लाख कोशिश करने के बाद भी जुनैद संघमित्रा और मुनीर खान जलाल की मुलाकात नहीं करा पाया था।

घोर निराशा में डूबा मुनीर खान जलाल अपने आप पर लानत भेज रहा था। उसे बड़ा क्रोध चढ़ आया था। वह किसी भी कीमत पर संघमित्रा को हासिल कर लेना चाहता था। वह चाहता था कि संघमित्रा के साथ वह – वह करे जो अभी तक किसी के साथ न कर पाया था। सलमा के साथ किया सहवास उसे अब सताता था। और सुंदरी के साथ गुजरे दिन उसे चिढ़ाते थे। वह जानता था कि अभी तक किसी भी औरत ने उसे अपना सब कुछ नहीं दिया था। चाहे वो शगुफ्ता ही क्यों न थी, उसे तो सभी ने ठगा था। और अब संघमित्रा का ये छल ..

मुनीर खान जलाल टी वी पर संघमित्रा को बड़े ध्यान से सुन रहा था।

नारी उत्थान के प्रोग्राम का वर्लड वाइड प्रचार प्रसार हो रहा था। संघमित्रा विश्व की नारियों को संबोधित कर बता रही थी कि नारी का सही कर्तव्य क्या है। संस्कृत के श्लोक बोलती संघमित्रा कितनी-कितनी प्यारी लग रही थी – मुनीर को बताना कठिन था। हालांकि वो उन श्लोकों का अर्थ तक नहीं जानता था लेकिन जब संघमित्रा उनकी व्याख्या करती थी तो वह जग सा जाता था। संघमित्रा विदुषी थी और उसके पास दिव्य ज्ञान था – वह जान गया था।

“ब्रह्मा ने देवता और मनुष्यों की रचना की थी और उन दोनों के बीच यज्ञ को रचा था जो मानव धर्म का अनिवार्य अंग था। यज्ञ करने से देवता प्रसन्न होते क्योंकि यज्ञ की आहुतियां उनका नाम लेकर दी जातीं। वातावरण स्वच्छ बनता। धन धान्य की उत्पत्ति होती। समय पर वृष्टि होती और मनुष्य और देवता दोनों हेल मेल से धरा धर्म का आनंद उठाते।” संघमित्रा ने आंख उठा कर अतुल भीड़ को देखा था। “लेकिन मनुष्य ने यज्ञ करना ही छोड़ दिया। हवि-सामिग्री के स्थान पर उसने बारूद का आविष्कार कर लिया। अणु बम भी बना लिया। और अब विनाश की कगार पर बैठा है – मानव।”

सभा में सन्नाटा भरा था। एक अपराध बोध हर किसी के चेहरे पर छपा था।

“लौटने का समय है, मित्रों!” संघमित्रा ने चेतावनी दी थी। “नष्ट होने के बाद ब्रह्मा भी फिर कब रचेंगे सृष्टि – कोई नहीं जानता।” मुसकुराई थी संघमित्रा।

“इसलाम के पास ऐसा ज्ञान क्यों नहीं है?” पहली बार मुनीर खान जलाल ने स्वयं से प्रश्न पूछा था। “मात्र यज्ञ करने से अगर दूषित वातावरण सुधर सकता है तो फिर हमारे वैज्ञानिक वो सब ढोंग क्यों कर रहे हैं जिसका न कोई सर है न पैर।”

आचार्य प्रहलाद और पंडित कमल किशोर की मदद से इक्कीस हवन कुंडों में यज्ञ हो रहा था। संस्कृत के विद्वान श्लोक पढ़-पढ़ कर आहुतियां दे रहे थे और बार-बार ओम के मंत्र का उच्चारण कर रहे थे। अन्य लोग भी उनके साथ-साथ ओम के मंत्र का उच्चारण कर रहे थे और हवन कुंड में आहुतियां छोड़ रहे थे।

“इस्लाम से पहले सनातन जीत लेगा अमेरिका।” अचानक मुनीर खान जलाल के जेहन में खतरे की घंटी बजी थी। “इस्लाम ने तो केवल विध्वंस के जोर पर ही जीतना है – अमेरिका। जबकि ये सनातनी तो विशुद्ध अहिंसा के जोर पर ही इस्लाम से पहले जीत जाएंगे।” मुनीर को साफ-साफ दिखाई दिया था। “ओ ब्लाडी हैल।” उसने स्वयं को चेताया था। “ऑपरेशन वंडरफुल को और तेज करना होगा हमें। हमें हर जगह अब सनातन को हराना होगा और .. और ..?”

संघमित्रा को हर कीमत पर प्राप्त करने की सौगंध वह उठाना चाहता था – लेकिन ठहर गया था।

“जुनैद!” मुनीर खान जलाल लौटने से पहले अमेरिका के हाल चाल ले लेना चाहता था। “तुम्हारे यहां जिहाद का क्या हाल है?” उसने पूछा था।

“एक सौ साल के द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता ने 96 साल की औरत से शादी की है।” जुनैद हंस रहा था। “अब जब उनके बच्चे होंगे तभी तो जिहादियों से लड़ेंगे? अब ये बूढ़े तो लड़ नहीं पाएंगे। हाहाहा!” जुनैद ताली पीट कर हंसा था। “बूढ़ा हुआ अमेरिका सर!” जुनैद ने सारांश सामने रख दिया था। “मुसलमानों को कोई नहीं हरा सकता सिवाय इन हिन्दुओं के।” जुनैद ने मुड़ कर मुनीर खान जलाल की आंखों में देखा था।

आज पहली बार था जब मुनीर खान जलाल सनातन से डर गया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading