जंग होगी। जगत की जंग होगी। और मुनीर खान जलाल मन प्राण से लड़ेगा इस जंग में।
“क्योंकि उसे अब हर कीमत पर, हर हाल में और हर-हर मायनों में संघमित्रा को हासिल करना ही था।
“तुम तो सलमा के लिए भी लड़े थे, मुनीर? तुमने तो ..” वक्त पूछ बैठा था।
“हां-हां! तब मैं पागल था। मैंने प्रेग्नैंट सलमा से निकाह पढ़वाया था और उससे पूछा तक न था कि ..” मुनीर कबूल कर रहा था। “लेकिन .. सलमा ..” चुप हो गया था मुनीर।
और इस चुप्पी के बीच से ही सलमा चली आई थी। कराची स्टेशन पर सलमा – उसकी पत्नी और दो बेटों की मां, एक जानी मानी शोशलाइट थी। कोई भी फंक्शन हो – सलमा वहां होती थी। सलमा के लिए अलग से गाड़ी थी, विद ड्राईवर। वह तो अपने ऑफीशियल काम में लगा रहता था। लेकिन सलमा कराची स्टेशन पर फ्रेंक एंड फेयर का एक ब्रेंड बन गई थी।
“चल मुनीर आ चलते हैं।” अचानक ही बलूच घर पर आ गया था। छुट्टी थी। “तुझे दिखाता हूँ आज कैबरे।” उसने मुनीर के कंधे पर हाथ रक्खा था।
“नहीं यार।” मुनीर शरमाया था। “मैं .. मैं ये सब ..”
“देख! विस्की की बोतलें हैं। देख। स्नेक्स भी लेकर आया हूँ। मेरी गाड़ी दरवाजे पर खड़ी है। चल न यार। मजा खत्म न कर।”
मुनीर का मन आया था कि सलमा को फोन पर बता दे कि वह बलूच के साथ बाहर जा रहा था। लेकिन वह रुक गया था। वह जानता था कि सलमा बलूच के नाम से ही कतराती थी। वह बलूच के साथ आकर चुपचाप गाड़ी में बैठ गया था।
कैबिन में दोनों अकेले थे। बलूच ने बोतल खोल ली थी। दोनों गिलासों में विस्की डाल, चियर्स का नारा लगा पीने लगे थे। मुनीर ने झेंप मिटाने के लिए एक लंबा घूंट भरा था और बलूच के साथ हो लिया था। उस एकांत में विस्की और स्नेक्स के साथ आनंद लेता मुनीर बलूच को बार-बार थैंक यू कह रहा था। दोनों दोस्त अब कैबरे की खिड़की खुलने के इंतजार में थे। मुनीर की आंखें नशे में चूर थीं और तभी सामने की खिड़की आहिस्ता-आहिस्ता खुली थी और दो निर्वसन शरीर सामने आ गए थे। दोनों सांपों की तरह एक दूसरे से लिपटे हुए थे।
“ओह नो ..!” मुनीर बिदका था। “ओह – नो-नो!” उसने जोरों से सर हिलाया था। “सलमा? उसने जैसे प्रश्न पूछा था। “नारंग ..?” उसने साफ-साफ देख लिया था।
जैसे सूरज चढ़ आया था। मुनीर के जेहन में भक्क उजाला कर गया था।
अमर और चमन सोलंकी के ही दोनों बेटे थे – मुनीर ने आज मान लिया था। और उसने आज मान लिया था कि सलमा भी सोलंकी की थी। उसे तो सलमा ने जैसे दिहाड़ी पर रक्खा हुआ था। वह जो उसे देती थी – वो तो .. वो तो रिश्वत सरीखा ही था। उसकी प्रेम प्रीत तो सोलंकी के संग ही थी।
“अल्लाह!” मुनीर के मुंह से आह निकली थी।
मुनीर की दांती भिच गई थी। उसे क्रोध चढ़ आया था। वह सुध बुध भूल बैठा था। उसका हाथ भीतर की जेब में धरी नाइन नॉट नाइन पिस्तौल को बाहर खींच लाया था। मैगजीन में दस गोलियां थीं। मुनीर ने दाहिना हाथ सीधा किया था और खिड़की पर टिका दिया था। ट्रिगर दबा था। एक-दो-तीन और चार! चारों गोलियां नारंग को लगी थीं। नारंग का खून में लथपथ शरीर एक ओर लुढ़क गया था। यह देख सलमा की आंखें फटी की फटी रह गई थीं। उसने फिर से ट्रिगर दबा दिया था। एक-दो-तीन! तीनों गोलियां खा सलमा ने भी दम तोड़ दिया था। वह मुड़ा था। उसे पता था कि और तीन गोलियां शेष थीं। वह अब बलूच को ..
लेकिन बलूच जमीन पर जा गिरे गोलियों के खाली खोखों को उठा रहा था। उसने सात गिने थे ओर अपनी जेब में डाल लिए थे।
मुनीर पर नशा तारी हो गया था। वह सुधबुध भूल बैठा था। बलूच ने उसके हाथ से पिस्तौल ले ली थी। उसने सावधानी से मुनीर को संभाला था, उठाया था और लाकर गाड़ी में रख लिया था। उसे वह अपने घर ले आया था।
जैसे कोई अनमोल रतन था मुनीर बलूच ने उसे बड़ी ही सावधानी से सहेज लिया था।
बलूच ने जंग जीत ली थी – मुनीर को होश आने लगा था। बलूच अब चीफ बनेगा वह जानता था। उसने अपना उपवन स्वयं उजाड़ दिया था – उसे सुध थी। अमन और चमन उसके नहीं थे – पराए थे उसने मान लिया था।
उसे अब फांसी की सजा होगी – मुनीर खान जलाल को इस में कोई शक न था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड