इस्लामिक स्टेट के दूसरे सम्मेलन में शरीक होने का संदेश आन पहुंचा था।

पहली बार ही था – यस-यस पहली बार कि जब खलीफा बनने का ख्वाब मुनीर खान जलाल के जेहन में बिजली की तरह कौंध गया था।

“असंभव तो नहीं है?” आज मुनीर खान जलाल ने बड़े ही आत्म विश्वास के साथ इस बड़े विचार का आदर किया था। “मुझे पाकिस्तानी नेवी का चीफ भी तो बनना ही था?” उसने स्वयं से ही प्रश्न पूछा था। “फिर अगर मैं खलीफा बनता हूँ तो – माई गुड लक।” वह मुसकुराया था। “यही तो सिखाती है – जिंदगी। मौत के बाद जीना – एक सैनिक को ही आता है।” वह हंस पड़ा था।

दुबई जाना था। शगुफ्ता से मुलाकात होनी थी। अगला प्रोग्राम शगुफ्ता के पास था। वह नहीं चाहता था कि सम्मेलन की सूचना सुंदरी को भी दी जाए। जनरल फ्रामरोज के लिए केवल इतना ही संदेश था कि गोआ में होने वाली गोष्ठी को वो स्वयं देखें।

“जहे नसीब आप आए।” शगुफ्ता ने आज उसे नए अंदाज में रिसीव किया था। गुलमोहर सी खिली थी – वह। चेहरे पर एक अनजान प्रसन्नता खेल रही थी। कुछ था – जो शगुफ्ता के पास था। वह अनुमान लगाता रहा था।

“रोमांटिक हो रही हो?” मुनीर खान जलाल ने भी मुसकुराते हुए पूछा था।

“ठीक समझा!” शगुफ्ता ने हाथ मिलाते हुए कहा था। “आप से मिल कर न जाने क्यों मेरा तन मन जाग उठता है।” शगुफ्ता ने स्वीकार किया था। “सम्मेलन में कल जाना है।” शगुफ्ता ने सूचना दी थी। “आज ..?” वह मुसकुराती रही थी।

बड़ी चतुराई के साथ शगुफ्ता ने अपने लिए मुनीर खान जलाल के साथ एक रोमांटिक रात बिताने का प्रबंध किया था। इसका एक ही कारण था – कि बिल्ली के भागों छींका टूट पड़ा था। लगा था कि उसका चिर इच्छित प्रेमी मुनीर खान जलाल संयोग वश उसकी झोली में आ गिरा था। अनायास ही उसका तन मन फूलों की महक से महक उठा था।

“ये देखो – अटलांटिक महासागर में ये अकेला द्वीप।” शगुफ्ता मुनीर खान जलाल के कमरे में चली आई थी। और उसे एक लंबा मोटा एलबम दिखा रही थी। “इसे मैंने खरीदा है।” उसने सूचना दी थी। “बेहद रोमांटिक जगह है सर।” शगुफ्ता बता रही थी। “एकांत वास के लिए इससे ज्यादा और कौन स्थान होगा? दो प्रेमी – अकेले – निफराम – निश्चिंत और .. इन लव।” शर्मा गई थी – शगुफ्ता।

“माजरा क्या है, मैडम?” मुनीर ने तनिक खबरदार होते हुए पूछा था।

“पसंद नहीं आया?” शगुफ्ता ने प्रश्न पूछा था। “ये देखें। बीच का विस्तार। ये देखें पानी के बीचोबीच मुंह खोलती जमीन। और ये देखें उफान पर आता समुंदर और .. और ..”

“और ..?” मुनीर ने जिज्ञासा वश पूछा था।

“और मैंने इसका नाम रक्खा है – मुनीर शगुफ्ता सेज।” जोरों से हंसी थी शगुफ्ता।

“बट आई एम कनफ्यूज्ड, मैम।”

“कुछ नहीं। रिलैक्स।” शगुफ्ता ने चैप्टर बंद कर एलबम को सूटकेस में रख दिया था।

आदतन उस रात भी शगुफ्ता मुनीर खान जलाल के बिस्तर में घुस आई थी।

न जाने क्यों मुनीर खान जलाल भी भूखे भेड़िये की तरह आज शगुफ्ता से लिपट-चिपट गया था। कहीं उसके दिमाग में संघमित्रा उजागर हो गई थी। वही अनूठी, अनजानी और अलबेली उमंगें उसके तन मन में उठती रही थीं – रात भर। वह एक नए संसार का मालिक और उस अटलांटिक महासागर के अकेले निर्जन द्वीप पर संघमित्रा के साथ रोमांटिक ईद मनाता रहा था। वह गाता था और संघमित्रा संस्कृत के श्लोक सुनाती थी। वो दोनों एक दूसरे में लीन विलीन हो-हो कर एक दूसरे को सहलाते संभालते रहे थे – रात भर।

“मैं जानती हूँ कि तुम मुझे बेहद प्यार करते हो।” सुबह-सुबह शगुफ्ता ने उसे बताया था तो उसे रात का पूरा प्रसंग अच्छा लगा था। लेकिन .. लेकिन वो तो संघमित्रा थी – वह स्वयं से पूछ बैठा था।

हर औरत के जिस्म और जान दो होते हैं – आज मुनीर खान जलाल ने जिंदगी का आखिरी पाठ पढ़ा था।

लेकिन शगुफ्ता को उसने किसी सूरत में भी स्वीकार नहीं किया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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