राम चरन ने जब आंखें खोली थीं तो सुंदरी उसका सर सहला रही थी।
“भाई साहब आए थे। सुंदरी ने धीमे से बताया था। “बदन छू कर बोले थे – इट्स फटीग। बहुत काम करते हैं।” सुंदरी तनिक मुसकुराई थी। “कह रहे थे – इन्हें आराम करने को कहो।”
राम चरन सब कुछ सुन रहा था – पर समझ न रहा था। उसे तो आंख खुलते ही खजाना दिखा था। वो दूधिया प्रकाश और वो दीवारों पर टंगे ढाल तलवार और .. और ढोलू शिव – दरवाजा बनते ढोलू शिव – और फिर दो हो कर एक होते ढोलू शिव। क्या देख लिया – राम चरन ने अपने आप से पूछा था। झूठ था या सच – वह अब होश में आ कर जान लेना चाहता था।
रानी इंद्राणी भागी चली आई थी। शिव चरन भी उनके साथ आया था। आते ही उन्होंने राम चरन का माथा छूआ था। बुखार तो नहीं है – उन्होंने घोषणा की थी। थकान ही है – उनका भी वही अनुमान था जो कुंवर साहब का था।
“तुम क्या करती हो सुंदर।” इंद्राणी सुंदरी पर झपटी थीं। “मर्द की सेहत औरत के हाथ होती है।” उन्होंने सुंदरी को समझाया था। “इत्ता काम संभालते हैं। लेकिन तुम्हें इनका खयाल ही नहीं रहता।” इंद्राणी तनिक बिगड़ी थी। “बंद करो ये सभा सोसाइटी।” वह गरजी थीं। “इनसे भी बड़ा है कोई?” उनका प्रश्न था।
औरतें कितनी चतुर होती हैं – राम चरन चुपचाप पड़ा-पड़ा सोच रहा था। आदमी को बैल बना कर काम लेती हैं और काम के अनुसार खुराक देती हैं। बूढ़ा होने पर बैल का कोई धनाधोरी नहीं होता। मन ही मन हंसा था – राम चरन।
जब शिव चरन और श्याम चरन आपस में लड़ पड़े थे और एक कोहराम मच गया था – तब राम चरन जाग गया था। दोनों उसी के बेटे थे। दोनों की शक्ल सूरत उसी से मिलती थी। दोनों ही सही मायनों में मुगल थे। अपने-अपने हक पर दोनों काबिज थे। एक वही था जो अपना हक हार बैठा था। पाकिस्तान अब उसके लिए पराया था – वो जानता था।
“इन्हें कुछ खिलाओ सुंदर।” जाते-जाते इंद्राणी ने आदेश दिया था। “न जाने कब से कुछ नहीं खाया?” उनका शक था।
सुंदरी राम चरन का मन चाहा मक्खन टोस्ट और कॉफी ट्रे में ले कर लौटी थी। उसने राम चरन को सहारा दे कर राम चरन को बिस्तर में बिठाया था। नैपकिन बिछा कर सामने प्लेट रक्खी थी और कॉफी का गिलास सावधानी से उसे पकड़ाया था।
“कुछ अंदर जा ही नहीं रहा सुंदर।” राम चरन ने शिकायत की थी।
“मन चाहा खा लो। शाम को आज कालू के यहां डिनर लेंगे। शिव चरन को भी साथ ले कर चलेंगे।” सुंदरी का सुझाव था।
अनायास राम चरन को कालू याद हो आया था। उसके दो बेटे – जो आर एस एस में बिहार चले गए थे उसे अब डरा नहीं रहे थे। आर एस एस मीन्स – सलाम-प्रणाम – उसे याद आया था। वह तनिक सा हंसा था। फिर उसे सुमेद भी याद हो आया था। उसके कान खड़े हो गए थे। हैदराबाद में सुमेद ने हंगामा मचाया हुआ था। और .. और .. वो संघमित्रा ..?
राम चरन को लगा कि उसके प्राण लौट आए हैं। वह जिंदा हो गया था और जैसे सब कुछ उसे याद हो आया था। संघमित्रा भी लौट आई होगी – उसका अनुमान था। कस्तूरी किरन लौट आया था। पंडित कमल किशोर भी लौट आए थे, अतः संघमित्रा ..
“आज शाम को मंदिर चलेंगे।” राम चरन ने सुंदरी से अजीब आग्रह किया था। “श्याम चरन को भी साथ ले चलना।” उसका आग्रह था।
सुंदरी को बेहद प्रसन्नता हुई थी। उसे लगा था कि किसी लगे सदमे ने राम चरन को शिव की भक्ति का मार्ग बताया है। ढोलू शिव तो जागृत शिव थे। उन्हें ढोलुओं के शुभ अशुभ का खयाल रहता था।
मंदिर का ध्यान करते ही राम चरन को बावली के नीचे दबा खजाना फिर से दिखाई दे गया था।
वह अब फिर से पगलाने-पगलाने को था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड