शादी कर लो ..पत्थर से करो…पेड़ से …या ..

उपन्यास अंश :-

भाग – ४१ 

“ठीक से तैयार होना , पारुल !” सावित्री ने कहा है . “आज की मीटिंग का महत्व है !” उस ने पारुल को अपांग देखा है . “प्रेस वाले भी आयेंगे …और राजन …..?” रुकी है , सावित्री. ” न जाने …क्या कुछ कह बैठे ….?” वह हंसी है . “तुम्हारी प्रेम कहानी ….अब मेरी प्रेम कहानी पर …..”

“पर, दीदी !” पारुल तनिक शर्मा गई थी . “मैं …..मैं ….तो ….” 

“राजन …इज ….पोपुलर …विद …प्रेस ..!” सावित्री ने हँसते हुए कहा था . “पब्लिक फिगर है , राजन ! यहाँ कलकत्ता के लोग राजन के दीवाने  ….”

“पर मेरा तो कोई नहीं …..”

“यू …आर ..नाउ …इन डिमांड …!” सावित्री ने बेबाक ढंग से कहा था . “मिस्टर राजन दबे-दबे सब कुछ कह बैठे हैं ! और आज शायद ……?”

पारुल ने जैसे कुछ सुना ही न था ! वह अपने प्रसन्न हुए मन के साथ काम-कोटि की ओर  भागी थी . उसे लगा था जैसे राजन का उस की जिन्दगी में आना एक हादसा जैसा ही कुछ हो सकता था ! राजन ने सावित्री को छोड़ दिया था – उस के लिए …! और अगर …..?

“ओ,हेल्लो !!” संभव ने पारुल का ध्यान बांटा था . वह समय से पूर्व ही चला आया था . “मैं चाहता था ….कि ….”

कितना गहरा इंसान था – ये संभव ? पारुल अनुमान लगा रही थी . न जाने कहाँ रहता था ….क्या करता था ….कौन जाने ….? लेकिन इसे सब पता था ! पारुल सहम गई थी . पारुल संभव के सामने आज अजीव तरह से आँखें चुरा रही थी ! 

“मिस्टर मानन पहुँच रहे हैं !” संभव ने घोषणा की थी . “तुम ….ओह …सोरी …आप …आई मीन  …योर …हाईनेस काम-कोटि एक बार लिखी प्रस्तावना पर गौर कर लें ! फिर ही कोई बात-चीत होगी !” संभव ने कहा था . “और दीदी ! मुझे भूख भी लगी है ! वो मेरी कचौड़ियाँ ….?” संभव बच्चों की तरह मचला था . 

‘पारुल देगी !” सावित्री ने कहा था . “आज ..सब इस का ही बंदोवस्त है !” उस ने पल्ला झाड लिया था . 

संभव पारुल को देखता ही रहा था …..कई पलों तक ………!!

“मैंने प्रस्तावना में सब कुछ शामिल कर दिया है ! नाऊ …द बाल इज इन योर कोर्ट …!” मिस्टर मानन ने कहा था . “आप सब कुछ पढ़ लें …समझ लें ….और कोई प्रश्न हो तो मुझे पूछ लें !” विनम्र भाव से कह रहे थे , मिस्टर मानन . “आखिर में …आप के जीवन के ये ही महत्व पूर्ण समझौते होंगे ….!!” 

सब सच था . सब कुछ पारुल के ही ईर्द-गिर्द …तो ..डोलना था ! पारुल की निगाह के साथ-साथ सब कुछ …चलना-बदलना था ! अचानक ही पारुल एकबारगी बहुत महत्वपूर्ण हो गई थी . वह प्रस्तावना पढ़ रही थी . उस का मन उस प्रस्तावना में अपना हर हित देख लेना चाहता था ! 

“मैं काम-कोटि न दूँगी …..!” अचानक ही पारुल ने अपने आप से कहा था . “प्रस्तावना में कहीं भी कोई काम-कोटि का जिक्र नहीं है ! लेकिन राजन के साथ शादी हुई तो ….?”

“आई लव यू …..योर हाईनेस ….!!” न जाने कब राजन आया था ….और चुपके से उस ने पारुल के कान में कहा था . 

पारुल चौंकी नहीं थी ! लेकिन अन्य सभी चौंक पड़े थे ! प्रेस और मीडिया ने भी मौका नहीं छोड़ा था . उन दोनों का मिलन दर्ज हो चुका था ! लेकिन पारुल की प्रतिक्रिया आज बहुत ही भिन्न प्रकार की थी .

“शादी कर लो ….पत्थर से कर लो ….पेड़ से कर लो ….या कि किसी कुत्ते से कर लो !” सिल्वी के स्वर थे . “अला-बला से तो जान छूटे  …! फिर लात मारो और भगा दो ….”

“सावित्री ने भी तो घोड़े से शादी की थी ….?” पारुल मुस्कराई थी . उस ने आग्रही हुए राजन को आँख भर कर देखा था . “यही घोडा था !” उस ने मुग्ध भाव से स्वीकारा था . “आज …ये ….कुत्ता ….? ओह , नो ! कुत्ता तो नहीं ही कहूँगी ….उसे !” पारुल के मन ने मान लिया था . “चलो ! काम निकालते हैं . सेकिया के सर्प को कीलते हैं ! नागिनों का जिस्म भस्म करते हैं ! फिर ……”

“कोई प्रश्न पूछना चाहेंगी , आप ….?” मिस्टर मानन ने चुप्पी को तोडा था . 

“हाँ !” पारुल ने संभल कर कहा था . “मैं ….मैं ….काम-कोटि को किसी भी कीमत पर न दूँगी ……” उस ने घोषणा की थी .

“माँगा किस ने है ….?” मिस्टर मानन ने प्रतिप्रश्न किया था . “प्रस्तावना तो सीधी है ! आपका और मिस्टर राजन का सम्बन्ध  है ….., मुक्त सम्बन्ध ! आप काम-कोटि की महारानी रहेंगीं ….और मिस्टर राजन ….? हाँ ! सावित्री का सम्पूर्ण सम्बन्ध -विच्छेद हो जाएगा …मिस्टर राजन के साथ !” मिस्टर मानन ने निगाहें पसार कर सावित्री और राजन को देखा था . “इन दोनों का सब लेना-देना तय है ! एक पुत्र आपने और राजन ने इन्हें देना है ! उसे ये विधिवत गोद लेंगी !”

” ए …गिफ्ट फॉर द ….ह्यूमैनिटी ….!” कह कर संभव ने तालियाँ बजाईं थीं . “दीदी अपने आँगन में …इस कन्हयाँ को पाल-पोश कर बड़ा करेंगी ….यशोदा की तरह ….और फिर ….संसार का भार उतारने के लिए उसे ….स्वतंत्र कर देंगीं ….” संभव भावुक था . “ऐसा उपकार ….सावित्री दीदी के द्वारा ही संभव है !!”

सावित्री की आँखें सजल हो आईं थीं . पारुल शरमाई खड़ी थी ! राजन चुप था !!  

“मैंने अग्रीमेंट तैयार कर दिया है !” मिस्टर मानन बता रहे थे . “सावित्री ने हस्ताक्षर बना दिए हैं . अब आप दोनों को ….” उन्होंने अग्रीमेंट राजन के सामने रख दिया था . 

राजन ने अपने लिखे नाम के ऊपर अपने हस्ताक्षर बना दिए हैं . उस ने एक मुस्कराहट के साथ एग्रीमेंट को पारुल की और बढा दिया है . पारुल ने अब दस्तावेज को बड़े ही गौर से देखा है . फिर उसे हाथ में ले कर जांच-परख की है .

“कुछ प्रश्न हैं जो अनुत्तरित छूट गए हैं , मिस्टर मानन !” पारुल की आवाज़ जमा लोगों को चौंका देती है . “मसलन कि …काम-कोटि का विस्तार ….व्यापार संचालन ….और व्यवस्था  …..?” उस ने आँख उठा कर अब की बार संभव को देखा है . “मच हैज …हैपंड ….देअर ….!” उस ने जैसे संभव को सूचना दी हो . “मैं नहीं चाहूंगी कि …वो सब किया-दिया मिटटी हो जाए ….?” 

“पारुल में बदलाव है . बहुत बदल गई है , वो !” संभव सोच रहा है . “पारुल अब एक अलग इकाई है ….स्वतंत्र इकाई ! उस का अपना सोच है ….अपने निर्णय हैं . और अब से अपना भविष्य है ! वह अब किसी और पर आश्रित नहीं है .” और सही था – उस का अनुमान !

“आप के इस दर्द की दवा मेरे पास है , योर हाईनेस !” संभव ने सीधा-सीधा पारुल का किया वार ओट लिया था . “मेरे साथ बैठे मिस्टर फ्रेज़र अपना परिचय देंगे !” तनिक मुस्करा गया था , संभव . 

एक लंबा,गोरा-चिट्टा और आकर्षक आदमी उठ कर उन सब के सामने आ खड़ा हुआ था . पारुल को एक बार संभव फिर से कोई जादूगर जैसा ही लगा था ! न जाने कैसे उस के पास हर मर्ज की दवा होती है ….और हर बार ही वह दूर की कौड़ी ले आता है ….? 

“हमारी संस्था का नाम – क्रेजी एंड क्रेजी इंटरनेशनल है !” मिस्टर फ्रेज़र बता रहे थे . हमारा व्यापार पूरी दुनियां में फैला है ! हम सैलानियों की हर फरमाईश पूरी करने में माहिर हैं ! हमारा व्यापार भी अरबों-खरबों में है !” अब फ्रेज़र ने पारुल को सीधा आँखों में घूरा है . पारुल अविभूत है ….आद्र है …प्रभावित है . 

“हम से प्रयोजन , मिस्टर फ्रेज़र …..?” पारुल ने सीधा प्रश्न दागा है . 

“काम-कोटि का सैलानियों का व्यापार हमें अपने स्तर पर चाहिए !” मिस्टर फ्रेज़र ने उत्तर दिया है . 

पारुल चुप है . राजन तनिक-सी दुविधा में आया लगा है . लगा है – खेल बिगड़ने वाला है ! लेकिन संभव अविचल खड़ा है . उस के पास अभी भी कोई अचूक अस्त्र है ! उसे स्थिति अभी भी नियंत्रण में लग रही है . उचित मौका पा वह बोलने लगा है !

“ये डील मैंने और मिस्टर फ्रेज़र ने मिल कर बनाई है !”संभव कह रहा है . “मैं इन की फर्म को खूब जानता हूँ ….और मेरे क्लाइंट …इन के मुरीद हैं ! ये विचार मुझे ही सूझा था ….और …लगा था – इस की योर हाईनेस आप को आवश्यकता होगी ! तभी मैंने यह सब तय कर डाला था !” उस ने अब की बार पारुल को सीधा आँखों में घूरा था . “मिस्टर फ्रेज़र डील पढ़ कर सुना दें !” संभव ने आग्रह किया था .

“सीधा-सीधा समीकरण है !” मिस्टर फ्रेज़र बता रहे हैं . “तीन पार्टनर होगे – काम-कोटि,गैम्बलर और क्रेजी एंड क्रेजी !” उस ने बताया है . 

“हाँ,हाँ !” संभव ने चौक पड़े मिस्टर राजन को ही संबोधित कर कहा है . “आप का ही होगा ‘गैम्बलर’ मिस्टर राजन !” वह बता रहा था . “मैंने आप को ध्यान में रख कर ही योजना तैयार की है . आपने कहा था न – ‘ द हेल विद  …द हॉर्सेज ….!!” संभव हंसा था . “केसिनो का व्यापार भारत में नया ही होगा ! और आप तो इस के पुराने मुरीद हैं , मिस्टर राजन ! सो ! बेस्ट आँफ लक …..!!”

एक चुहल दौड़ कर भर आती है ! राजन का चेहरा खिल उठता है . सावित्री की याददास्त में होती दयूत -क्रीडा का द्रश्य उसे सताने लगता है . न जाने कितनी द्रौपदी …नंगी न होंगीं ….वह सोचती ही रहती है ! 

“ये व्यापार है , फ्रेंड्स !” मिस्टर फ्रेज़र कहने लगे हैं . “सब के स्टेक क्लीयर हैं ! काम-कोटि को इक्कावन परसेंट मिलेगा ….क्रेजी एंड क्रेजी को तीस परसेंट ….तथा गैम्बलर को उन्नीस परसेंट मिलेगा !” फ्रेज़र खोल बताता है . 

“क्यों मिलेगा मुझे …..उन्नीस परसेंट ….?” उछल पड़ा है , राजन . आग-बबूला हुआ वह भूल ही जाता है कि उसे तो केवल पारुल ही चाहिए थी ? “मैं ….मतलब कि मेरा पैसा व्यापार बढाने में लगेगा …! मुझे तो सब कुछ फ्राम …ए स्क्रेच …से शुरू करना होगा ….? मुझे ….”

“लेकिन आप का बेस तो कुछ भी नहीं है , मिस्टर राजन ….?”फ्रेज़र उसे समझाता है . “हमारी शाख है ….काम-कोटि की शाख है ….लेकिन ….आप ….?” 

“मेरी शाख है ! लॉस वेगस में जा कर पूछ लो , मेरी शाख !” राजन ने मेज पर जोर से हाथ मार कर कहा है .

सावित्री जोरों से हंस पड़ी है ! सावित्री को लास वेगस में हुआ हंगामा याद हो आता है . उसे याद हो आता है कि अगर कर्नल जेम्स ने मदद न की होती तो ……?

“राजन की शाख है ! जुआरियों के सिरमौर हैं , मिस्टर राजन !” सावित्री ने एक सच कहा है . 

लेकिन सब लोग हो-हो कर हंस पड़े हैं !

पारुल को कहीं अच्छा नहीं लगा है ! पारुल को हक़ के लिए लड़ता राजन बुरा नहीं लगा है . जो भी है – वह आदमी है – क्लीन ! अन्दर-बाहर से साफ़-सुथरा तो है ही ….?

“मैं ‘काम-कोटि’ का दस परसेंट ‘गैम्बलर’ को देती हूँ !” पारुल घोषणा करती है . “एंड देट …कम्स …टू …..४१,३० एंड …..२९ परसेंट !” पारुल ने तोड़ कर दिया है ! 

तालियाँ बज उठीं हैं !! 

राजन ने आभार के आंसूओं से भरी आँखों से पारुल को स्नेह पूर्वक निहारा है !!

…………………..

क्रमश :

श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !! 

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