चीनियों के लिए बलूच का आगमन किसी वरदान से कम न था।

हाथ लगे इस मौके का चीनी पूरा-पूरा फायदा उठाना चाहते थे। बलूच एक बड़ा ही डायनामिक और दबंग मिलिट्री लीडर था। एक बार पाकिस्तान उसके हाथ में आने के बाद चीन के लिए सारे रास्ते खुल जाने थे। तय हुआ था कि बलूच के साथ मोटा-मोटा मामला अभी तय कर लिया जाए और उसे खरीद लिया जाए।

“पहले आप हमारा देश देखिए जरनल साहब।” बलूच के साथ आया चीनी एजेंट विनम्र निवेदन कर रहा था। “हमने ये सब आजाद होने के बाद बनाया है।” वह बता रहा था। “लोग चीन को कभी सोता हुआ ड्रैगन कहते थे।” वह खुल कर हंसा था।

“भाई अब तो आप लोग ..” बलूच ने प्रशंसा करनी चाही थी।

“वी आर ए लीडिंग नेशन।” एजेंट ने बताना शुरू किया था। “और अगर पाकिस्तान चीन के साथ आया तो .. माशा अल्लाह!”

बलूच ने भक्क से एक सपने को पकड़ा था। चीन जैसा बना पाकिस्तान का मात्र विचार उसे प्रसन्न कर गया था। अमेरिका ने तो उन्हें जिंदा रक्खा था – बस। उतना ही देते थे जितने में वो हिन्दुस्तान से लड़ते रहें। लेकिन अगर चीन ..

“हमारा दोस्ती होता है तो पक्का होता है।” एजेंट ने दूसरी गोट चली थी। “हम मिल कर मारेंगे इस इंडिया को।” उसने सीधा सुझाव सामने रक्खा था।

“और मेरे पास एक नायाब इंडिया कैंपेन की प्लान है।” बलूच से रहा न गया था तो वह बोल पड़ा था। “कब से मन है मेरा कि हम दिल्ली फतह करें।” वह बुदबुदाया था। “और अगर चीन साथ मिल जाए तो इंडिया गया।” मुसकुराया था बलूच।

एजेंट ने बड़ी ही होशियारी से बलूच को चीन द्वारा निर्मित टैंक, मिसाइल और हवाई जहाज दिखाए थे। बलूच की आंखें फटी की फटी रह गई थीं। चीन की ताकत तोल बलूच को अंदाजा हो गया था कि उन दोनों के सामने भारत कुछ न बेचता था।

“अब तो अमेरिका भी हमारी मुट्ठी में है, जनाब!” हंसते हुए एजेंट बोला था। “मानेंगे आप कि दुनिया का मार्केट चीनी गुड्स से लबालब भरा है। हमारी रोज की इनकम सुनकर आप ..”

बलूच उनकी रोज की इनकम न सुनना चाहता था। उसे तो अब पाकिस्तान की कंगाली पर रोष आ रहा था। आजाद हुए उन्हें चीन से ज्यादा वक्त हो गया था लेकिन ढाक पर वही तीन पत्ते थे। उन्हें अमेरिका ने बरबाद किया था – अचानक बलूच की समझ में आ गया था। लैट द अमेरिकन्स गो आउट – बलूच ने निर्णय कर लिया था।

आश्चर्य हुआ था बलूच को कि चीन ने उन्नति की थी लेकिन उन पर पाकिस्तान का कोई प्रभाव न था। जबकि पाकिस्तान और यहां तक कि हिन्दुस्तान भी अमेरिका के ही दीवाने थे। वास्तव में इन्हें उभरने नहीं दिया गया था – चालाकी से। अगर चीन यहां पहुंच सकता था तो क्या पाकिस्तान ..?

पांच मैंम्बरों के साथ अकेले में बलूच ने बैठक की थी और एक आर्टिकल ऑफ मैमोरेंडम तैयार कर उसपर दस्तखत किए थे। इसके चीन और पाकिस्तान दोनों बराबर के पार्टनर थे। इंडिया दोनों का कॉमन दुश्मन था। दोनों ने इंडिया को हराने के लिए अब साथ-साथ लड़ना था। जीतने के बाद आधा-आधा हिन्दुस्तान दोनों के हिस्से में आ जाना था।

चीन ने पाकिस्तान को लोन देना था, टैक्नोलॉजी देनी थी और देश का विकास करना था। ग्वादर पर बंदरगाह से लेकर सारी सड़क सुविधाएं और पी ओ के में ट्यूरिस्ट कॉम्पलैक्स बनाना था।

बलूच चीन का विशिष्ट मेहमान था। उसे हर कीमत पर खुश रखना था और खाली हाथ भी न भेजना था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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