सलमा हर दिल अजीज औरत थी। और सोलंकी वॉज एन ऐसेट टू द नेशन।
इन दोनों का खून हो जाना एक हृदय विदारक घटना थी। किसी ने क्यों किया होगा इनका खून – ये बात किसी की भी समझ में न आ रही थी। बेचारे मुनीर खान जलाल को तो इतना गहरा सदमा लगा था कि अभी तक मिलिट्री अस्पताल में बेहोश पड़ा था। दोनों बेटे अमन और चमन यू के से मिलने आए थे। नहीं मिलने दिया। केवल एक ही आदमी था जो मुनीर से मिल सकता था। और वो था बलूच। ये तीनों बड़े गाढ़े दोस्त थे। नारंग तो फर्स्ट नवम्बर को टेकओवर करने जा रहा था। लेकिन ..
“नसीब न हो तो कुछ नहीं मिलता जनाब!” आम जनता की राय थी। “अल्लाह को मंजूर न था। हो गई होगी कोई गलती।”
लेकिन खूनी था कौन – इस बात की चर्चा लगातार चल रही थी।
“वॉट नाओ?” बलूच मिलने आया था तो मुनीर ने आहिस्ता से प्रश्न पूछा था।
“लाई डोगो।” बलूच की राय थी। “चुपचाप आंखें बंद किए पड़े रहो। मामला अभी बहुत गरम है। पी एम भूल नहीं पा रहा नारंग को।” बलूच ने बताया था।
“लेकिन क्यों? पी एम ..”
“दोनों की सेटिंग थी। बगैर चीफ के पी एम चल कैसे सकता है?” बलूच ने अपना मत व्यक्त किया था।
“और तुम ..?” मुनीर ने दूसरा प्रश्न पूछ लिया था। वह जानता था कि बलूच ने अब फर्स्ट नवंबर को टेकओवर करना था।
बलूच ने बाजी जीत ली थी – मुनीर को अब कोई शक न था। और न उसे इस में भी कोई शक था कि वह कोई न कोई रास्ता जानता था जिसके जरिए वो उसे कहीं ठिकाने लगा देगा! उसके लिए तो अब मौत ही निश्चित थी। बलूच के पास सबूत था। सात खाली खोखे और उसकी पिस्तौल उसी के कब्जे में तो थी। और वह अब जैसे …
“फर्स्ट नवंबर को टेकओवर तो करना ही होगा” बलूच ने आहिस्ता से बताया था। “तब तक तुम यहीं ठहरो।” उसकी राय थी। “एक बार मैं चीफ बन जाता हूँ तो फिर तो ..” वह धीमे-धीमे मुसकुराया था।
बलूच की अगली प्लान फूल प्रूफ थी – मुनीर ने मान लिया था।
बलूच चला गया था। मुनीर अकेला रह गया था। अस्पताल की तीसरी मंजिल पर अकेला वह एक बेकली से भरा था। उसने खिड़की खोल कर सामने पसरे नीले आकाश को देखा था। वहां उसकी तकदीर लिखी थी – वह जानता था। लेकिन उसे पढ़ पाना उसके बस की बात न थी। जिस मोड़ पर वह आ खड़ा हुआ था – वह तो सजाए मौत के सिवा और किसी जिंदगी की बात ही नहीं करता था।
सलमा की फटी की फटी रह गई आंखों के उस पार मुनीर कई बार डोल आया था लेकिन खाली हाथ ही लौटा। सलमा ने कहां कहा था कि वो उसे प्यार करती थी?
क्या कभी सोलंकी ने सोचा होगा कि सलमा के साथ बने उन संबंधों का परिणाम क्या हो सकता था। चाहता क्या था सोलंकी।
अगर वो दोनों उसे बता ही देते कि वो एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते तो .. वो ..? नहीं-नहीं। मुनीर को भी तो सलमा ही चाहिए थी – उसने भी आज मान लिया था। लेकिन जो खेल बलूच ने खेला वह तो ..?
अब तो बाजी बलूच के हाथ में थी। वह उस पार खड़ा था – क्लीन एंड मीन। बलूच की खेली पारी पलटना अब उस के बस की बात नहीं थी। मूर्ख – उन तीनों में माना गया मूर्ख – बलूच अब चीफ बनेगा ये आश्चर्य नहीं तो और क्या था।
“लीव इट टू मी, मुनीर!” आसमान से शायद अल्लाह का आदेश आया था। “जिंदगी और मौत मैं देता हूँ – बलूच नहीं!”
मुनीर खिड़की के पार पसरे नीले आसमान को देखता ही रहा था – निरंतर।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड