“जन्मेजय को तो नहीं बताया?” कुंवर साहब का पहला प्रश्न था और पहला शक था।

“नहीं!” इंद्राणी ने डरते-डरते कहा था।

“क्या इसी लिए तुमने जन्मेजय को बुलाया था?”

“हां!”

“गुड!” कुंवर साहब को तनिक सा सहारा मिला था।

जन्मेजय एक समर्थ हस्ताक्षर का नाम था। जो किसी के काबू ना आए उसे यह आदमी – जन्मेजय नकेल डाल देता था। कुंवर साहब आफत जाफत में हमेशा जन्मेजय को ही याद करते थे। क्राइम और कानून दोनों ही जन्मेजय के दोस्त थे। कुंवर साहब को तो केवल उसे राम चरन को दिखाना भर था। उसके बाद तो ..

“कट इट शॉर्ट डियर!” कुंवर साहब जन्मेजय को हुक्म देने वाले थे। “न सांप मरे न लाठी टूटे – जैसा!” उनका सुझाव था। “शपथ लेने के बाद अगर ये काण्ड खुला तो ..” उन्होंने चेतावनी साथ में दे दी थी। “सुंदरी अगर गायब हुई तो ..?” कुंवर साहब इस प्रश्न पर आ कर अटक गए थे।

“अगर केस खुला तो क्या उत्तर देंगे – खम्मन सिंह जी आप?” अब कुंवर साहब ने स्वयं से ही प्रश्न पूछा था।

सुंदरी ने बहुत ही गंभीर सिचुएशन पैदा कर दी थी। इसमें तो ढोलू वंश तक डूबने की आशंका थी। राज घराने का चरित्र जब राम चरन जैसे किसी घटिया पुरुष के पास से भी गुजरेगा तो शर्म तो आएगी! वो तो मुंह दिखाने लायक भी न रहेंगे।

“कहां कच्चे में हाथ डाला है, बेईमान ने।” कुंवर साहब ने राम चरन को कोसा था।

अचानक ही कुंवर साहब के मन में राम चरन से मिलने की सूझ फूटी थी। कम से कम देख तो लिया जाए कि ये जादूगर चीज क्या थी जिसने उनकी प्यारी बहन सुंदरी को – जो एक तेज तर्रार महिला थी, फांस लिया था? ये कोई साधारण पुरुष तो हो ही नहीं सकता था। जरूर कोई पेशेवर पुरुष ही होगा। इसका कोई भी मोटिव हो सकता था। ये हो सकता था – कोई जासूस या कि कोई ब्लेकमेलर जो चाहता होगा उन्हें ब्लेकमेल करना। भारत देश का कृषि मंत्री होना कुछ होना तो था। जरूर इस आदमी का कोई न कोई मोटिव तो था।

“जन्मेजय को बताना होगा।” कुंवर साहब ने निर्णय लिया था। “यों अनभोर में हाथ डालना ठीक न होगा।” उनका दूसरा विचार था।

अगर बात बिगड़ गई तो – तरह-तरह की चर्चाएं होंगी।

कुंवर साहब जानते थे कि सबसे पहले तो सुंदरी की फोटो अखबारों के मुख पृष्ठों पर छपेगी, फिर एक प्रेम कहानी का जन्म होगा। फिर ढोलू वंश का आदि अंत से ले कर सब का सब लिखा पढ़ा जाएगा। प्रेस मानेगा नहीं! उनका इंटरव्यू तो जरूर ही होगा। उनसे तो प्रेस कुछ भी पूछ सकता था। देश के कृषि मंत्री का जब जनाजा निकलेगा तो पार्टी के लोग ..

बड़े चाव के साथ नई पार्टी जॉइन की थी कुंवर साहब ने। लेकिन अब वो गहरे सोच में डूबे थे। लोगों को कितनी उम्मीदें हैं उनसे। लेकिन ..

मन आया था कि एक बार सुंदरी को बुला कर पूछ तो लें कि ये तमाशा क्या था? इंद्राणी झूठ नहीं बोलती – वो जानते थे। वह सुंदरी को मां का सा प्यार देती थी – यह भी सच था। और यह भी सच था कि सुंदरी हर तरह से स्वतंत्र थी और सच्चरित्र भी थी। उसका भी तो नाम था। उसकी भी ख्याति थी और समाज में एक स्थान था। फिर ऐसा क्या हुआ जो ..

सुंदरी से तो कभी स्वप्न में भी ऐसी अपेक्षा न थी।

“नहीं! सुंदरी को बुला कर शर्मिंदा नहीं करूंगा!” कुंवर साहब ने निर्णय कर लिया था। “नारी की लाज ही तो उसका असली श्रृंगार है!”

विभ्रम के इन पलों से कुंवर साहब बहादुरी से लड़ते रहे थे।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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