जैसा भ्रामक था।

कुंवर खम्मन सिंह ढोलू अपनी अकेली छोटी बहिन सुंदरी को बेहद प्यार करते थे। विधवा होने के बाद से तो उन्होंने सुंदरी को अपना बेटा ही मान लिया था।

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मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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