by Major Krapal Verma | Sep 22, 2025 | स्वामी अनेकानंद
गहरी नींद लेकर आनंद अलसुबह ही जग गया था। उसने महसूसा था कि इतनी गहरी नींद वो शायद ही आज तक सोया हो। क्यों था ऐसा? अचानक उसे उत्तर मिला था – एक चाय वाला। उसकी कोठी। उसकी आमदनी। भीतर का डर – भूखों मरने का भय और पूरी उम्र बेकार बनकर सड़कों पर घूमने की जहालत...
by Major Krapal Verma | Sep 21, 2025 | धर्मयुग में प्रकाशित
“मैनी-मैनी हैप्पी रिटर्न्स ऑफ द डे।” लोकेन्द्र ने बैठक में अंदर आते ही कहा था। लोकेंद्र, रानी और रंजीत की शादी की सालगिरह पर फूलों का महकता गुलदस्ता और लाल डिब्बे में बंद कफ लिंक्स ले कर आया था। रानी ने साभार फूलों के गुलदस्ते को स्वीकारा। सेंट की खुशबू...
by Major Krapal Verma | Sep 21, 2025 | स्वामी अनेकानंद
“गुरु। वो तो फिर आ गया।” कल्लू शोर मचा रहा था। “पांच रुपये मांगेगा!” कल्लू का डर था। “कदम तो साला खाली जेब आता है घर से । और मेरे पास पैसे हैं नहीं।” कल्लू की मुसीबत थी। “लड़ाई होगी गुरु।” कल्लू ने अंजाम बताया था।...