धृतराष्ट्र

आपने पढ़ा :-

अमृत मैं विष की बूँद बो दी थी , लच्छी ने ….!!

दूसरी किश्त –

“मैं इन्ही की बेटी हूँ। मेरा नाम सुवर्णा नहीं  …..जो मैं इस मँहगाई का मूं न तोड़ दूं   …!” वह माइक पर लरज-लरज कर लोगों को रिंझा रही थी   …बहाला  रही थी  …फुसला रही थी   ….ताकि वो सुवर्णा के नाम का वोट डालें   ….और   ….

“बकबास !” संग्राम के होठों से शब्द आज़ाद हुए थे. “छलना है, ये !” वो कहना चाहते थे. “सत्ता  …और महत्ता की भूखी है !!”

“तुम जैसा त्याग – तुम्हारी संताने नहीं कर पाएंगी !” वक्त बोलने लगा था. “जो तरंग तुमने पैदा की थी  ….वो तो बेजोड़ थी !”

सच था. वह समय था जब सब ने मानलिया था  – कि संग्राम धरती पुत्र था. वह गुरू जी की सच्ची-अच्छी आत्मा का प्रतीक था. मीडिया ने तो उस के खादी के कुर्ते,फटी चप्पल और टेढ़ी टोपी में न जाने क्या-क्या नहीं खोज लिया था ! उसे गरीबों का मसीहा मान कर प्रचार आरंभ हुआ था. गिन -गिन कर उस के गुणों का बखान हुआ था. लोगों के ठठ -के-ठठ उस के दर्शन लाभ के लिए आने लगे थे. फॉरिन का मीडिया भी टूट कर पड़ा था और   …उसे एक आश्चर्य की तरह लपक उन्होंने खूब ही उछाला था. उस के सीधे-सादे जीवन दर्शन को लेकर खूब बहस चली थी.

“अब मत चूको , चौहान !” अमर पाल ने विंहस कर कहा था. “अमर लीला में आप का स्वागत है !!” उस का इशारा इश्क-ऐयाशी की और था. “चलो, ठुमका लगा कर देखो !” उस ने उन की बांह गही  थी. “बहुत हुई भाषणबाजी।  नाउ रिलेक्स   …! लो, घूँट-घूँट कर पीओ    …और पल-पल को जीओ  …!!”

“दोस्त  ….!” डर गया था, संग्राम।  “अगर लोगों को भनक भी लगी तो  …..?”

“डरो मत ! हर नेता एक दुहरी जिंदगी जीत है. ये सत्य है ! जिंदगी के हर स्वाद को चखो,छू कर देखो  ….अनुभव लो ! इस से राजनैतिक समझ प्रखर होती है।  पब्लिक पर पकड़ भी बनती है. आनंद आता है  ….लड़ने में  …!”

कैसा आरंभ था , वो   ….? आनंद था – ऐयाशी थी   ….इज़्ज़त थी।  लोग आते   …पैरों पर गिरते   …आशीर्वाद लेते  …उन के बड्डपन का बखान करते   ….उन्हेँ महान बताते और   …..

“आप इन का काम करेंगे  ….ये आप का कल्याण करेंगे  ….!” राजू कहता था. “पार्टी के लिए चंदा चाहिए तो  ….”

पैसा आता था  …बेसुम्मार आता था  ….बिना गिना-गुंडा आता था   ….खूब आता था ! उन का महत्व दिन दूना और रात चौगुना होता चला जा रहा था.

“संग्राम !” आवाज़ गुरू जी की थी. “ये तो  ….समाजवाद नहीं है , रे   …?” उन्होंने सचेत किया था. “तुम जा कहाँ रहे हो   ….?” उन का प्रश्न था. “लोगों की समस्याएँ तो   ….”

“पार्टी की समस्याएँ पहले, नेता जी !” उन के अनुयायी लोग कह रहे थे. “अगर विरोधी सत्ता में आ गए तो  ….हम सब जेल में होंगे !” उन का एलान था. “छाती अडानी होगी , आप को ! रोक दो  ….इन के रथ ! वरना तो ये  …..”

वो एक अतिरिक्त जोश के साथ अखाड़े में कूदे  थे  …और पल-छिन में विरोधियों को धो कर धरदीय था. जनता का उन के साथ हुआ एका बेजोड़ था.लॊग उन के एक इशारे पर जान देते थे.

वो जनता के नेता थे  ….जनमत उन के साथ था  …समाज की वो शान थे   और  …मीडिया की आँख मैं भी वही नेता महान थे !!

“तुम पर गया है, अभीष्ट !” लच्छी बता रही थी. “नाक-नक्श बिकुल तुम्हारे हैं !” वह हंसी थी. “तुम से भी आगे होगा  ….एक दिन !! देखना  …..”

दृष्टि घुमा कर उन्होंने उस दिन लच्छी को संदिग्ध निगाहों से घूरा  था. लच्छी ने अपने बेटे को  ….उन  के नाम लिख दिया था. उन की रूह कांपी थी. पर हो क्या सकता था ? लच्छी ने तो उन्हें डिबिया में बंद कर लिया था.

“इस का बंदोबस्त न हुआ तो  ….तुम्हें साथ लेकर डूब जाएगी !” अमर पल का खुलासा था. “ये औरत …..दिल्ली से जुडी है , तुम से नहीं !” उस का कहना था.

भक्क-से उन की आँखें खुली थीं.

दिल्ली का नाम सुनते ही उन्हें पसीने छूट गए थे. तब उन का मन था कि – देश के प्रधान मंत्री वही बनेंगे  .. और देश को समाजवाद की दिशा देंगे ! गुरु जी के साथ किए हर वायदे को पूरा करेंगे   …और जनता का आशीर्वाद लेंगे   ….!!

लेकिन लच्छी ने उन के अनपढ़ होने की बात हर कान तक पहुंचा  दी थी   …और स्वयं श्रेष्ठ सिद्ध हो कर सोपान चढाने लगी थी !!

क्रमशः ;-

अगली किश्त में लच्छी के कारनामे –

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