ढोलू प्रॉपर्टीज़ प्राईवेट लिमिटिड सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स की घोषणा होने के बाद फिजा पर नाम छा गया था। ऊंचे से ऊंचे बाजार भाव पर प्रॉपर्टी बेचता राम चरन चर्चा में आ गया था। वी आई पी मुख्यतः राम चरन के क्लाइंट थे। चूंकि कुंवर खम्मन सिंह ढोलू का रिश्ता राम चरन के साथ अब जग जाहिर था अत उसकी शाख भी कई गुना बढ़ गई थी। धनी मानी लोग सुनहरी लेक एनक्लेव में बसेरा बना रहे थे।
“वक्त है – हमें अब डी पी पी एल का विकास करना चाहिए!” राम चरन ने प्रस्ताव रक्खा था।
सुंदरी, इंद्राणी और कुंवर साहब ने एक साथ राम चरन को देखा था।
सुंदरी को गर्व था कि राम चरन – उसकी चॉइस, एक सर्व श्रेष्ठ व्यक्ति था। कुंवर साहब को भी राम चरन एक क्रूसेडर लगा था। इंद्राणी ने पहली बार महसूस किया था कि राम चरन का रिश्ता ढोलुओं के लिए किसी वरदान से कम न था।
“अब और क्या विकास करेंगे?” प्रश्न कुंवर साहब ने ही किया था।
“नए-नए प्रोजैक्ट, नए-नए ठिकानों पर लाते हैं।” राम चरन ने सुझाव दिया था। “करोड़ों आते हैं। अब बैंक कमा रहा है, हम नहीं। हमें अपने पैसे को फरदर इनवैस्ट करना चाहिए। प्रॉपर्टी का धंधा तो भारत ही नहीं विदेशों में भी चलेगा। दुबई से लंदन तक हम जा सकते हैं।”
“तो जाओ!” इंद्राणी बोल पड़ी थी। “रोका किसने है?” वह हंस रही थी। “किस्मत है! अगर कमाती है – तो डर क्या है?”
इंद्राणी ने मुड़ कर कुंवर साहब को देखा था। कुंवर साहब भी सहमत लगे थे। सुंदरी राम चरन को नई निगाहों से निरख परख रही थी। कहीं ये परिंदा उड़ान भरने की तो नहीं सोच रहा था – सुंदरी का अपना प्रश्न था। लेकिन यथार्थ में राम चरन की राय गलत न थी।
“मेरा मन है कि ढोलू चेन ऑफ फाइव स्टार होटल्स ऑल ओवर द वर्लड स्टेबलिश की जाए।” राम चरन का नया प्रस्ताव सामने आया था। “दुनिया में अब फाइव स्टार का क्रेज और भोग अब तो हर आदमी का सपना है, ये फाइव स्टार! और अगर हम कामयाब होते हैं तो देश ही नहीं दुनिया हमारी होगी।” हंस रहा था राम चरन।
एक बेहद मोहक स्वप्न उन सब के सामने आ कर लंबे पलों तक खड़ा रहा था। राम चरन का ये प्रस्ताव पारित हो गया था। कुंवर साहब ने उसे इजाजत सौंप दी थी। ढोलू स्टेट का कर्ता धर्ता अब राम चरन को ही मान लिया गया था। सुंदरी बेहद प्रसन्न थी। उसका उजड़ा घर संसार फिर से लहलहा उठा था।
“तुम भी कुछ करोगी?” अचानक इंद्राणी ने सुंदरी से प्रश्न पूछा था।
एक साथ सबने मुड़ कर सुंदरी को देखा था। सुंदरी अब सकते में आ गई थी। उसके समझ में इंद्राणी का किया प्रश्न खड़ा ही रहा था। जब राम चरन मुसकुराया था तब सुंदरी भी लजा गई थी।
“हां भाई!” कुंवर साहब भी मुसकुराते हुए बोले थे। “घर आंगन में जब तक बच्चों की किलकारियां सुनने को न मिलें तब तक तो भूतों का वास ही होता है।” कुंवर साहब ने सुंदरी को देखा था और हंस पड़े थे।
“भूतों का नहीं अब तो पूतों का आगमन होगा।” सुंदरी ने मन में संवाद कहा था, और पलकें झुका ली थीं।
औरत की कोख हरी होने के बाद ही संसार सूत्र का प्रत्यागमन होता है – यह तथ्य आज उजागर हो गया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड