“गाड़ी लग गई है, साहब!” ड्योढ़ी से आ कर दरबान ने सूचना दी थी।

ढोलू सराय पर शाम ढल रही थी। बड़ा ही खूबसूरत मौसम था। सूरज किले के पीछे जा छुपा था। सुखद पुरवइया छूट गया था। आसमान ललोंही विभा से भरा तना खड़ा था।

इंद्राणी और सुंदरी मंदिर जा रही थीं।

इंद्राणी का अष्टावरी का व्रत पूर्ण हुआ था। आज अंतिम पूजा थी। मंदिर जाने के लिए बड़े ही सात्विक ढंग से तैयार हुई थी इंद्राणी। लेकिन सुंदरी का लिबास आज अलग ही था। इंद्राणी ने एक नजर भर कर सुंदरी को देखा था।

सुंदरी को इंद्राणी ने मां की तरह ही पाला था। उनकी शादी पर यह छोटी थी। बिन मां की बच्ची को इंद्राणी ने कलेजे से लगा लिया था। लेकिन जो शिक्षा दीक्षा इंद्राणी को मिली थी वो सुंदरी को नसीब नहीं हुई थी। उसे तो कॉन्वेंट में पढ़ाया था। उसके बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में उसने दाखिला लिया था। वहीं सुंदरी की मुलाकात महेंद्र से हुई थी। दोनों चर्चा में आ गए थे। दोनों का प्रेम विवाह हुआ था लेकिन ..

“विधवा है सुंदरी!” अचानक इंद्राणी को याद आया था। “लेकिन ..?” आज उसका मन बिगड़ रहा था। “शिक्षा का प्रभाव है – शायद!” इंद्राणी ने सोचा था और सहज होने का प्रयत्न किया था।

कार सरपट दौड़ रही थी। लेकिन सुंदरी के मनोभाव उससे भी ज्यादा तेज गति से भाग रहे थे। वह कार की खिड़की के बाहर देख रही थी। वह देख रही थी कि राम चरन उसे बुला रहा था .. पुकार रहा था और ..

मंदिर में धूमधाम थी। व्रत पूजा पूरी होने पर स्त्रियों का शाम का उत्सव मंदिर में ही पूरा होना था। ढोलू शिव का आशीर्वाद इस अवसर पर लेना आवश्यक था। पंडित कमल किशोर बहुत व्यस्त थे और उनसे भी ज्यादा व्यस्त था राम चरन!

“ये कौन है?” जब राम चरन इंद्राणी के सामने प्रसाद देने झुका था तो उसने प्रश्न किया था। “ये .. ये आदमी पहले तो ..?” अचकचा गई थी इंद्राणी। “और .. सुंदरी?” उसने प्रश्न चिन्ह लगाया था।

इंद्राणी ने सुंदरी और राम चरन की आंखें चार होते देख ली थीं।

इंद्राणी के भीतर आज पहली बार एक ज्वालामुखी की जन्म हुआ था। उसे सहसा याद आया था कि विधवा स्त्री का जीवन तो साधना संपन्न ही होता है। सुंदरी को आज तक वह समाज सेविका मान कर अभिमान से भरी रहती थी। लेकिन आज जो उसने देख लिया था वह तो ..

घर लौटते वक्त जहां इंद्राणी एक परम विषाद से जंग कर रही थी वहीं सुंदरी राम चरन के दिए स्पर्श को बार-बार चूम रही थी। जब राम चरन उन्हें कार तक छोड़ने आया था तब तो पंडित कमल किशोर भी चकित दृष्टि से उस दृश्य को देखते ही रहे थे। उस दिन राम चरन को जमा लोगों ने नई निगाहों से देखा था। फैशन डिजाइनर ने उसका परिधान ही कुछ इस तरह तैयार किया था कि उन कपड़ों में राम चरन कोई दिव्य पुरुष दिखता था। और जब वह दिव्य पुरुष उन दोनों रॉयल नारियों को कार तक छोड़ने स्वयं चल कर गया था तो प्रश्न चिन्ह के ऊपर प्रश्न चिन्ह लगते ही चले गए थे।

पंडित कमल किशोर की तो आज रूह कांप उठी थी। वह जानते थे कि घर पहुंचते ही रानी साहिबा ने राम चरन का जिक्र कुंवर खम्मन सिंह ढोलू से अवश्य करना था और उसके बाद ..

“दया करना .. शिव ..!” पंडित कमल किशोर ने कातर निगाहों से ढोलू शिव का ही स्मरण किया था।

लेकिन सुंदरी आज आपा खो बैठी थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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