लियाकत मियां – हिन्दू मुसलमानों के प्यारे लियाकत मियां राम चरन के स्वागत हेतु लखनऊ के हवाई अड्डे पर माला लिए खड़े थे – अकेले।
लियाकत मियां न प्रसन्न थे और न उत्साहित थे। उन्हें कई सारी दुविधाएं और व्याधाएं खाए जा रही थीं। अभी-अभी तय हुआ अन्तर धर्म सद्भावना समझौता उनके दिमाग में चक्कर काट रहा था। उन्हें लगा था कि भारत में हिन्दू मुसलमान एकता की ये एक अच्छी बुनियाद पड़ी थी। रहमत और कृपा के बीच की बात को सहर्ष रख लिया गया था। उन्हें यूसुफ नियाजी की गजल – वसुधैव कुटम्बकम में कहा – मुझको सुकून मिलता है मेरी अजान से – यह देश सुरक्षित है गीता के ज्ञान से, बार-बार याद आ रहा था।
“वोट बैंक की राजनीति ने सारे सद्भाव की धज्जियां उड़ा दी हैं। हिन्दू मुसलमानों को पास-पास बैठने तक नहीं दिया जाता!” लियाकत मियां टीस आए थे। “और अब ये कोई राम चरन आ रहा है। जासूस है – और पता चला है ..” लियाकत मियां ने टोपी उतार सर खुजलाया था। “खुदा खैर करे!” उन्होंने प्रार्थना की थी।
आती भीड़ में लियाकत मियां ने अंदाजे से ही राम चरन को पहचान लिया था।
क्या ऐसा ही होता है जासूस – स्वयं से प्रश्न किया था लियाकत मियां ने। ये तो .. ये तो कोई बड़ा और ऊंचा ओहदेदार लगता है। क्या लेने आया होगा हिन्दुस्तान में – लियाकत मियां कयास लगाते रहे थे।
“लियाकत मियां ..?” उस आदमी ने सीधे ही उन्हें आ कर पकड़ लिया था। “मैं राम चरन!” उसने हंस कर परिचय दिया था।
“आदाब!” लियाकत मियां ने उसका खैर मकदम किया था और माला पहनाई थी। “आप से मिल कर ..”
“वो तो सब ठीक है लियाकत मियां! अब ये बताइए कि यहां हवा का रुख ..”
“सौहार्द पूर्ण है!” लियाकत मियां की जुबान पर आया था लेकिन वो रुक गए थे। राम चरन तो एक जासूस था। उसे तो ..। “आ गए हैं आप लखनऊ तो खुद परखिएगा!” लियाकत मियां हुआ वार बचा गए थे।
राम चरन ने खोजी निगाहों से लियाकत मियां को ऊपर से नीचे तक देखा था।
बड़े ही चतुर आदमी लगे थे – लियाकत मियां। राम चरन खबरदार हो गया था। उसे एहसास हुआ था कि शायद उसे गलत लीड़ मिली थी। शायद ..
“पहली बार आए हैं लखनऊ?” लियाकत मियां ने पूछा था।
“जी! ठीक फरमाया!” राम चरन ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया था। “सुना तो बहुत है लखनऊ के बारे!” उसने मुड़ कर लियाकत मियां को घूरा था। “बताएंगे कुछ ..?”
“नवाबों का शहर था कभी!” लियाकत मियां ने सोच कर उत्तर दिया था। “ऐसी रौनक थी कि लोग आज भी याद करते हैं। लेकिन बंटवारे के बाद से तो ..”
“सब हिन्दुओं का हो गया?”
“नहीं! ऐसा तो नहीं है। लेकिन ..”
“तो हो जाएगा?” हंसा था राम चरन। “इट्स जस्ट ए मैटर ऑफ टाइम!” उसने अपना मत जाहिर किया था। “मुगालता मत पालिए लियाकत मियां!” राम चरन ने हल्के से चोट मारी थी – लियाकत मियां को।
लियाकत मियां चुप हो गए थे। उन्हें एहसास हो गया था कि राम चरन जरूर ही किसी इरादों को ले कर लखनऊ पहुँचा था। और वह चाहेगा कि वो भी उसी के इरादे के पक्ष में खड़े हो जाएं! और वो ये भी चाहेगा कि वो ..
“गद्दारी करोगे?” कोई लियाकत मियां के भीतर से आवाज दे कर पूछ रहा था।
लियाकत मियां सहसा एक धर्म संकट में आन फंसे थे।
“जंग तो होगी!” राम चरन ने अचूक अस्त्र का इस्तेमाल किया था। “हिन्दू मुसलमानों के बीच तो जंग होकर ही रहेगी!” राम चरन ने बात दोहराई थी। “और जीत अंततः इस्लाम की होगी!” वह हंसा था। “बशर्ते कि आप – लियाकत मियां हमारे साथ लड़ें!” राम चरन ने चालाकी से एक शर्त रख दी थी।
“मैं हिन्दुओं के साथ क्यों होऊंगा?” लियाकत मियां ने उत्तर दिया था।
“वोट बैंक नहीं – शासक बनो मियां!” राम चरन ने अंतिम कील ठोकी थी लियाकत मियां के इरादों में। “हम शासक थे!” उसने लियाकत मियां को याद दिलाया था। “और अब फिर शासक बनेंगे!” उसने जोर दे कर कहा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड