ये अल्लाह की अलामत ही थी कि मुनीर खान जलाल जहन्नुम में से भाग जन्नत में पहुँच गया था।
वह बहुमंजिला इमारत पर बैठा एक खुशगवार नजारे को देख रहा था। और खुश-खुश हो रहा था। कहीं दूर गगन के उस छोर पर नीला समुद्र उससे गले मिल रहा था। कुछ किश्तियां थीं और कुछ बड़े-छोटे पानी के जहाज थे, जो वहां से आ जा रहे थे। मुनीर खान जलाल को खुशनुमा जिंदगी की सुगंध उड़ कर उसके पास पहुंच गई थी। लेकिन अब तो ..
“शेख आलम बिन अजीज आ रहे हैं।” मुनीर खान जलाल को सूचना मिली थी।
मुनीर खान जलाल खबरदार हो गया था। अभी तक तो वह होती खातिरदारी का आनंद ही उठाता रहा था। शायद आज कुछ मालूम हो कि ये मामला था क्या? कतर तो वह कई बार आया था। कतर को वह जानता था। कभी ये कतर कुछ नहीं था। लेकिन आज तो सब कुछ था। शेखडम का सरताज बन गया था ये एक छोटा सा देश।
“पाकिस्तान ही एक देश है जिसका सितारा आज तक नहीं चमका।” मुनीर खान जलाल ने कतर के वैभव को सराहते हुए कहीं दूर, बहुत दूर देखा था।
अचानक शेख आलम अजीज स्टेज पर बिछे सोफा पर आ कर बैठ गए थे।
“सलाम वालेकुम!” शेख साहब ने सामने खड़े मुनीर से मुखातिब होते हुए कहा था।
“वालेकुम सलाम!” मुनीर ने बड़ी ही आजिजी से झुक कर उत्तर दिया था।
शेख साहब लंबे चौड़े और तंदुरुस्त आदमी थे। उनके चेहरे मोहरे पर एक अलग तरह का नूर था। चेहरे पर काली दाढ़ी जम रही थी। लंबे चौड़े परिधान में वो और भी लंबे चौड़े लग रहे थे।
“मिशन खलीफा के बारे कितना जानते हो?” शेख साहब ने मुनीर को सीधा प्रश्न पूछा था।
मुनीर खान जलाल चुप ही बना रहा था। उसे तो कोई इल्म ही न था कि ये बला मिशन खलीफा था क्या?
“मिशन खलीफा का मतलब है कि हम – माने कि सारे मुसलमान एक हाथ में शरिया तो दूसरे हाथ में कुरान लिए दुनिया के हर गली कूचे में हाजिर हों और अलख जगाएं – इस्लाम का।” तनिक मुसकुराए थे शेख साहब। “कर पाएंगे?” वह मुनीर को पूछ रहे थे।
मुनीर के जेहन में पूरी दुनिया के मैरी टाइम रहे रास्तों का खाका खिंच गया था। लेकिन गली कूचों का तो उसे कोई इल्म ही न था।
“हमने तुम्हारा डोजर पढ़ा है, मुनीर। आला अफसर रहे हो। बाबर पर तुम कमांडर थे जब जंग में पाकिस्तान ..”
“हम हारे नहीं थे जनाब!” मुनीर खान जलाल तुरंत बोला था। “जहाज में आग न लगी होती तो हमने ..”
“तुम बड़े बहादुर हो, हम जानते हैं मुनीर।” हंस गए थे शेख साहब। “लेकिन ये जंग अलग है, अनूठी है। हमारे पुरखे भी तो लड़े थे। जहां कोई नहीं पहुंचा था, वो पहुंच गए थे। कुछ कम करके नहीं गए हैं, हमारे लिए। हमें तो अब बस उन्हीं मुकामों और मुद्दों को जिंदा भर करना है।”
मुनीर के दिमाग में एक तूफान उठ बैठा था। यहां तो आना ही फिजूल था। सर्विस लाइफ ..
“अलग होती है सर्विस लाइफ – ये तो हम भी जानते हैं मुनीर।” शेख साहब ने उसके मनोभाव ताड़ लिए थे। “ये इस्लाम की खातिर अलग तरह की एक कुर्बानी है। अभी तक तो तुम देश के लिए लड़े थे लेकिन अब इस्लाम के लिए लड़ोगे। मिशन खलीफा में तुम पार्टनर होगे और जब ये दुनिया इस्लाम का पानी भर रही होगी तुम ..”
“मिशन खलीफा इज – मिशन इंपॉसिबल, सर!” मुनीर खान जलाल से रहा न गया था तो बोल पड़ा था। “आज की दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी है। लोग सचेत हैं। इस्लाम के झांसे में अब कोई भी आने को नहीं जनाब, आज की हवा ..”
“हाहाहा!” जोरों से हंसे थे शेख साहब। “मुझे पता था – तुम यही कहोगे मुनीर। कोई नहीं। शुक्रवार को मिलते हैं। मीटिंग है। सभी लोग आ रहे हैं।” कह कर शेख साहब उठे थे ओर चले गए थे।
आसमान से गिरे खजूर में अटके। अचानक मुनीर के मुंह से निकला था। आसान काम है क्या जो यूं ही दुनिया को जीत लेगा?
मुनीर का मन उदास हो गया था। वह सोच रहा था कि कैसे भी कहीं भी भाग जाए।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड