“राम चरन!” किसी ने उसे नाम ले कर पुकारा था। राम चरन को पहली बार लगा था मानो किसी बिच्छू ने उसे डंक मारा हो। मुड़ कर उसने देखा था।
सामने एक युवक – कोई ऋषि कुमार तुल्य अनोखी साज सज्जा में सजा वजा खड़ा था। राम चरन ने कई बार आंखें झिपझिपा कर उस युवक को पहचानने का प्रयत्न किया था। लेकिन उसकी समझ में कुछ न आया था।
“आज हमारा प्रवचन होगा – मंदिर में।” वह युवक फिर से बोला था। “बंदोबस्त कराइये!” उसने आज्ञा दी थी।
राम चरन ने मुड़ कर पंडित कमल किशोर को देखा था।
पंडित कमल किशोर का प्रदीप्त चेहरा काला पड़ गया था। क्रोध था कि उनके दिमाग पर चढ़ता ही जा रहा था। सुमेद ने सारा गुड़ गोबर कर दिया था। मैरी एंड जॉन्स स्कूल छोड़कर अब वह इस नए स्टंट पर उतर आया था। इस में राजेश्वरी का भी हाथ था। उसी ने रमा को बुला कर ये फिल्म वालों के से कपड़े तैयार कराए थे। उसी ने सुमेद को सहारा दिया था। उसी ने लाख समझाने पर उनकी बात न मानी थी।
“मैं नहीं चाहती कि ये भी तुम्हारी तरह का निखट्टू रह जाए!” राजेश्वरी ने उन्हें ताना मारा था। “बाहर निकलेगा तो कुछ तो करेगा।” राजेश्वरी का अपना ऐलान था। “देश सेवा करना बुरी बात है क्या?” राजेश्वरी का तर्क था।
“पढ़ लिख कर कुछ बन जाता!” टीस कर कहा था पंडित कमल किशोर ने। “एक मौका मिला था। कुछ सहारा कुंवर साहब भी लगा देते। मिनिस्टर हैं ..! लेकिन ..” वह जैसे स्वयं को ही समझा रहे थे।
“तुम हमें पंडित सुमेद जी कह सकते हो।” राम चरन ने फिर से सुना था। “मंदिर में अतिथियों को आदर से बिठाते जाओ!” राम चरन को आदेश मिला था।
राम चरन झटपट काम में जुट गया था। उसने प्रवचन होने की व्यवस्था भी लमहों में कर डाली थी। पंडित कमल किशोर का मौन अभी तक न टूटा था। वह आज अपने में ही कैद हो कर बैठे रहे थे।
“मित्रों! मैं पंडित सुमेद जी हूँ और मेरे पास आपके लिए एक अमर संदेश है।” प्रवचन का आरंभ हुआ था। “हमें नए भारत की रचना करनी है। हमने हिन्दू राष्ट्र बनाना है। हमने देश में जो कूड़ा कचरा भरा है उसे साफ करना है।” सुमेद रुका था। उसने सभी जमा भक्तों के चेहरों को बदलते देखा था। “मेरा अभिप्राय है – हमारे देख में रहते विदेशियों, ईसाइयों और मुसलमानों को देश से निकाल बाहर करना है।” सुमेद के तेवर बदले थे। “हमें धर्म निरपेक्ष बना कर मूर्ख बनाया गया है। ये हमारे देश को फिर से हड़प लेने की एक चाल है। ये लोग अपना जनमत बढ़ा रहे हैं। धर्मांतरण करा रहे हैं। बच्चे बना रहे हैं। और एक दिन हमें ये हमारे देश से निकाल बाहर करेंगे।” सुमेद का चेहरा चमक रहा था। उसकी धारदार आवाज लोगों पर असर करती दिख रही थी। श्रोतागण तनिक तिलमिला उठे थे। उन्हें पहली बार ये सब सुनने को मिल रहा था।
“ये जो हिन्दू, मुसलिम, सिक्ख ईसाई – सब हैं भाई-भाई – का एक ढोंग है।” सुमेद एक संदेश दे रहा था। “ये सब हिन्दुओं को पागल बना कर अपनी-अपनी गोट पका रहे हैं।” सुमेद ने हाथ उठा कर चेतावनी दी थी। “और एक दिन ये हमारी पीठ में खंजर घोंप देंगे और हिन्दुओं के देश में ये हिन्दुओं को ही बेगाना बना देंगे!”
न जाने क्यों जमा लोगों के चेहरे खिल उठे थे।
पंडित कमल किशोर को षड्यंत्र रचता सुमेद किसी मुसीबत को बुलाता लगा था।
राम चरन तो आज बेहोश होने को हो गया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड