गतांक से आगे :-
भाग -५३
‘नर नहीं ! नारी को पूजो !!’ लेख ने कलकत्ता में ही नहीं …पूरे समाचार जगत मैं …एक भू-डोल भर दिया था ! वक्त की मांग थी. विश्व भर में प्रताड़ित नारी समाज के प्रति संवेदना के स्वर उभर कर आ रहे थे. नारी स्वतंत्रता का समय नजदीक आता चला जा रहा था.
“स्टाफ बढ़ाना पड़ेगा मेम !” गप्पा कह रही थी. “बहुत काम आ गया है. खूब एड आ रहे हैं. लेख चले आ रहे हैं ! पत्र हैं .. प्रतिक्रिया हैं ..! सब छापना होगा!” एक लम्बी आह रिता कर गप्पा ने पारुल की आँखों में झाँका था.
पारुल चुप थी. पारुल उदास थी. पारुल निराश थी. जिस के बारे में वह रात दिन सोच रही थी .. क्या उसने .. कुछ नहीं लिखा ….? क्या चन्दन बोस को ..? वह गप्पा से प्रश्न करना तो चाहती थी .. पर डर रही थी.
“चन्दन बोस ने क्या लिखा है, पढ़ा है आपने ..?” गप्पा पारुल का इच्छित प्रश्न पूछ बैठी थी.
“नहीं तो !” प्रसन्नता में पागल हुई पारुल ने कहा था. “हाँ .. ! क्या .. लिखा है री ?” पारुल बड़े ही मधुर स्वर में बोली थी. “दिखा तो ..!” उसका धैर्य छूटा जा रहा था.
“ये देखिये !” गप्पा ने पत्रिका के पृष्ट खोले थे. “महारानियों ने जिक्र किया है….. तो नारी कैसे जागृत नहीं होगी …?” गप्पा बताती रही थी लेकिन पारुल ने ‘महारानियों’ शब्द के सिवाय और कुछ सुना ही नहीं था.
जैसे चन्दन बोस उसके पास आ बैठा था. वह कह रहा था .. हाँ, हाँ ! वह कह रहा था .. ‘योर हाइनेस ..’ न ..न ! वह कह रहा था – ‘महारानी जी ..!’ ओह नो ! पारुल झुंझला गई थी. “कैसे पुकारेगा उसे चन्दन बोस …?” वह सोच में पड़ गई थी. वह क्या चाहती थी …? वह क्या कहेगी – कैसे पुकारेगी उसे ..? ‘चन्दन ..!’ हाँ , हाँ ! वह तो उसे ‘चन्दन’ ही कहेगी. उसे यही नाम भला लगता था. ‘बोस’ को भी वह काट फेंकेगी. केवल ‘चन्दन’ .. उसका चन्दन .. चलेगा.
“महीलाल आये हैं !” अचानक पारुल के सोच को चोट लगी थी. लेकिन महीलाल का आगमन भी उसे भला लगा था. वह चाहती थी कि महीलाल आये तो अपनी सारी व्यवस्था को अंतिम अंजाम दे दे.
महीलाल और बुढिया गया था. न जाने क्यों उसका स्वास्थ ठीक नहीं हो पा रहा था ? लेकिन अपने कर्तव्य के प्रति उसकी निष्ठा में कोई खोट न था. स्वामी भक्त था महीलाल !
“आपको कोई आपत्ति तो नहीं है ?” पारुल ने पहला प्रश्न पूछा था. “आपका स्वास्थ ..?” उसने महिलाल को एक सरोकार के साथ देखा था.
“ठीक हूँ ! कोई परेशानी नहीं ! उम्र का खेल है .. महारानी जी ..!” महीलाल तनिक हंसा था. “जाना तो सबको है,एक दिन ..!” उसने अपना दर्शन बताया था.
पारुल महीलाल को परखती रही थी ..
“पैसा तो खूब है ..?” पारुल ने महीलाल को एक पेचीदा प्रश्न पूछा था.
“हाँ ..! अब तो धन की तीन तीन गंगाएं बह रही हैं !” महीलाल ने प्रसन्नतापूर्वक कहा था. “आपने कमाल कर दिखाया, महारानी जी !” महीलाल की आवाज में दम था. “मुझे कहाँ उम्मीद थी कि .. हम राज काज भी चला पाएंगे कि नहीं ! लेकिन अब तो ..”
“उत्सव के लिए पूरा पैसा है ?” पारुल ने पूछा था.
“जी, हाँ ! अब कोई कठिनाई नहीं होगी !” महीलाल का उत्तर स्पष्ट था.
“वो जो वी आई पी सूट है .. उसे चन्दन बोस के लिए रिसर्व कर देंगे. और जो सिल्वर सेट है .. उसे तैयार करा लेना. मै दो एक दिन पहले ही आउंगी.”
“ठीक है, महारानी जी !” पूरे आदेश लेकर महीलाल दो दिन बाद कलकत्ता से लौट आया था.
पारुल को आज अचानक अहसास हुआ था कि उसे आसमान ने स्थान बाँट दिया है .. उसके हिस्से का उसे सब दे दिया है ! उसे अचानक ही अपना स्थान बहुत ऊँचा लगा था. लगा था – वह अचानक ही जमीन से उठ आसमान पर चली आई है. अब उसका दायित्व और भी बढ़ गया है. उसके पास अचानक ही संस्थाएं आ गई हैं – दायित्व चले आये हैं .. और धन के अंबार लग गए हैं ! अब उसे राजन याद तक नहीं आता !!
“नारी-नश्वर आपसे मिलने आई हैं !” गप्पा ने सूचना दी थी. “बहुत धाकड़ पत्रकार है, मेडम !” गप्पा ने उसे सूचित किया था. “प्रधानमन्त्री से भी सीधा प्रश्न पूछ लेती है !” उसने कहा था. “सोच .. समझ कर ..” गप्पा ने उसे चेताया था.
पारुल डर गई थी. पारुल कांपने लगी थी. पारुल का कच्चा-चिठ्ठा उसके पैर तोड़ने लगा था. वह सोच में जा डूबी थी. लेकिन नारी-नश्वर ने भड़ाम से दरवाजा खोला था और धडाम से केबिन में आ बैठी थी.
“महारानी जी व्यस्त हैं !” वह हंसी थी. “अरे भाई, हम जैसे अदनाओं से भी मिल लिया करें ..?” वह बहुत जोर से हंसी थी.
“स्वागत है, आपका …!” पारुल ने कुर्सी से उठकर नारी-नश्वर का स्वागत किया था. “आप जैसी विभूतियों के दर्शन हो जाएँ .. तो ..”
“मस्का लगा रही हो ..?”
“नहीं , नहीं ! दीदी .. मेने आपके बारे जो सुना है ..”
“रहने दो, भाई !” नारी-नश्वर ने सहजता से कहा था. “बैठो ! चाय पीते हैं !!” उसने हवा को हल्का दिया था. “बहुत बड़ा काम कर रही हो !” वह कहती रही थी. “मेरी रूह खुश है तुमसे .. पारुल .. ” वह हंसी थी.
अचानक ही पारुल को एक रिश्ता कायम हुआ लगा था. चाय पीते-पीते दोनों एक दूसरे को तौलती रही थीं .. परखती रही थीं .. और अपने निर्णय लेती रही थीं.
“ये लो…..!” जाते-जाते नारी नश्वर ने एक लिफाफा पारुल को पकडाया था. “बवंडर है ..!” वह हंसी थी. “छाप देना ! डरना मत !! बवंडर मचा देगा ..” वह कहते हुए चली गई थी.
पारुल सकते में आ गई थी. लेकिन गप्पा ने आकर उसे संभाल लिया था.
“छापेंगे .. बवंडर !” गप्पा कह रही थी. “ये तो हमारा सौभाग्य है, मेम ! ये किस किस के पास जाती है ? न जाने आपके पास ..”
“होगी कोई बात !” पारुल ने सहज होने की कोशिश की थी.
“कोई बात नहीं .. मेम .. ये बड़ी बात है !” गप्पा गंभीर थी. “मेरा तो दिमाग चल गया है !” उसने पारुल को आँखों में घूरा था. “कहें तो .. कहूँ ..?”
“कहो, कहो !” पारुल प्रसन्न थी. “तुम तो असली मालिकिन हो ! मै तो .. टाइम पास करने आती हूँ !” पारुल ने यूँ ही के मूड में कहा था.
“अगर हम ..” गप्पा रुकी थी. उसने पारुल को फिर से देखा था. “अगर हम इस नारी -नश्वर का इंटरव्यू छापें तो ..?”
“लेगा कौन इंटरव्यू ..?” पारुल ने पूछा था.
“चन्दन बोस !” गप्पा का उत्तर गोली की तरह आया था. “कमाल हो जायेगा, बाबा !!” गप्पा उद्वेलित थी. “दो धुरंधर भिड़ेंगे .. तो .. आसमान उद्भाषित हो उठेगा !” गप्पा का मत था.
“लेकिन .. लेकिन .. गप्पा ?”
“मै मना लूंगी चन्दन बोस को .. आप इसे पकड़ लाना ..!!” गप्पा ने सुझाया था.
पारुल का हिया उमग आया था. मात्र चन्दन बोस के नाम से ही उसमे एक नई प्राण वायु का संचार हो उठा था. उसे गप्पा का विचार बुरा न लगा था. और अगर यह इंटरव्यू सफल रहा तो न्यूज एजेंसी के तो वारे-न्यारे थे ! एक ख्याति मिलनी थी उन्हें .. एक सफ़र तय होना था .. और मिडिया जगत में प्रवेश पा जाना था ……!!
रात दिन की दौड़-भाग आरम्भ हुई थी. गप्पा ने चन्दन बोस का पीछा किया था. वह हवा की तरह चलता था. बिकाऊ तो था ही नहीं ! लन्दन की एक सेमीनार में बोलने के बाद बड़ी ही कठिनाई से गप्पा ने बात की थी. लेकिन जैसे ही उसने, ‘महारानी काम-कोटि’ का हवाला दिया था – उसकी लार टपक पड़ी थी. उसने ८ अक्तूबर की रात को दर्ज कर उस दिन के और तमाम अनुबंध समाप्त कर दिए थे !!
और नारी नश्वर ने तो चन्दन बोस से दो दो हाथ करने के लिए तुरंत ही मंजूरी दे दी थी !
अब नौबत थी कि इन दोनों को कहाँ बुलाया जाय ? बम्बई में सर पटकने के बाद भी कोई सम्भावना न बन पाई थी. अंत में गप्पा ने तिकड़म लगा कर ‘प्रोग्रेसिव मिडिया’ कलकत्ता को मना लिया था. अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद गप्पा को चैन आया था.
भारी अखबारबाजी हुई थी. हर ओर खबर थी कि कलकत्ता में चन्दन बोस और नारी नश्वर की टक्कर होगी ! दोनों के पास बहुत कहने को था ! दोनों के पास सामाजिक मुद्दे थे. दोनों ही आज के विश्व समाज का दर्पण थे !
“लोकधर्मी प्राणधारा में .. जबतक मिलकर नहीं जिया जाता, जीने का मजा नहीं आता !” चन्दन बोस ने सन्देश दिया था. “नारी नश्वर प्राणवान हैं….. जागरूक हैं ..! मै उनका सम्मान करता हूँ ..!”
हवा में हलचल थी. पारुल का मनप्राण फिर से जीवंत हो उठा था.
“आप चाय के लिए आमंत्रित हैं !” गप्पा बता रही थी.
“किसने भेजा है, ये निमंत्रण ?” पारुल ने यूँ ही प्रश्न पूछा था.
“प्रोग्रेसिव मिडिया ने !” गप्पा ने हंस कर बताया था. “इंटरव्यू के बाद चाय है ! चन्दन बोस .. नारी नश्वर .. उनका स्टाफ .. और आप ..!!” हंस पड़ी थी गप्पा.
प्रसन्न हुई पारुल पलांश के लिए पर लगा कर चन्दन बोस के ऊपर जा मंडराने लगी थी – एक सम्भावना की तरह ..!
क्रमशः
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य