आज सात दिन हो गए थे। राजेश्वरी ने पंडित कमल किशोर से सीधे मुंह बात न की थी।

“कसूर तो बताओ महारानी!” पंडित कमल किशोर आज अड़ गए थे। “मेरी जान ही ले कर रहोगी!” उन्होंने राजेश्वरी को याचक निगाहों से देखा था।

अपने सामने हार मानते पंडित कमल किशोर राजेश्वरी को बहुत प्यारे लगे थे।

“क्यों ..?” बिगड़ते हुए बोली थी राजेश्वरी। “रमा साथ गई थी मंदिर। उसका कितना मन था कि ..” तनिक ठहर कर राजेश्वरी ने पंडित जी को घूरा था। “उस राम चरन से मिल लेती तो ..”

“क्यों ..?” पंडित जी तनिक रूठे थे। “क्या है वो राम चरन?” उन्होंने जोर देकर कहा था। “जिसे देखो ..” वो रुके थे। “वो .. वो सुंदरी ..?” क्रोध चढ़ने लगा था उन्हें। “पागल हो गई है ये औरत!” उन्होंने बुरा भला कहा था।

“क्या बुराई थी मिलने में? कपड़े भी तो रमा ने ही बना कर दिए हैं!” राजेश्वरी ने बड़ा दाव खेला था। “देखा! कैसा सिनेमा का सा हीरो लगता है।” राजेश्वरी ने राम चरन की फिर से प्रशंसा की थी। “लेकिन नहीं जी! वो तो उन राजे रजवाड़ों का गुलाम है ..” राजेश्वरी जहर उगलने लगी थी।

“मत भूलो राजेश्वरी कि हम उन्हीं का दिया खाते हैं।” पंडित कमल किशोर ने सचेत किया था राजेश्वरी को। “सुमेद का एडमीशन ..” पंडित जी ने सीधा राजेश्वरी की आंखों में देखा था।

तनिक सी शर्म चढ़ आई थी राजेश्वरी की आंखों में – कुंवर खम्मन सिंह ढोलू के प्रति बड़ा ही आदर भाव था राजेश्वरी के मन में। बड़े ही उदार व्यक्ति थे – कुंवर साहब।

पंडित कमल किशोर को दूसरी चिंता सताने लगी थी। वह जानते थे कि रानी साहिबा ने कुंवर साहब को राम चरन के बारे जरूर बताया होगा। कभी भी कुंवर साहब का फरमान आ सकता था। पूछेंगे तो जरूर कि ये राम चरन कौन सी बला थी? तब देने के लिए क्या उत्तर होगा? कैसे बताएंगे कि राम चरन ..

“भगा दो इस आदमी को!” पंडित जी के विवेक ने सुझाया था।

राम चरन एक अनबूझ पहेली सा पंडित कमल किशोर के सामने आकर खड़ा हो गया था। बड़ा ही सुघड़, आकर्षक और चतुर आदमी था। जो वो लगता था – वो, वो आदमी न था। हर किसी की आंख मंदिर में आने के बाद राम चरन पर ठहर जाती थी। और वह हर किसी की सेवा में हाजिर हो जाता था। और ..

“कालू ने भी तो उसे पाला हुआ है?” पंडित जी को एक भीतरी ज्ञान भी हुआ था। “न जाने क्यों .. कालू ..?” मन आया था कि एक बार चल कर देख लें कि कालू के साथ उसकी क्या साठ गांठ थी।

“तुम राम चरन से स्वयं ही प्रश्न क्यों नहीं पूछते?” पंडित जी का अंतर बोला था।

“इसलिए कि .. नोट ..” उत्तर स्वयं ही चला आया था।

पैसा बुरी बला होता है – ये बात पंडित कमल किशोर खूब जानते थे। लेकिन पैसे की उन्हें दरकार जो थी। सुमेद के खर्चे बढ़ गए थे। राजेश्वरी भी आजकल शॉपिंग पर जाने लगी थी। रमा का आना जाना भी एक मुसीबत बनता जा रहा था। उन सब के लिए पैसा भी तो चाहिए था।

“राम चरन चला गया तो .. सब चौपट!” मान गए थे पंडित कमल किशोर।

अब उन्हें कुंवर खम्मन सिंह ढोलू के पूछने पर उत्तर तो देना ही था कि ये राम चरन था कौन? फिर उन्होंने निश्चय किया था कि आज शाम को चढ़ावा लेने से पहले ही वो पूछेंगे राम चरन से कि वो था कौन?

कहीं दूर – बहुत दूर बैठा राम चरन हंस रहा था। उसके पास तो इन सारे प्रश्नों के उत्तर पहले से ही थे।

बहुत ही हाजिर जवाब था – राम चरन।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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