एक सप्ताह से रह रहा था राम चरन हैदराबाद में लेकिन अभी भी उसका मन न भरा था।

दिल्ली उसे याद ही न आई थी। दिल्ली को तो उसने दिमाग से कब का कब्रगाह में बदल दिया था। उसने निर्णय ले लिया था कि दिल्ली को एशियाटिक अंपायर की मक्का मदीना बनाएगा। सारे के सारे दुनिया भर के कनवर्टीज के लिए दिल्ली एक मात्र स्थान होगा जहां वो अपने पुरखों को आकर मिल सकेंगे, आदर सम्मान दे सकेंगे और ..

और हैदराबाद एशियाटिक अंपायर की राजधानी – जन्नते जहान होगा।

राम चरन को अचानक खयाल आया था – अपना और संघमित्रा का। उसके दिमाग ने तुरंत निर्णय लिया था कि उस्मान सागर के मध्य में जहां बुद्ध की प्रतिमा खड़ी थी वहां उस प्रतिमा को तोड़ कर उन दोनों का मकबरा बनेगा – राज महल और आगरा के ताज महल को तोड़ कर सुपुर्द खाक कर दिया जाएगा।

और फिर वही दृश्य आ कर राम चरन की आंखों के सामने ठहर गया था जहां संघमित्रा इक्कीस दिन की विपासना के व्रत में उपवन के उस एकांत में बनी कुटीर में साधना कर रही थी। वह भूल ही न पा रहा था – संघमित्रा की उस पावन छवि को। सफेद बर्फ सी साड़ी में सजी संघमित्रा साक्षात दैवीय स्वरूप लगी थी। उसे देखते ही जैसे वह चली आई थी, बतियाई थी, लजाई थी, शर्माई थी और उसका चेहरा आरक्त हो आया था। और वह .. वह राम चरन उसके प्रेमी की भूमिका में मात्र उसे निहार कर मर-मर गया था। ओ अल्लाह। उसने पुकारा था। दे दे मुझे इस नायाब तोहफे को।

उसे याद है – संघमित्रा के साथ चहचहाते तोते, तितलियां, भंवरे और मोर थे। गौरैया उसका गुण गान कर रही थी और उस साधारण से कुटीर में समाई संघमित्रा एक पावन रूह जैसी थी। वह उसे छूने में भी डरा था।

चोर की तरह छुप कर राम चरन ने अपनी मंजिल – संघमित्रा को चतुराई से अपने मोबाइल में कैद कर लिया था। उसने महसूसा था कि संघमित्रा का प्राप्त खजाना ढोलू शिव के खजाने से भी ज्यादा खास था।

“जुहार जनाब।” सज्जाद मियां ने राम चरन का सोच तोड़ा था। वह हर रोज की तरह हाजिरी लगाने चला आया था।

“आओ-आओ मियां।” राम चरन ने गहक कर सज्जाद का स्वागत किया था। “मैं आपको याद ही कर रहा था। राम चरन बोला था।

“हम तो खिदमतगार हैं जनाब के।” सज्जाद हंसा था। “हमारे बुजुर्ग निजाम की हाजिरी में सात पुश्तों से चले आए हैं। सब ऊंच नीच देखी है – हमने – हैदराबाद में।” सज्जाद बता रहा था।

राम चरन को एक चलता फिरता म्यूजियम लगा था सज्जाद मियां।

“कहते हैं – निजाम दुनिया का सबसे अमीर आदमी था?” राम चरन पूछ बैठा था।

“अमीर ही क्यों जनाब वह एक कुशल शासक भी था। वक्त की बात करो – वरना तो निजाम का इरादा तो अलग ही देश बनाने का था। काश गांधी और चार साल जी जाता तो ये हिन्दुस्तान ही हमारा होता। मुझे याद है। मैं पंद्रह साल का था। निजाम से वायदा था जिन्ना का कि हिन्दुस्तान के खिलाफ जंग में पाकिस्तान हमला करेगा दोनों ओर से। निजाम ने तो पटेल को धमका दिया था। हैदराबाद से बंगाल की खाड़ी और ऊपर कश्मीर तक फैल जाने का सरंजाम था। अंग्रेजों का भी इशारा था लेकिन ..” सज्जाद तनिक ठहर गया था।

“लेकिन ..?” राम चरन ने पूछ लिया था।

“हिन्दुस्तान ने जब हमला किया तो पाकिस्तान नहीं आया। रजा कार जम कर लड़े थे। मारे गए थे, शहीद हुए थे, लेकिन हिन्दुस्तान की फौज के सामने हथियार डालने पड़े थे।” एक टीस थी सज्जाद की आवाज में। “हिन्दुस्तान की सेना ..?”

सज्जाद मियां ने सीधा राम चरन की आंखों में देखा था। वह जैसे कह रहा था – कमतर न मानो हिन्दुस्तान की सेना को जनाब। सारा गुड गोबर हो जाएगा – अगर .. जंग में सेना शरीक न हो – ऐसा तो संभव ही न था – राम चरन इतना तो जानता था।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading