कविता
प्रिये तुम पीड़ा हो। आये दिन उत्पात - पड़ौसिन से चलते व्याघात। नजर की छैनी से - मरे कुछ वैंणी सेे। नशीली दवा,तम्बाकू के - पान का बीड़ा हो - प्रिये तुम पीड़ा हो।। प्रिये तुम झाड़ू हो। घर का सुपड़ा साफ - कर गई सखियों की बारात। मंहगाई के बे-जां आघात - सहे कैसे ये कोमल गात। गुलाबी गालोंं का ये रंग - करे सेबोंं को भी बदरंग। स्वाद में आड़ू हो - प्रिये तुम झाड़ू हो।। कृपाल