कविता ~
प्रिये ! तुम झाडू हो !!
घर का सुपडा साफ़ –
कर गई सखियों की बरात !
मंहगाई के आघात –
सहे कैसे ये कोमल गात ?
गुलाबी गालों का ये रंग _
करे सेबों को भी बदरंग !
स्वाद में आड़ू हो –
प्रिये ! तुम झाडू हो !!
…………..
कृपाल
कविता ~
प्रिये ! तुम झाडू हो !!
घर का सुपडा साफ़ –
कर गई सखियों की बरात !
मंहगाई के आघात –
सहे कैसे ये कोमल गात ?
गुलाबी गालों का ये रंग _
करे सेबों को भी बदरंग !
स्वाद में आड़ू हो –
प्रिये ! तुम झाडू हो !!
…………..
कृपाल