भूली याद की तरह अचानक ही राम चरन को जनरल फ्रामरोज की याद हो आई थी।
अच्छा चल पड़ा था जनरल फ्रामरोज। वह हिन्दू न था। वह हिन्दुओं से ज्यादा खुश भी न था। उसकी बेटी ने किसी जर्मन से शादी की थी। सेना के साथ उसका रसूख अच्छा था। हैप्पी गो लक्की जनरल फ्रामरोज उसे एक अमूल्य निधि नजर आया था। अगर चल पड़ा तो पूरी हिन्दुस्तान की सेना को तख्ता पलट के लिए राजी करने में कामयाब हो सकता था। आदमी काम का था – राम चरन भी इस बात को जानता था।
धन धर्म से भी बहुत पहले आता है – राम चरन का अपना अनुमान था। पाकिस्तानी जनरल पैसे के भूखे थे और देश बेचने में किसी को कोई संकोच न था।
“बलूच!” अचानक ही राम चरन की दांती भिच गई थी। “दैट बास्टर्ड हैज सोल्ड द कंट्री टू चाइना।” उसे याद हो आया था। “और अगर वह चीफ बन जाता तो ..?”
“अब चीन की आर्मी मैं खरीदूंगा।” राम चरन मुसकुराया था। “ढोलू शिव का खजाना .. इतना था कि वह ..” राम चरन अनुमान लगाने लगा था। “पाकिस्तान, चीन और हिन्दुस्तान की आर्मियां एशियाटिक अंपायर के लिए नाकाफी न होंगी।” ये बात राम चरन अनुभव से जानता था। “कोई हमला अगर अरब सागर के पार से आया भी तो मुकाबला जम कर होना था। ईसाई तो अब नहीं लड़ेंगे, वह इस बात को मान रहा था।
एशियाटिक अंपायर की राजधानी हैदराबाद को नए ढंग से बसाना होगा – राम चरन सोचने लगा था। निजाम का चाऊ महाल पुराना पड़ गया था। संघमित्रा के साथ वह किसी भी कीमत पर उस खंडहर में न रहेगा। लेकिन जन्नते जहां बनने में तो वक्त लगेगा। तब तक ..?”
“क्रांतिकारियों के आश्रम में ही आश्रय लेंगे।” हंस गया था राम चरन। “संघमित्रा की उस पावन कुटीर में दो पल वो भी जी कर देखेगा।” वह फिर से मुसकुराया था। “छूएगा संघमित्रा को लेकिन सावधानी से। मैली नहीं करेगा उसे और मिलेगा उसके उन तोतों से, तितलियों से, मैना और गौरैयाओं से जो हर पल उसे प्रेम बांटते थे और उसकी प्रशंसा करते थे।”
“प्रेम नीड़ में बैठे वो दोनों एक स्वप्न देखेंगे।” राम चरन सोचे जा रहा था। “एक ऐसा लाजवाब स्वप्न जिसमें वो सब होगा जो दो अमर प्रेमियों के लिए दरकार होता है।” राम चरन का मन भागता ही जा रहा था। “हैदराबाद को ड्रीम लैंड बनाएंगे। ये पुराना गोल कुंडा का किला, वो नैकलेस रोड और लुंबिनी पार्क – सब तुड़वाना होगा, हां-हां। रामोजी फिल्म सिटी को तो ऐशियाटिक फिल्म सिटी का नाम दे देंगे और ..”
“बुर्ज खलीफा बनाने वाली कंपनी को कॉनटैक्ट करेंगे।” राम चरन को फिर से याद आया था। “उसने दुबई में कई करिश्मे किए हैं। अब हैदराबाद में भी कुछ करिश्मे तो होने ही चाहिए। धन का अभाव न था क्योंकि अब मंदिरों की खुदाई में इत्ता माल मिलेगा कि एशियाटिक सल्तनत सात पुश्तों तक बैठ कर शासन चला सकती थी। तो भी धन घाट न होगा।” राम चरन प्रसन्न था। इस बार उन पहले वालों की गलतियां न दोहराने का उसने निश्चय कर लिया था। एशियाटिक सल्तनत में इस्लाम के सिवा और किसी को दखल देने की इजाजत न होगी।” निर्णय ले लिया था राम चरन ने। “नो भाई चारा विद हिन्दूज।” उसने ऐलान किया था। “कहां सफल हुआ राजपूतों के साथ भाई चारा? और आज भी तो ..” राम चरन को अचानक कुछ याद हो आया था।
“बहुलोल लोधी चंद लुटेरों को लेकर हिन्दुस्तान आया था। सुनार की सुंदर कन्या को लूट कर निकाह किया था, और सल्तनत कायम की थी। हिन्दू औरतें ..” ठहर गया था राम चरन।
“पहले – प्रथम काम होगा संघमित्रा को लूट लेना।” राम चरन ने पते की बात पर पहले उंगली धरी थी। “उसके बाद तो सब होता ही चला जाएगा।”
दिल्ली आई थी लेकिन आज राम चरन ने दिल्ली को सलाम नहीं किया था।
“बहुत थके-थके लग रहे हो?” सुंदरी ने चाय देते हुए राम चरन से पूछा था।
“काम ही ऐसा है सुंदा।” मरी-मरी आवाज में बोला था राम चरन। “कुंवर साहब ने तो सब कुछ मेरे ऊपर ही छोड़ दिया है। और तुम भी तो ..?” राम चरन ने सुंदरी को चाहत पूर्ण निगाहों से देखा था।
“एक बार बच्चे बड़े हो जाएं – तब मैं तुम्हारे साथ ..”
“एक बार बच्चों की शादी हो जाए – तब मैं तुम्हारे साथ – यही है न तुम्हारा अगला उत्तर?”
दोनों एक साथ हंस पड़े थे, बच्चों का प्रसंग पेरेंट्स के लिए बहुत आनंद दायक होता है – यह तो सर्व विदित बात थी।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड