फोन कट गया था !!

उपन्यास अंश :-

राजन ने अपने भारत लौटने का मार्ग बदल दिया था !

कितना मन था उस का कि सीधा काम -कोटि लौटे और अपनी सफलता का श्रेय पारुल को दे …पारुल को बताए कि …उस के पास इतना धन है कि …काम-कोटि ……! लेकिन पारुल की आवाज़ अब भी उस के कानों में गूँज रही थी , ‘कानी कौड़ी भी नहीं चाहिए ..!’ लेकिन क्यों ….? क्या था …जो …?

“कलकत्ता जाने वाली फ्लाइट …..” राजन का द्यान टूटा था . अचानक उसे एहसास हुआ था कि वह कलकत्ता ही लौट रहा था !

पर न जाने क्यों आज उस का मन कलकत्ता से अनख मान रहा था ? कुछ था …जो आज कलकत्ता के खिलाफ था ! आज वह जहन्नुम में तो जाना चाहता था ….पर कलकत्ता नहीं ! वह समझ रहा था कि …उस की जीत से पहले लोग ….उस की हार का जिक्र ज़रूर करेंगे ! रेस क्यों हारा …? क्या था – जो उस का घोडा पिट गया …? वो क्या था – जिस ने कलकत्ता के जां -बाज़ जौकी को शिकस्त दी …? कैसे बताता वह कि …मात्र घोड़े बदली होने से ये क़यामत आई थी …!!

“तुम में शऊर की बेहद कमी है , राजन !” अचानक छीतर का चहरा सामने था . “सुलेमान सेठ का वश चले तो …तुम्हें चाबुकों से पीटे ! तुम …..”

“ओह ! शिट …!!” राजन गरजा था . “क्या साला , सुलेमान सेठ ….क्या साला …छीतर ….और ….और कौन था …वो ….?” रुका था , राजन . अचानक ही उस का जिया सारा का सारा …वो घोड़ों की लीद से गंधाता माहौल ….उस के सामने उठ खड़ा हुआ था ! राजन की साँस घुटने लगी थी .

“सुकर करो ! सावित्री की निगाह पड गई तुम पर ….!!” छीतर कहने लगा था . “वरना तुम …लीद ही ढो रहे होते , दोस्त !”

और वो सावित्री का दप-दप दहकता दैदीप्यमान चेहरा ….उस की आँखों के सामने था !!

“क्या रूप था साबो का ….!!” टीस -सा आया था , राजन . “विश्व-सुंदरी जैसी साबो उस के मन-प्राण पर छाती ही चली गई थी . अँधा हो गया था वह -सावित्री के प्यार में . सच में सावित्री ही श्रेष्ठ थी . सावित्री जैसा प्रेम …साहचर्य और त्याग-बलिदान देखने को नहीं मिलता ! पारुल तो …..” वह रुका था . न जाने क्यों उस के मन के गहरे में आज पारुल कांटे-सी चुभ रही थी . “सावित्री के बच्चे हो जाते तो ….शायद ….?” राजन एक निष्कर्ष पर पहुंचा था .

सावित्री भी राजन की जीत-हार को आज फिर से उलट-पलट कर देख रही थी !

छपा था – घोडा बुरी तरह से पिटा ! छपा था – किंगस  …ऑफ़ …किंगस  …राजन – एक हस्ती !! राजन की जीत …गज़ब का खेल ….!!

“कभी पत्ते धोखा से गए तो …….?” सावित्री सोचने लगी थी . “हे, भगवान् ….!!” सावित्री ने अपने कृष्ण को निहारा था . “ऐसा मत करना कि ….” उस ने दया मांगी थी . “गोविन्द ….!” उस ने फिर से प्रभु को टेरा था . “क्या आप मेरे आँगन में खेलने नहीं आयेंगे …?” उसने प्रश्न पूछा था . “जैसे भी हो …प्रभु आप …” वह रुकी थी . “मैं कुछ भी …..कुछ भी …समर्पण कर दूँगी ….अगर आप …..!” उस की आँखें आज सच्चे आग्रहों से भरीं थीं . “मैं जी जाउंगी , प्रभु ……!” उस का कठ भर आया था .

कलकत्ता क्लब ने राजन का जोरदार स्वागत किया था !

दुनियां -जहां के ज्वारी आज कलकत्ता क्लब में जुए के मदारी – राजन को देखने चले आये थे . उन का मानना था कि -ज़रूर-ज़रूर राजन के पास कुछ ऐसा था …जो वो खेल से पहले ही देख लेता था ….और वो जानता था कि …वो क्या चलेगा …क्यों चलेगा …और उस का परिणाम क्या होगा ! राजन के साथ लोग चिपक गए थे ….प्रश्न पूछ रहे थे ….उन के उत्तर पा  रहे थे ! प्रेस भी खूब ही प्रसन्न था . राजन तो प्रेस का ही हीरो था ! आये दिन अखबारों में छपा ही होता था !!

“आप ने इत्ता बड़ा दाव मारा कैसे , सर ?” पत्रकार ने पूछा था .

“हारने का डर मेरे दिमाग में नहीं था !” राजन ने प्रसन्न हो कर बताया था . “आप अगर डरते नहीं ….तो आप हारते भी नहीं ….!!” राजन का सटीक उत्तर था .

भीड़ ने बाबला हो , तालियाँ बजाई थीं !

“इत्ते धन का करोगे क्या , मिस्टर राजन …?” प्रश्न प्रेस का नहीं था . प्रश्न पूछने वाला – संभव था . वह राजन के सामने खड़ा-खड़ा मुस्करा रहा था . राजन ने उस की बगलों में झाँका था . ‘कहीं ….पारुल हो ….या कहीं साबो …हो ….,’ वह समझ लेना चाहता था . “आप के घोड़े तो हार रहे हैं ! जौकियों का भी दम चुक गया है !!” संभव ने उसे याद दिलाया था .

“चलो ! बैठते हैं !!” राजन का आग्रह था . “बहुत प्रसन्न हूँ , तुम से मिल कर ….” राजन ने बैठते हुए कहा था . “अंधे कुए हो , मैं जानता हूँ . फिर चाहे जित्ता भी डालो ….” राजन ने संभव की आँखों में घूरा था . “लेकिन , मित्र ….!”

“घोड़ों का व्यापार ….?” संभव ने एक संभावना सामने राखी थी .

“ओह , शिट !!” राजन ने घोड़ों के व्यापार के विचार पर थूक -सा दिया था . “मुझे कुछ ऐसा बताओ, संभव ….जैसा कि …..”

“लास वेगस …..?” संभव ने प्रश्न पूछा .

“ओह, यश !!” राजन ने प्रसन्नता पूर्वक संभव का हाथ भींचा . “दैट्स ……बिजनिस ….!!” वह चहका था . अचानक उसे लगा था कि वह ….और पारुल पंख लगा कर कहीं उड़ चले हैं . “मनी ….मनी ….एंड ….मनी ….!! हॉर्स ….? नो हॉर्स …..! ब्लाडी …..बकबास …!!” मुंह ऐंठा था – राजन ने . “क्या बेइज्जती हुई , यारो !” उस ने माथा पीटा था . “आई …हैड …नो फेस …….!!” राजन आहत था .

“काम-कोटि ….कहो कि होनेवाला भारत का ….लास वेगस …..?” संभव ने एक जबर्दस्त संभावना को राजन के सामने रख दिया था . “मेरे पास पार्टी है !” संभव ने राजन की आँखों में झाँका था .

“तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली , मित्र !” राजन ने पूरे जोश के साथ हाथ मिलाया था .

“मेरी आदत है , दोस्त !!” संभव ने भी उसी तरह की गर्मजोशी से उत्तर दिया था .

राजन,  पारुल के बारे पूछते -पूछते रुक गया था ….ठहर गया था ….झिझक गया था ! लेकिन बात पारुल को पाने की ही हुई थी !!

“अरे ! ये स्याला  …दोनों आर्डर कैंसिल हो गए ….?” राजन चौंक पड़ा था . “क्यों …? कैसे ….?” वह चिल्लाने -सा लगा था . “भट्ठा बैठ जाएगा ….कम्पनी का …., रे !” उस ने अफ़सोस जाहिर किया था .

“सर , हमरा ….वो जो …घोरा …हारा न ….” विस्वास बताने लगा था . “फोन पर फोन आने लगा है ! “लोगूँ को ….लग रहा है ….जाने हम …..!”

“माई फुट ….!” राजन कर्नल जेम्स के स्टाइल में बोला था . “इफ …वी …लॉस्ट अ रेस …., सो व्हाट …?” उस ने तड़क कर कहा था . “अगली रेस हम ……”

“सर, वो बोला …..हमार लैसंस कैंसिल ….!”

“शट -अप ….!” राजन ने विस्वास को डाट दिया था . वह और आगे बात न करना चाहता था .

राजन का मन हुआ था कि पारुल से फोन मिला कर बात करे . उस ने संभव को भी फोन मिलाया था पर उस ने बात नहीं की थी . वह समझ रहा था कि लंदन की हुई करारी शिकस्त की कीमत तो उसे देनी ही होगी ! फिर उस ने निर्णय लिया था कि घोड़ों का कारोबार वह जल्द-से -जल्द बेच -खोच कर काम-कोटि भाग जाएगा . और फिर तो ……

अचानक घर्र-से सामने आ कर पुलिस की जीप रुकी थी ! राजन तनिक-सा सचेत हुआ था . रमेश जीप से उतर कर सीधा उस के पास चला आया था . राजन को अच्छा न लगा था . लेकिन पुलिस और मौत रोके कहाँ रूकती  ….!!

“आज कैसे ….?” राजन ने औपचारिकता से पूछा था .

“आप को साब ने याद किया है !” हँसते हुए रमेश ने कहा था .

“क्यों ….?” राजन बमक पड़ा था . “मुझे क्यों ….याद किया है ….?” उस ने जोर दे कर प्रश्न किया था .

“चलो ! साव से पूछना ….” रमेश का संक्षेप में उत्तर था . “आओ …!” उस ने इशारा किया था .

राजन का खून सूख गया था . उस का मुंह शुष्क हो गया था . अचानक ही माथे पर पसीने की बूँदें उग आई थीं . एक अजीव प्रकार का भय उस के मन-प्राण सुखाए दे रहा था . वह उठा था . उस ने चारों और नज़र घुमाई थी . नौकर-चाकर थे . पर उन का कोई वजूद न था ! और उस का वहां कोई था नहीं !!

“हुगली में छलांग क्यों लगाईं ….?” रमेश पूछ रहा था .

“नहीं लगाईं , छलांग !” राजन ने रूंठ कर कहा था . “बार-बार यही प्रश्न पूछा जा रहा है ! अरे, भई ….”

“लिख कर बयान देदो ….!” रमेश ने आग्रह किया था .

“क्यों….? क्यों लिख कर दूं ….?” राजन ने प्रतिप्रश्न किया था .

“इस लिए मिस्टर राजन कि ….ये केस आत्महत्या का बनता है !”

“कैसे ….?”

“तुम और सावित्री अलग-अलग रहते हो …..?”

“हाँ ….!”

“उस दिन साथ-साथ घूमने गए थे …..! और जब लौटे थे तो तुम ….न घर गए थे ….न क्लब गए . सीधे हुगली में जा कूदे  ! इस का मतलब दोनों में झगडा ….कहा-सुनी ! कोई भी मुद्दा रहा हो , मैं नहीं जानता ! पर मुद्दा तो था !! और बिना मुद्दे के कोई यों नदी में जा छलांग लगाए ….ये भी तो ……”

“छलांग नहीं लगाईं , मेरे भाई !” राजन गरजा था .

“शट -अप  !” रमेश ने उसे डाट दिया . “फ़ाइल पड़ी है ! मुझे इसे पूरा करना है . मुझे तुम से …..”

“पानी तो पिलादो….?” राजन रुआंसा हो आया था .

पानी आया था लेकिन रमेश चला गया था ! घंटों तक नहीं लौटा . पुलिस स्टेशन में अकेला बैठा राजन ….बे-दम हो गया था ! उस के हाथ-पैर कांपने लगे थे . अब क्या करे – वह समझ न पा रहा था . अचानक उस ने सावित्री को फोन मिलाया था .

“तुम ….?” चौंकी थी , सावित्री . “कहाँ से बोल रहे हो ….?” उस ने पूछा था .

“पुलिस स्टेशन से …..” राजन रोने-सा लगा था . “अ ….आ ….आजाओ ….!” उस ने पुकारा था . “ये लोग मानते ही नहीं कि …..” राजन की आँखों में आँसू थे .

“चलो ! मैं आती हूँ !!” सावित्री ने फोन काट दिया था .

सावित्री के साथ हुई बात-चीत  के बाद रमेश राजी हो गया था कि वो दोनों उसे एक लिखित समझौता देदें ! राजन ने कोई आना-कानी नहीं की . जो रमेश ने सुझाया वही लिखा गया ! फिर उन दोनों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए . रमेश ने दोनों को समझौते की एक-एक प्रति थमा दी .

“आओ , चलते हैं !” सावित्री ने राजन से कहा था .

“आप जाइए , मैम …!” रमेश का आग्रह था . “मैं इन्हें छोड़ दूंगा !” उस ने वायदा किया था .

सावित्री लौट आई थी . रात थी . वह अकेली थी . उस का सोच एक अफ़सोस से आगे और कुछ न था ! उसे राजन पर ही रोष आ रहा था . राजन – न जाने क्या-क्या अरमान लगा बैठा था …? न जाने उस का दिमाग …….

“संभव ….?” राजन ने रात के उस अवसान में ही संभव को जगा दिया था . “लो…! फाड़ दिया ….हुआ समझौता …!!” वह कह रहा था . “मुझे इतना उल्लू तो मत मान कर चलो कि ….मैं …..”‘

“कैसे छोड़ोगे ….सावित्री की जान …..?” संभव ने सीधा ही प्रश्न पूछा था .

“छोड़ दूंगा ….सावित्री की जान, संभव ….! पर अपनी जान – पारुल को पा कर ……!” राजन ने स्पष्ट कहा था .

“राजन ….! राजन …..!! ….”

फोन कट गया था !!

……………………..

श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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