“लो आज तक का हिसाब” कालू ने जेब से नोट निकाल भोंदू को थमाए थे। “कल से मत आना!” उसने आदेश दिया था। “काम बंद कर रहे हैं।”
भोंदू ने भौचक आंखों से कालू को देखा था। जी तोड़ काम के बदले पेट भर खाना मिलता था और महीने में छोटी मोटी पगार पा जाता था भोंदू .. लेकिन अब?
श्यामल भी कालू का आदेश सुन सकते में आ गई थी। वह जानती तो थी कि जब से राम चरन गया था – ग्राहक टूटे थे। बहुत सारा खाना बच कर आ जाता था – बिकता नहीं था। लेकिन – लेकिन काम करने का मतलब तो था कि ..
“क्या हुआ?” श्यामल ने डरते-डरते कालू से पूछा था।
“राम चरन ..” कालू ने सबब बताना चाहा था।
“अब क्या हुआ राम चरन को?” श्यामल ने बिगड़ते हुए पूछा था। “अब क्यों आया?” वह जानना चाहती थी।
स्कूल से लौटे अरुण वरुण भी काम बंद होने की सूचना सुन दंग रह गए थे।
कालू आराम से आराम कुर्सी पर लंबा लेट गया था। जीवन में पहली बार उसे आराम कुर्सी पर आराम से बैठना भला लगा था। लगा था मारामारी की जिंदगी से आज अचानक उसे निजात मिली थी। आज अचानक ही वह अंधेरों से उठ उजालों में चला आया था।
“हुआ क्या पापा?” अरुण ने डरते-डरते पूछा था।
“क्या राम चरन ने कोई ..?” वरुण ने शक जाहिर किया था।
कालू तनिक मुसकुराया था तो श्यामल की जान में जान लौटी थी।
“ये लिफाफा दे कर गया है।” कालू ने बड़े ही इत्मीनान से उस जंगी लिफाफे को कुर्ते की भीतर की जेब से बाहर खींचा था और अरुण को पकड़ा दिया था। “देखो इसमें क्या लिखा है।” कालू ने अपने बड़े बेटे की परीक्षा लेनी चाही थी।
अरुण ने लिफाफा खोला था और बड़ी देर तक उसे पढ़ता रहा था।
“ये तो .. ये तो आपके नाम सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स में रेस्टोरेंट की रजिस्ट्री है पापा!” अरुण ने चहकते हुए कहा था।
“सच ..?” श्यामल भी लहकी थी।
“मुझे दो! मैं पढ़ता हूँ!” वरुण ने लिफाफा झटक लिया था।
कृतार्थ हुए परिवार ने कालू का मन मोह लिया था।
“अब वह ढोलुओं का दामाद है!” कालू बताने लगा था। “एक लंबी कार में आया था। वह भी उसके साथ आई थी। दोनों ने खाना खाया था। जाने से पहले मुझे पुकारा था – ओ मास्टर!” कालू ने सब कुछ कह सुनाया था।
किताबों में लिखी कहानी जैसा प्रसंग था ये। गरीब की किस्मत जागी और बन गए अमीर!
अब रेस्टोरेंट का नाम घर का खाना नहीं रक्खेंगे!” श्यामल बड़ी देर के बाद बोली थी। “इसका नाम होगा .. इसका नाम होगा कली राम का काफिला ..”
“अरे ये क्या कह रही हो अम्मा!” अरुण कूदा था। “ग्राहक पढ़ते ही भाग लेगा!” वह जोरों से हंसा था।
“रेस्टोरेंट का नाम होगा – जागृति जलपान गृह!” वरुण ने नया नाम सामने रक्खा था।
“यही ठीक है!” कालू ने हाथ उठा कर वरुण का समर्थन किया था।
पूरी रात गारत हो गई थी, लेकिन परिवार आज सोने का नाम न ले रहा था। तरह-तरह के सपने और तरह-तरह की संज्ञाएं उन के पास आ आकर चली जातीं लेकिन नींद ही थी जो हर बार उन्हें अकेला छोड़ जाती!
“मेहनत नहीं नसीब का मिलता है – आदमी को!” कालू आज मान गया था। “राम चरन का भी तो नसीब ही जागा था। वरना तो वह भी बरतन धोता था – उसके!”
कालू परिवार के लिए नया सवेरा था यह!
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड