चिराग ऑडीटोरियम आगंतुकों से खचाखच भरा था। प्रशांत खामोशी थी। वही आवाज लौटी थी।
“केवल और केवल कोरे कागज पर ही लिखी जा सकती है कोई इबारत! कच्ची उम्र में ही हम इन्हें अपने उसूल समझा सकते हैं। एक बार पच्चीस पार होने पर आदमी अच्छा बुरा पहचानने लगता है। उसके लिए अलग रास्ता है। लेकिन छात्रों को कच्ची उम्र में ही हमें समझा देना है कि अल्लाह उनसे क्या चाहता है, और उन्हें बदले में अल्लाह से क्या हासिल होगा? उन्हें जन्नत मिलेगी और जन्नत में उन्हें हूरें हासिल होंगी जिनका भोग वो कर सकेंगे और अल्लाह के चाहने वालों में उनका नाम लिखा होगा!
उन्हें काफिरों को क्यों मिटाना है – ये उन्हें समझाना है। मिटाना नहीं है तो उन्हें मिलाना है, मनाना है, लाना है अपने बीच ताकि इस्लाम का संगठन बढ़े, बड़ा हो और दुनिया पर छा जाए! हमें हिन्दुओं को सनातन का संन्यासी नहीं इस्लाम का मुल्ला बनाना है। हमें बताना है कि ये योग – रोग है। ब्रह्मचर्य बकवास है, आदमी इक्वल्स टू ऐश – ये आज का फॉरमूला है और इस्लाम इसकी इजाजत देता है। हिन्दू युवक आज इस्लाम की रूढ़ियों को अस्वीकार नहीं करता बल्कि उसकी सहूलियतों को स्वीकार करता है – उनका आदर करता है।
चाहे पढ़े लिखे हिन्दू हों या ईसाई हों – ये अपने बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। इनके बच्चे किसी अपने की तलाश में भटक रहे हैं। और वो अपनापन हमारे पास है। अल्लाह की रहमत में उनका आदर है – उनका स्वागत है। हमें इस मौके का भरपूर फायदा उठाना है।
मंजिल अब ज्यादा दूर नहीं है दोस्तों! आप लोगों को कामयाबी मिल रही है – ये भी हम जानते हैं। दूर-दूर से आ कर युवक इस्लामिक स्टेट जोइन करने आ रहे हैं हर मुल्क से, हर धर्म से और हर दिशा से, युवकों ने इस्लामिक स्टेट का रास्ता ढूंढ लिया है, जिहाद को अपना लिया है और वो हमारे मिशन में शामिल होने को तैयार हैं – हर कीमत पर राजी हैं।”
आवाज बंद हो गई थी। खामोशी लौट आई थी।
लोग उठ-उठ कर जलपान करने जा रहे थे। मुनीर खान जलाल, शगुफ्ता सोलंकी और मंजूर अहमद तीनों साथ-साथ उठे थे और जलपान करने चल पड़े थे। तीनों चुप थे। अपने-अपने विचारों में उलझे थे। मुनीर खान जलाल को हिन्दुस्तान का नक्शा दिखा था तो शगुफ्ता सोलंकी और मंजूर अहमद मुनीर खान जलाल को बारीकी से पढ़ने में लगे थे। उन्हें इस आदमी के ऊपर पाकिस्तान लौट कर रिपोर्ट दायर करनी थी।
“अगर सुंदरी को पता चल जाए सर कि आप ..?” शगुफ्ता सोलंकी ने एक नुकीला तीर प्रश्न की तरह मुनीर खान जलाल के सीने में भेद दिया था।
चाय और स्नेक्स टेबुल पर आ चुके थे। मुनीर खान जलाल की निगाहें गरम-गरम समोसों पर टिकी थीं। और न जाने कैसे उसने समोसे के बीच से सिजलिंग शगुफ्ता का जन्म होते देख लिया था। शगुफ्ता उससे आ लिपटी थी। शगुफ्ता के पूछे प्रश्न का यही उत्तर था।
“फिर आप किस मर्ज की दवा हैं मैडम?” मुनीर खान जलाल ने शगुफ्ता के छोड़े तीर को लौटा दिया था।
मंजूर अहमद जोरों से हंसा था। उसे भी शगुफ्ता का सारा खेल समझ आ रहा था।
“बलोच को कमांड तो नहीं मिली थी?” मंजूर अहमद का प्रश्न था।
“नहीं!” शगुफ्ता सोलंकी बोली थी। “अटैच हो गया था। उस पर शक था – डबल मर्डर का शक। वही तो नैक्स्ट सीनियर था। उसी को नारंग के चीफ बनने से खतरा था। उसे तो टाइम बार्ड हो कर घर चले जाना था। अतः उसने लगा दिया जिगरी दोस्त को ठिकाने!” हंस गई थी शगुफ्ता।
“खुला नहीं केस?” मुनीर खान जलाल ने शगुफ्ता से ही पूछा था।
“कमाल तो यही है सर जी कि इतना संगीन केस आज तक नहीं खुला है! अच्छा किया कि आप इधर चले आए! नेवल चीफ बन कर वहां भी क्या धरा था?”
एक खुशी की लहर मुनीर खान जलाल के चेहरे को छू कर गायब हो गई थी।
“अल्लाह ने चाहा तो अब आप ..” शगुफ्ता ने मुनीर खान जलाल के हाथों का स्पर्श किया था। “लेकिन हमें मत भूल जाना – मेरे हुजूर!” उसने मधुर मुसकान के साथ आग्रह किया था।
“आप ही तो हमारे रेस के घोड़े है, सर!” मंजूर अहमद ने भी विनती की थी। “मैंने भी आप पर ही दाव लगाया है। इस बार आप जरूर जीतेंगे!”
“और .. और .. खलीफा-ए-आजम मुनीर खान जलाल! चियर्स!” शगुफ्ता ने दोनों हाथ उठा कर जय घोष किया था।
मुनीर खान जलाल को शगुफ्ता का संदेश मिल गया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड