गतांक से आगे :-
भाग – ५८
“हमेँ गहरा सदमा लगा है ….महिलाल जी की …इस असामयिक …म्रत्यु पर ….!!” भारी कंठ से पारुल कह रही थी . काम-कोटी का दरबार लगा था . शोक मनाने की मुद्रा मैं बैठी – पारुल ,काम-कोटि की महारानी …एक प्रकार की शोक-सभा मैं आ बैठीं थीं ! “महीलाल जी रियासत के सबसे पुराने कार्यकर्ता थे ! उन का निधन ….?” पारुल की आँखें भर आईं थीं ….गला रुंध गया था ….और हाथ कांपने लगे थे !
शोक के इस आघात को न जाने राजमाता कैसे झेल पाएंगी – सोच रहे थे लोग !
लेकिन पारुल कहीं प्रसन्न थी .. बेहद प्रसन्न ! वह जानती थी कि महीलाल के मरने के बाद वह रियासत की पूर्णतया सर्वेसर्वा थी. महीलाल की आंख का लगा पहरा रियासत से उठ गया था. अब प्रजा उसकी मेहरबानियों पर पलेगी – वह जानती थी.
“रियासत ने महीलाल जी के परिवार को तीन बगीचे .. और अटारी वाली कोठी आभार स्वरुप भेंट की है !” पारुल ने घोषणा की थी.
लोगों ने तालियाँ बजाई थीं. पारुल की प्रशंशा की थी.
“दुःख और शोक में डूबी मै आप लोगों के सामने एक और अमूल्य प्रस्ताव रखने जा रही हूँ !” पारुल ने बातें आगे बधाई थीं “रियासत अब दशहरे का उत्सव नहीं मनाएगी….!” उसने आंख उठा कर लोगों को देखा था. “महीलाल जी के जाने के बाद .. और समय को ध्यान में रखकर हमने यही निर्णय लिया है कि इस बार से हम .. ”
“पुरानापन है ! जाने दो …..!!” लोगों का समवेत स्वर में एक ही मत आया था. “नाहक का खर्च होता है !” उनकी राय थी.
“खर्चे हमारा सर फोड़े दे रहे हैं !” पारुल ने शिकायत की थी. “त्रिभुभन पैलेस की जर्जर हुई काया को .. सम्हालने-बनाने के लिए हमे अकूत धन चाहिए !” पारुल की शिकायत जारी थी. “इत्ता पैसा ..?” उसने जनता के बीच उठे प्रश्न को एक बन्दर की तरह शरारत करने छोड़ दिया था. शोक सभा एक चुप्पी में समाप्त हुई थी.
पारुल का मन तो आया था कि त्रिभुभन पैलेस की मरम्मत का जिम्मा राजन को सौंप दे ! वह खूब कमा रहा था. लेकिन न जाने क्यों अब वह राजन को अपने किसी भी इरादे में साथ न लेना चाहती थी. हाँ ! अगर चन्दन बोंस ..
उसे सहसा ध्यान आया था कि स्पेन जाने के बाद अभी तक चन्दन बोंस का कोई भी फोन न आया था. क्यों ..? क्या चन्दन बोंस जाते ही अपने किये वायदे भूल गया था…..? क्या चन्दन बोंस .. मात्र एक परछाई का ही नाम था ..? क्या चन्दन बोंस .. वह सोचती ही चली जा रही थी.
लेकिन चन्दन बोंस पारुल के ही सपनो में पूरी तरह खोया था.
“खाली-पीली फ़ोन करने का क्या मतलब होगा ..?” चन्दन बोंस ने स्वयं से प्रश्न किया था. “एक बार की मुलाकात .. तो खाली हाथ चलेगी ! मान लेगी पारुल कि .. वह आगंतुक था..! लेकिन हर बार .. बार बार .. खाली हाथ ..?” अफ़सोस में डूबा था चन्दन. उसके पास देने के लिए कुछ था कब ..? लेकिन जो भी दो .. जैसे भी दो ..दो …! अब उसे पारुल को पाना तो जरुरी ही था !
“ये बुलबुला तो फूट गया ……!” चन्दन बोंस के मित्र भोग भगवानी ने अपने दोनों हाथ झाडे थे. “सच मनो चन्दन .. दिस गेम इस ओवर…..!!” उसकी आवाज में निरी निराशा थी.
चन्दन बोंस को जैसे फालिज मार गया था. उसका मित्र भोग भगवानी – जिस के ऊपर उसे गर्व था – आज हारी हारी बात क्यों कर रहा था…….? वह तो बहुत कुछ सोच कर चला था ! वह तो निश्चय कर चुका था कि भोग से .. कुछ लेकर .. कुछ न कुछ लेकर भागेगा ! लेकिन ..
“नो फ्यूचर इन स्पेन ….!” भगवानी ने सूचना दी थी. “कमा लिया जो कमाना था …….!” वह हंसा था. “अब तो हो सकता है कि ..
“तो ..?” चन्दन बोंस ने प्रश्न पूछा था.
“मेने तुम्हे बुलाया ही इसलिए था ….!” भोग भगवानी बता रहा था. “निकलते हैं !” उसने आहिस्ता से कहा था. “इंडिया ..!” उसने घोषणा की थी. “विश्व में और कोई देश आज सुरक्षित नहीं …!” उसका कहना था. “घर वापसी ..”
“लेकिन, यार ……!” चन्दन बोंस घबरा सा गया था. “इंडिया में क्या धरा है…….? वहां से तो लोग .. भाग भाग कर ..”
“लौट गया वक्त .. चन्दन …! चल पड़ा उलटे पैरो ..!” भगवानी बता रहा था. “अब धन भारत जायेगा .. अब धन ..”
“मै नहीं मानता……!” जिद की थी चन्दन ने.
“तो .. एक बात मान जाओ .. सिर्फ एक बात…..!” भगवानी हंसा था.
“कौन सी बात ..?” चन्दन ने सरोकार से पूछा था.
लम्बे पलों तक भोग भगवानी अपने परम मित्र चन्दन को देखता रहा था .. सराहता रहा था .. प्रसन्न होता रहा था …!
“देख, चन्दन……!” भोग उसके समीप खिसक आया था. “हम स्कूल कॉलेज से दोस्त हैं .. दोस्त हैं और रहेंगे ..”
“दोस्ती पर शक क्यों, रे ..?” चन्दन तड़का था.
“इसलिए मित्र .. कि मतलब में – अपने पराए होने में देर नहीं लगती …!” भोग हंसा था. उसने बड़े ही अहतियात के साथ एक फोल्डर खींचा था. फिर फोल्डर को सावधानी से चन्दन के सामने खोल दिया था.
“ये तो .. ये तो .. मेरा और पारुल .. माने महारानी काम-कोटि का चित्र है…..?” गड़बड़ा गया था चन्दन.
“मै अपना कब बता रहा हूँ ….?” हंस रहा था भोग भगवानी. “तेरी तो किस्मत खुल गई, चन्दन …!” वह कहे जा रहा था. “क्या माल है .. क्या कमाल है ..” उसने चन्दन को घूरा था. “साले ! तू – एक आवारा .. और वो महारानी…..! महारानी ऑफ़ काम-कोटि ..? दाना तो फेंक दिया होगा ..?” उसने शरारत पूर्ण आवाज में पूछा था.
“काम की बात कर …..!” चन्दन गंभीर था. उसे आज मजाक बनाता भोग भगवानी बुरा लगा था. “मै .. उनका अतिथि था ..!” उसने गंभीर स्वर में कहा था.
भोग भगवानी झिझक गया था. उसे चन्दन की इस प्रतिक्रिया पर आश्चर्य हुआ था. वह भी अब काम की ही बात कर लेना चाहता था.
“तू कितना जानता है, इन्हें ….?” भोग भगवानी ने एक सीधा प्रश्न किया था.
“आगे बोल …..!” चन्दन बोंस ने मांग की थी.
“यही कि .. अगर मै .. चाहूँ कि ..” वह रुका था. “देख, चन्दन….! मेने काम-कोटि की पूरी खबर ले ली है. मै चाहता हूँ कि .. त्रिभुभन पेलेस को खरीद लूँ .. या लीज पर ले लूँ……!”
“क्यों ..?”
“फाइव स्टार ..!” उसने सीधा उत्तर दिया था. “मै अब व्यापार बदलूँगा. इस बिल्डर की चिकचिक से अलग – लग्ज़री में जाऊंगा …! अगर सौदा पटता है तो पांच परसेंट तेरा….!” भगवानी ने व्यापार की भाषा बोली थी.
“दस परसेंट क्यों नहीं ..?” चन्दन बोंस ने मांग की थी.
दोनों मित्र एक दुसरे को देखते रहे थे .. तौलते रहे थे. भोग भगवानी ने महसूसा था कि चन्दन इतना बेवकूफ नहीं था जितना वो सोचता था. था तो वह ज़ीनिअस – जिसे वो बचपन से जानता था .. लेकिन ..
“डन…..!!” भोग भगवानी एक लम्बे अन्तराल के बाद बोला था.
“बताता हूँ ..!” कहकर चन्दन बोंस ने बात काट दी थी.
चन्दन बोंस को आज अफ़सोस हो रहा था ….! उसको लेकर सबने खूब कमाया .. जी भर कर कमाया .. बस उसी अकेले ने आज तक कौड़ी नहीं कमाई ! कविता के रंग-ढंग वो जानता था. वो जानता था कि कविता उसे फूटी कौड़ी भी न देगी. वह जानता था कि … ..
“पा .. रु ..ल ..!!” चन्दन बोंस की आवाज फोन पर गूंजी थी.
पारुल आल्हाद और आभार से उछल पड़ी थी. उसे चन्दन पर भरोसा हुआ था. उसे चन्दन पर प्यार आया था. वह चन्दन से लिपट जाना चाहती थी ! लेकिन ..
“बोल रही हूँ, हु-जू -र ..!” बड़े ही चाव से बोली थी, पारुल. “अब तक .. कहाँ .. इतने व्यस्त ..?” वह पूछ रही थी. “एक-एक पल .. गिन-गिन कर मै …..बावली हो गई, चन्दन !और ..”
“थोड़ी काम की बात करनी है, डार्लिंग !” चन्दन गंभीर था.
“खैरियत तो है ..?”
“मानो तो .. खुशखबरी है !” चन्दन ने अपने मंजे लहजे में कहा था.
“कहो……!” पारुल प्रसन्न थी.
“बुरा मत मानना पारुल…..! व्यापार की बात है ..! भावनाओं के चक्कर में मत आ जाना ..”
“कहो, भी ..?”
“त्रिभुवन .. पैलेस का ऑफर है …! चाहे लीज़ चाहे सेल डीड !” चन्दन बोंस ने सपाट सौदा सामने रख दिया था.
“कर लो…….!!” पारुल ने बे-रोक-टोक कहा था. उसे जैसे मांगी मुराद मिल गई थी.
“मेरा क्या रहेगा ..?” बेशर्मों की तरह आज चन्दन एक व्यापारी बना था. वह पारुल को भी आज पहचान लेना चाहता था .. जान लेना चाहता था कि पारुल आखिर है क्या चीज़ ..?
“जितना तुम चाहो…..!” पारुल की स्पष्ट आवाज आई थी. “पैलेस .. ले लो .. साथ में मुझे भी ..!!” हंसी थी पारुल. “चन्दन ..!” उसका स्वर बदली था. “आई लव यू डार्लिंग ….!” उसने कहा था. “मै .. और मेरा सब तुम्हारा है !” पारुल ने हँसते-हँसते कहा था.
“आई ऍम ग्रेटफुल डार्लिंग…!” चन्दन कठिनाई से कह पाया था.
वह दंग रह गया था ..!!
क्रमशः
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य