मुनीर खान जलाल के दिमाग में एशियाटिक अंपायर का जन्म हो चुका था। अब उसे इस ख्वाब को जमीन पर उतारना था।
निविड़ रात्रि के एकांत में, ढोलू शिव के मंदिर के गर्भ गृह में अकेला बैठा राम चरन सामने पसरे दुनिया के नक्शे को गौर से देखे जा रहा था। अरब सागर का अपनी ओर का भूभाग उसे अपना एशियाटिक अंपायर जैसा ही लगा था। उसे केवल उसमें डिटेल्स भरनी थी। उसे प्राप्त करने की मुहिम बनानी थी। काम तो बड़ा था लेकिन अब वह भी छोटा न था।
“नो मोर एन एडमीरल ऑफ पाकिस्तानी नेवी!” राम चरन जोरों से हंस पड़ा था। “नो मोर ए नौकर।” उसने फिर से दोहराया था। “आई एम ए मोनार्क नाओ।” उसने स्पष्ट शब्दों में कहा था।
अचानक मुनीर खान जलाल को कराची स्थित अपना फ्लैग स्टाफ हाउस याद हो आया था। एक किलकारी की तरह सलमा जिंदा हुई थी और फिजा पर छा गई थी। दोनों बेटे – अमन और चमन उससे आ कर लिपट गए थे। सर्व सुखों का संसार था वो लेकिन – लेकिन वो था पाकिस्तान का – नौकर ही। और आज भी अगर लौटा तो ..
“बलूच के साथ तुम्हें भी वो फांसी लटकाएंगे।” शगुफ्ता की आवाजें उसने फिर से सुनी थीं।
“माई ब्लडी फुट।” राम चरन ने उस आवाज का उत्तर दिया था। “नाओ .. नाओ आई विल हैंग दी होल ब्लडी पाकिस्तान।” राम चरन की मुट्ठियां कस आई थीं। “ए करप्ट रिजीम! इसे मिट्टी में मिला दूंगा।” राम चरन ऐलान कर रहा था। “इन एशियाटिक अंपायर आई विल नॉट अलाओ दिस काइन्ड ऑफ ट्रेंड।”
एक आदर्श साम्राज्य स्थापित करने की ख्वाहिश में राम चरन गर्भ गृह से बाहर इतिहास के पन्नों पर आ बैठा था। जो अधूरा काम उसके पुरखे छोड़ गए थे – वह चाहता था कि वो काम अब पूरा किया जाए।
“जंग तो जरूर होगी।” राम चरन यह तो खूब जानता था। “लेकिन मैं जंग जीतने वाले जितने भी जनरल होंगे उन्हें बेईमानी करने पर मजबूर नहीं करूंगा। राणा सांगा की तरह मैं भी अपने विजेताओं को दिल खोल कर जागीरें बांटूंगा।” वीर भोग्या वसुंधरा – अचानक राम चरन को जनरल फ्रामरोज के पैड पर लिखा वाक्य याद हो आया था। “बिलकुल ठीक लिखा था। जंग जनरल लड़ते हैं पर पाकिस्तान में माल गीदड़ खाते हैं। हाहाहा!” हंस पड़ा था राम चरन।
न जाने क्यों अब राम चरन को हिन्दुस्तान से जंग जीतना आसान लगा था।
उसने अलग से हिन्दुस्तान के नक्शे को पढ़ा था। अलग-अलग राज्यों में, अलग-अलग तरह से लोग बसे थे। उन सब की जात पात अलग थी। रहन सहन, बातचीत और सोच विचार में भी गहरे विरोधाभास थे। एका कहीं न था। हिन्दू बुरी तरह से बंटा हुआ था। धन का भूखा था। लालची था। देश भक्त नहीं निरा पेट भक्त था। देश का युवक और युवतियां किसी नई पहचान की फिराक में थे। विदेश जाने का सपना तो हर किसी को सताता था। इस हाल में इस्लाम के कट्टर और काबिल जिहादियों से जंग जीतना हिन्दुओं के बस में नहीं था।
“न भाषा एक है, न विचार एक है और न लिबास एक है!” भारत का जन मानस बता रहा था। “हर नेता के पास अपना एक अलग राग है। हर आदमी को एक अलग स्टेट चाहिए। हाहाहा। तुम्ही बताओ मैं क्या करूं?” भारत का नक्शा राम चरन से पूछ रहा था।
“अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा मेरे अजीज हिन्दुस्तान।” हंसते हुए मुनीर खान जलाल ने जवाब दिया था। “यू विल बी एन इस्लामिक स्टेट वैरी सून। ए पार्ट ऑफ एशियाटिक अंपायर।” वह बताता रहा था।
मुनीर खान जलाल दुनिया के तमाम कनवर्टीज का अलग से भविष्य गढ़ रहा था। जो लोग अपना धर्म छोड़ इस्लाम कबूल रहे थे और जो लोग अब इस्लाम में नए जुड़ेंगे उन सब के लिए एशियाटिक अंपायर अलग से एक धरोहर होगा।
अब कनवर्टीज के साथ कोई कैसे भेद भाव कर पाएगा?
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड