रूमी, शगुफ्ता सोलंकी और मंजूर अहमद इन तीनों के बीच अकेला स्टूडेंट था मुनीर खान जलाल, जिसे इन तीनों ने मिल कर राम चरन बनाया था।
“आप को भूलना पड़ेगा कि आप इतने सीनियर ऑफीसर हो और मैं एक मामूली ट्रेनर हूँ।” रूमी ने जा कहा था आज एडमिरल मुनीर खान जलाल को सुनाई देने लगा था। “अपनी मर्जी से आपने ये एसाइनमेंट लिया है और अब ट्रेनिंग हमारी मर्जी से लेनी पड़ेगी!” उसका दो टूक ऐलान था। “आई एम योर गॉड फादर नाओ।” रूमी ने स्पष्ट शब्दों में कहा था। “अब जो भी मैं कहूंगा – दैट इज गोसपेल ट्रुथ फॉर यू!”
“मंजूर है!” सर झुका कर मुनीर खान जलाल ने मान लिया था।
रूमी अपने फन का माहिर था। उसे हिन्दू, उनकी कल्चर, स्वभाव, चाल-चलन और ऐक्शन-रिएक्शन जबानी याद थे। उनके तीज त्योहार और उनके देवी देवताओं के बारे में रूमी पूर्ण ज्ञानी था। मुनीर खान जलाल की काया को खोल कर उसने एक-एक नुक्ता नए ढंग से रोपा था – उसके शरीर में और उसके स्वभाव में। तब जा कर वो राम चरन बना था।
और मंजूर अहमद एक अलग ही विद्या का खिलाड़ी था। वो उसका हैंडलर नियुक्त हुआ था। उसने एक ऐसी गुपचुप की कार्य शैली सिखाई थी जिसे सामान्य आदमी ताड़ ही न सकता था। प्रश्न उत्तर की कला मंजूर से ज्यादा शायद ही कोई जानता हो।
और शगुफ्ता सोलंकी! ओह गॉड! इस औरत में जो खूबियां हैं वो अल्लाह की अनोखी अदाएं ही हैं। सुंदर तो नहीं है लेकिन इसकी जैसी ब्यूटी – जादूगर है – जादूगर!
“उम्मीद से आगे निकल गए सर आप।” शगुफ्ता ने बगल में बैठे उससे कहा है। “ये जो आपने राम चरन का करैक्टर डिस्पले किया है ..”
“तुमने ही तो क्रिएट किया है। मैं तो केवल एक्टिंग कर रहा हूँ।” मुनीर खान जलाल ने टोका था शगुफ्ता को।
“नहीं सर!” मंजूर अहमद उलम आया था। “वो ठीक बोली है। मैं तो आप के इस किरदार राम चरन का कायल हो गया हूं। कोई अनुमान तक नहीं लगा सकता कि आप एक एडमिरल हैं, सीनियर ऑफीसर हैं और ..”
“अब तक तो आप टेकओवर कर लेते!” शगुफ्ता चहकी है। “लेकिन ..” उसने मुनीर खान जलाल की आंखों में झांका था।
इन दोनों का एक ही प्रश्न बार-बार सामने आता है और उसे सताता है कि क्यों – उस एडमिरल ने सब कुछ छोड़ा और जासूस बन गया?
“मौत के मुंह में आ बैठे हैं आप!” मंजूर कहने लगा था। “लेकिन क्यों?”
“देश के लिए। कौम के लिए। इस्लाम के लिए और ..”
“अब भी झूठ बोल रहा है!” उन दोनों ने एक साथ मन में सोचा था। “सर! हम तो मानते थे कि आपकी पत्नी सलमा की उस हादसे में मौत और आपका ..” मंजूर अहमद ने हिम्मत जुटा कर शंका पेश की थी।
“आपके दोनों बेटे अमन और चमन ..?” शगुफ्ता ने भी उसे भूला एक सपना याद दिलाया था।
“तुम लोग नहीं समझोगे कि इस मिशन की इंपोर्टेंस क्या है?” मुनीर खान जलाल की आवाज तनिक ऊंची थी। “कौम के लिए कुर्बानी देने का आलम भी अलग है, दोस्तों!” उसकी आंखों में एक चमक लौट आई थी। “दुनिया पर अब इस्लाम का राज होगा और ..”
“आप का तो कद अब आसमान से भी ऊंचा होगा सर!” मंजूर अहमद बोला था।
लेकिन शगुफ्ता सोलंकी ने मुनीर खान जलाल को चाहत पूर्ण निगाहों से देखा था।
“या अल्लाह! ये आदमी ..” शगुफ्ता सोलंकी सोचती रही थी। “कल कित्ता बड़ा आदमी बनेगा?” वह अनुमान लगाना चाहती थी।
“आई लव यू ..!” शगुफ्ता सोलंकी ने हिम्मत जुटा कर मुनीर खान जलाल से कहा था और उसके गाल अनारों से लाल हो आए थे।
“आई लव यू टू!” मुनीर खान जलाल बोला था और हंसा था।
मुनीर खान जलाल जानता था कि शगुफ्ता सोलंकी वॉज ए बिच।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड