राम चरन लियाकत मियां के साथ उनकी बग्गी में बैठ लखनऊ शहर की सैर पर निकला था।

आज पहला मौका था जब राम चरन अपनी खोजी निगाहें पसार स्वयं ही देख लेना चाहता था कि यहां इस्लाम के उत्कर्ष की क्या संभावना थी? लखनऊ शहर उत्तर प्रदेश की राजधानी था और कभी इस्लामी सभ्यता का प्रतीक भी रहा था। अतः राम चरन अनुमान लगाना चाहता था कि अपने मिशन को आगे बढ़ाने में लखनऊ कहां टिकता था? बरेली साथ में था और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी तथा देवबंद भी उत्तर प्रदेश में ही अवस्थित थे। यहीं इस्लाम का दिल धड़कता था। राम चरन को लियाकत मियां ने बताया था।

“आप पाकिस्तान क्यों नहीं गए लियाकत मियां?” राम चरन ने पहला तीर छोड़ा था।

लखनऊ शहर की भीड़-भाड़ में लियाकत मियां की बग्गी दिल की धड़कनों की तरह भाग रही थी। लियाकत मियां खबरदार हो कर राम चरन के साथ बैठे थे। एक जासूस के साथ यों शहर की सैर करना उन्हें बड़ा ही अटपटा लगा था। अतिरिक्त तरह से खबरदार होते हुए उन्होंने राम चरन को शकिया निगाहों से देखा था।

“हमारे अब्बा हुजूर नवाब सज्जाद हुसैन के दीवान थे। वो पाकिस्तान जाते-जाते अब्बा हुजूर को अपनी लुटी-पिटी विरासत पकड़ा गए थे।” लियाकत मियां बहुत संभल कर बयान कर रहे थे। “उन्हें तो यही उम्मीद थी कि हमें हिन्दू काट खाएंगे!” लियाकत मियां ने बुरा मुंह बना कर कहा था। “लेकिन भला हो इन हिन्दुओं का हुजूर जो ..” लियाकत मियां ने राम चरन के चेहरे को पढ़ा था। “बड़ी ही नेक कौम है हिन्दू!” लियाकत मियां का ईमानदार बयान आया था। “सच कहता हूँ जनाब ..” लियाकत मियां कहते रहे थे, लेकिन राम चरन सुन नहीं रहा था।

“ये क्या तमाशा है लियाकत मियां?” राम चरन ने गोमती के किनारे पर इकट्ठे हुए लोगों के हुजूम को देख कर पूछा था।

“उर्स का मेला लगा है, जनाब!” लियाकत मियां बताने लगे थे। “यहां मटका पीर की दरगाह है! हर साल मेला भरता है। दुनिया जहान से लोग मन्नत मांगने आते हैं। हिन्दू, मुसलमान और सभी दीन दुखी पहुंचते हैं। चढ़ावे में गुड़, चना, दूध दही या जो भी श्रद्धा से मटके में आ जाए – लाते हैं और पीर पर चढ़ाते हैं।”

“क्यों?”

“इसलिए जनाब कि मटका पीर का मटका मशहूर था, जिससे वो लोगों को पानी पिलाते थे और दीन दुखियों के सारे दुख दूर हो जाते थे।”

“कौन थे ये मटका पीर?”

“कहते हैं – ईरान से कोई दरवेश आए थे – हजरत शेख अबु बाकर मूसी कलंदरी। सन 1206 के लगभग आए थे। उनका 785 वां उर्स चल रहा है। तब दिल्ली में कुतुबुद्दीन ऐबक की सल्तनत चल रही थी।” लियाकत मियां घटना का बयान करते रहे थे।

“चल कर देख भी लें?” राम चरन ने गहक कर पूछा था।

“क्यों नहीं!” हंस गए थे लियाकत मियां। “हलवा पूरी और आलू की सब्जी खाने को मिलेगी!” वो बता रहे थे। “आलू की सब्जी में प्याज और लहसुन नहीं डालते। हिन्दू आते हैं न। बड़ी संख्या में तो हिन्दू ही आते हैं।” लियाकत मियां ने खुलासा किया था।

“बड़ी ही नेक कौम है!” राम चरन कहना चाहता था लेकिन हंस कर रह गया था।

अचानक राम चरन की निगाहों के सामने पूरे भारत देश में बने मजार और मकबरे सबूतों की तरह उठ खड़े हुए थे और गवाही भरने लगे थे कि हिन्दुओं की इस नेक कौम ने कभी उनकी एक ईंट तक न निकाली थी जबकि मुसलमानों ने बामिया बुद्ध को अफगानिस्तान में तोपों के गोले मार-मार कर घायल कर दिया था – मिटा दिया था।

“अगर बंटवारा न होता तो अभी तक भारत इस्लाम का होता – राम चरन ने महसूस किया था। जाते-जाते चाल खेल गए थे – अंग्रेज – उसकी समझ में आ गया था।

Major Kripal Verma Retd.

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading