इस्लाम बुरा नहीं है पर बड़ा नहीं है – पंडित कमल किशोर का दिया उत्तर राम चरन को सोने नहीं दे रहा था।
प्रशांत खामोशी थी। राम चरन अकेला ही था जो जाग रहा था। उसे अपनी चलती सांसों का शोर सुनाई दे रहा था। उसे अंधेरों के उस पार खड़ी कुतुब मीनार साफ-साफ दिखाई दे रही थी। ढोलू शिव मंदिर से तो कई गुना ऊंची थी। फिर क्या नहीं था इस्लाम में जो बड़ा नहीं था?
दिल्ली में जो भी बड़ा था – वह इस्लाम का ही तो था। लाल किले से लेकर जामा मस्जिद तक और ताज महल से ले कर चार मीनार तक सब इस्लाम की ही तो देन थी। देश तो अभी भी मुसलमानों का ही था। इस्लाम का परचम आज भी लहरा रहा था। फिर भी इस्लाम बड़ा क्यों नहीं था?
आज मंदिर का नंगा फर्श राम चरन की देह में चुभ रहा था।
क्या सड़क तो क्या गली बाजार सब पर ही तो नाम लिखा था इस्लाम का। यहां तक कि हर गांव घोष सभी इस्लाम के नाम पर थे। राम चरन सोचे ही जा रहा था।
“इस्लाम के मानने वाले आज भी समर्थ हैं, शक्तिशाली हैं, धनवान हैं और बेशुमार हैं, पंडित जी! आप किस खयाल को जीते हैं?” राम चरन पंडित कमल किशोर से प्रश्न पूछ रहा था।
राम चरन ने खूब सोने की कोशिश की थी पर नींद थी कि आ कर ही न दे रही थी।
“ये देखो, इस्लाम के इंस्टीट्यूट्स, पंडित जी!” राम चरन अब भी नींद में बड़बड़ा रहा था। “मक्का-मदीना कभी सुना है आपने?” वह पूछ रहा था। “क्या आप जानते हैं कि मुहम्मद ने ..?”
“खून की नदियां बहाने से कोई बड़ा नहीं बनता राम चरन!” पंडित कमल किशोर उसे अब समझाने लगे थे। “आज तुम दुश्मन को पराजित करोगे तो कल वो तुम्हें .. समाप्त कर देगा!” वो हंसे थे। “गुलाम बनाना गलत है!” पंडित जी ने अंतिम वाक्य कहे थे। “सनातन किसी को गुलाम नहीं बनाता। सबको स्पेस बांटता है – बराबरी प्रदान करता है और मानवता का आदर करता है जबकि इस्लाम ..”
राम चरन अब पंडित कमल किशोर को नहीं सुन रहा था।
“मुझे भी वरदान दो शिव!” राम चरन हाथ बांधे ढोलू शिव के सामने खड़ा था। “मुझे वरदान दो कि मेरे मनोरथ पूरे हो जाएं।” बड़े ही विनम्र भाव से बोला था वह।
राम चरन जान गया था कि शिव उदार थे, शिव मन मनोरथ पूरा करते थे, शिव मांगने पर सब कुछ दे देते थे। सभी का आदर था शिव के दरबार में तभी शिव की सबसे ज्यादा पूजा होती थी। तभी शायद पूरे संसार में शिव मंदिर ही पाए जाते थे। शायद – हां-हां शायद कभी शिव .. पूरे संसार में ..
राम चरन तनिक अकुला गया था। उसे कहीं लगा था कि वो अभी सोने में ही इस्लाम से कहीं आगे निकल गया था। जहां शिव से उसे वरदान मिलने की उम्मीद थी वहीं मुहम्मद शायद ..
“गलत!” राम चरन ने स्वयं से कहा था। “एक दूसरे का गला काटने कौन नहीं घूम रहा?” उसका प्रश्न था। “इंसान और जानवर सभी तो लड़ते हैं। सभी को अपना सब कुछ पहले चाहिए, विकसित चाहिए और बेशुमार चाहिए!” उसने आंख उठा कर ढोलू शिव को देखा था। ढोलू शिव मुसकुरा रहे थे। “इस्लाम सब कुछ हासिल करता है और सनातन नंगा घूमता है। हाहाहा! ये शिव भी तो नंगे ही रहते हैं!”
“पंडित कमल किशोर लोगों को गलत शिक्षा देते हैं!” राम चरन ने मान लिया था। “कभी वक्त आने पर पूछूंगा इन्हीं से कि इस्लाम छोटा कहां से है?”

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड