नए भारत के निर्माण की हवा आज राष्ट्रपति भवन में आजादी से डोल फिर रही थी।
चुनावों में अभूतपूर्व विजय हासिल करने के बाद आज सब नया-नया लग रहा था। लोग नए थे, इरादे नए थे, हवा नई थी और शपथ ग्रहण का आयोजन भी नया था। स्वयं कुंवर खम्मन सिंह ढोलू आज नए नूतन इरादों से लबालब भरे थे। लगा था आज वो पहली बार आजाद भारत में लौट रहे थे।
सहसा उन्हें इंद्राणी आती दिखाई दी थी। उसके साथ बड़े साले जन्मेजय भी थे। सुंदरी नहीं थी। लेकिन क्यों? सुंदरी ..
छोटी बहन थी कुंवर साहब की और राजा छोटूमल ढोलू की परम प्रिय बेटी थी। सुंदरी को खूब लाढ प्यार मिला था। पढ़ाई लिखाई भी विदेश में हुई थी। सुंदरी का व्यक्तित्व निखर आया था। अकेले हाथों ढोलू शिव का मेला लगाया था और चलाया था। खूब प्रशंसा हो रही थी।
सुंदरी नारी शक्ति का एक सशक्त उदाहरण बन कर समाज के सामने आई थी। शादी के बाद ही विधवा हो जाने पर उसने समाज सेवा का व्रत लिया था। वो महेन्द्र को भूल नहीं पाई थी। लाख कहने पर भी उसने दूसरी शादी नहीं की थी।
“आई एम प्राउड ऑफ हर!” कुंवर साहब ने सगर्व लंबी सांस ली थी। “एक दिन सुंदरी भी उन्हीं की तरह ..” वह सोचते रहे थे।
इंद्राणी को न जाने क्या मर्ज थी? सारे उपाय करने के बाद भी बीमार पड़ी रहती थी। कुंवर साहब ने निगाहें भर कर इंद्राणी को देखा था। अजीब सी चिंता रेखाएं दिखी थीं – इंद्राणी के सुंदर चेहरे पर। क्या करते कुंवर साहब?
“चन्नी!” सुंदरी ने राम चरन को पुकारा था। मेले से भाग दोनों अपने परम एकांत में ऐश ले रहे थे। “तुम मुझे भगा कर ले चलो!” सुंदरी ने अप्रत्याशित मांग राम चरन के आगे रख दी थी। “यहां अब मेरा मन नहीं लगता। तुम्हारे यहां जा कर ..” सुंदरी ने राम चरन को उसकी आंखों में देखा था।
राम चरन चुप बना रहा था। वह अपलक सुंदरी को देख रहा था।
“डरो मत!” सुंदरी धीमे से बोली थी। “जो भी होगा .. जैसा भी होगा – मैं शिकायत नहीं करूंगी!” वह कह रही थी। “अब तो हम भले बुरे सब में शामिल हैं, चन्नी!” सुंदरी ने राम चरन का स्पर्श किया था – मानो वह उसे सोने से जगा रही थी।
“नहीं सुंदा!” राम चरन जैसे किसी लंबी यात्रा से लौटा हो – संभल कर बोला था।
मानो सुंदरी के ऊपर कोई गजब का गोला फटा हो – ऐसा लगा था उसे!
“भाई साहब ..?” सुंदरी को अचानक याद हो आज था कि कुंवर साहब का आज शपथ समारोह होना था और वह जा न सकी थी। “भाभी जी ने बताया तो होगा जरूर!” सुंदरी को पूर्ण विश्वास था। “फिर ..?” वह कुछ समझ न पा रही थी कि क्या करे?
बार-बार फोन आने के बाद भी सुंदरी नारी शक्ति की मीटिंग्स में जा न सकी थी। उसे अपने राम चरन के साथ मनाते प्रेम पर्व के सामने सब बेकार लगा था। जैसे पहली बार ही उसने पुरुष का स्पर्श किया हो – और उठा उन्माद झेला हो – ऐसा लगा था उसे। अब खोजने के बाद भी उसे राम चरन का अता-पता नहीं मिला था। कौन था ये राम चरन – यह प्रश्न कोरा था और अभी तक कोरा ही खड़ा रहा था।
लेकिन सुंदरी किसी भी कीमत पर अब राम चरन को छोड़ना न चाहती थी।
राम चरन के साथ जिए सहवास से सुंदरी के भीतर एक नई नारी का जन्म हुआ था। वह नारी अपने प्रेमी के सिवा और किसी की भी सगी नहीं थी। सुंदरी राम चरन के लिए बड़े से बड़ा उत्सर्ग करने को तैयार थी। लेकिन राम चरन ..?
औरत मर्द की इतनी गुलाम क्यों हो जाती है?
सुंदरी इसी प्रश्न के उत्तर ढूंढने फिर से मेले में जा मिली थी।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड