
रानी
कल्पित कथा :-
एक लंबी मछली के आकार की कार गोल्फ क्लब की पोर्टिको मैं आ कर रुकी थी !
मैं खड़ा-खड़ा देख रहा था . एक खूबसूरत गठे बदन वाली यौवना उस कार से बाहर आई थी . जैसे चाँद के पेट से चांदनी पैदा हुई हो ….वह कार से बाहर आ खड़ी हुई थी . कैडी ने उस की किट उठाई थी . सब इम्पोर्टिड था . मैं खड़ा-खड़ा कयास ही लगता रहा था कि ये हसीना थी कौन ? पहले तो उसे यहाँ कभी नहीं देखा था !
“वाह,वाह ! क्या शांट मारा है ….?” वह ताली बजा रही थी . मैं भी मुड कर उसी को देख रहा था . “मुझे रानी कहो ….!” उस ने हाथ मिलाया था . “आप की तारीफ़ ….?” उस का प्रश्न था .
“मेजर मुकुल श्रेष्ठ !” मैंने संक्षेप में कहा था . मैं भ्रमित था. पर वह चली गई थी .
कैडी आनंद ने बाद में बताया था कि अह सेठ नौरंगी लाल मेहता की इकलौती बेटी थी …और अभी-अभी इंग्लेंड से लौटी थी !
“आँख उठा कर तो ….देखलें , हुजूर !” आवाज़ रानी की ही थी . “हम भी तो खड़े हैं …..” बड़े ही मोहक अंदाज़ में वह कह रही थी .
मैं फिर एक बार रानी को हैरानी से देख रहा था !
“टीच मीं ….गोल्फ !” रानी का आग्रह था . “मैं ….म .. म मैं …माने की आई एम् अत्रोसियस !” वह हंसी थी . “कहीं ….बाल जाती है ….तो कहीं ..बल्ला ….!” उस ने जोरों से अट्टहास किया था . उस की हंसी खन-खन करती मेरे अंतर में उतर गई थी !
सच में ही मैं उसे गोल्फ सिखाने लगा था . रानी खूब शरारत करती …मेरा मन लगाती ….मुझे लुभाती ….और फिर अपने घर आने को बुलाती ! मैं अनाम से किन्हीं डरों से डरा-डरा ही रहता ! रानी जैसी बालाओं का पीछा करना मेरा शौक नहीं था !
“छुट्टियों में दार्जलिंग चलते हैं !” रानी का ही आमंत्रण था . “हमारे …रिसौर्ट्स हैं ….माने कि कंपनी के ! वहीँ कुछ दिन मौज कर आते हैं ….?” उस का प्रस्ताव था . “खर्चा सब ….कंपनी का ….!!” वह हंस पड़ी थी .
दार्जलिंग के उस माहौल ने मुझे बहुत मारा ! मोह लिया – मुझे ! भ्रमित किया और रानी के प्रेम-जाल में फंसा दिया ! कब मैं और रानी एक हुए ….और इस एकाकार मैं ….तन से …मन से …और प्राण से एक हुए – मैं नहीं जानता ! लेकिन जब रानी गर्भवती हुई तो मेरी आँख खुली ! फिर मैंने रानी के साथ शादी करने में देर न की !!
पापा – मेरे पापा = माने कि जनरल समर श्रेष्ठ को मैंने सूचना तो दी थी ….पर वो आए नहीं थे . माँ तो थीं नहीं ! अब पापा अपनी ही फिनक में रहते थे ! वह ब्रिगेडियर किशन प्रकाश की बेटी अचला से मेरी शादी कर देना चाहते थे ! और अचला ……
रानी ने अपनी शादी का जश्न खुल कर मनाया था !
और जब अंगद का जन्म हुआ था ….तब तो रानी ने दिल खोल कर खर्च किया था !!
“क्यों मूं लटक रहा है ….?” एक दिन मुझे उदास देख रानी ने पूछा था .
“वो …मेजर कठपालिया आ रहा है !” मैंने मुश्किल से बताया था . “अब मेरा एक रैंक नीचे हो जाएगा ….माने कि कैप्टन ! वेकेंसी …नहीं है …न !” मैं बहुत उदास था .
“द …हैल …विद इट ….!!” रानी गरजी थी . “मैं …न होने दूँगी …ये …!” उस ने कसम जैसी उठाई थी . “कल ही दिल्ली जाती हूँ ! देखती हूँ …..”
और सच में ही रानी दिल्ली जा कर मेरी पोस्टिंग दिल्ली में ही करा लाइ थी ! कर्नल किशोर तो हैरान थे ! सभी ऑफिसर्स दंग थे . लेकिन रानी प्रसन्न थी . और मैं ….? रानी के आभार के नीचे दब-सा गया था !
दिल्ली आ कर तो रानी ने कुछ ऐसा जादू-सा दिया था ….कि …हम दोनों हर पार्टी में होते ….हर शाम ही जश्न मना रहे होते ….और हर दिन ही ऊंचाइयां चढ़ रहे होते …!! अंगद भी बड़ा हो रहा था !
“मुझे अंगद की बहुत चिंता है , डार्लिंग !” एक दिन रानी ने मुझे बताया था . “मैं इस माहौल में उसे बड़ा करना नहीं चाहती !” रानी बता रही थी . “जो भी है …..ठीक है ….पर यहाँ उस का कोई फ्यूचर नहीं ! अब कल फिर हमारी पोस्टिंग आएगी ! फिर भागेंगे ….और फिर ये ….चंद दमडे दे कर ….हमें रिटायर कर देंगे !” रानी ने मेरी आँखों में घूरा था . “पापा झांग से खाली हाथ आए थे . चाय की फैक्ट्री में चपरासी लगे थे . लेकिन मालिक अंग्रेज़ वापस इंग्लैंड जा रहा था . उस ने पापा के नाम सब लिख दिया ! कहा – नौरंगी मैं लौटूंगा ! तुम मुझे सब कुछ लौटाएगा ! तुम कू इनाम ….”
मेरी समझ न आता कि आखिर रानी चाहती क्या थी ….?
“क्या तनखा आती है ….? पेट्रोल का खर्चा पूरा नहीं होता , माई डीयर !” रानी कभी-कभी कोसने बैठ जाती . “बाहर देखो ! फौजी एश करते हैं ! पाकिस्तान को ही ले लो ?” वह मुझे भरपूर निगाहों से घूरती तो मैं चुप ही बना रहता .
“घर खरीदने के लिए …..पापा से पैसे ले लूं ….?”
“नहीं ….!!” मैं साफ़ नांट गया था . “अभी से क्या ….? बना लेंगे ….घर -वर ….!” मैं उखड आया था . “शायद गलती हो गई ….तुमसे ….?” मैंने पहली बार वार किया था !
मैं तो पैसे को कभी से भी महत्वपूर्ण नहीं मानता हूँ !
“पापा ने सब कुछ तय कर दिया है !” रानी ने मुझे हंस कर सूचना दी . “हम विदेश जा रहे हैं . ” वह बता रही थी . “इस नौकरी का झंझट ही छूट जाएगा ! हमारा …अपना घर ….व्यापार … और एक रचा-बसा संसार होगा, मुकुल ….! अंगद की जिन्दगी भी …..”
मैं चौंक पड़ा था ! आज पहली ही बार मेरा तीसरा नेत्र खुला था ! रानी चाहती क्या थी ….? क्यों चाहती थी ….? हमें कमी क्या थी ….जो ……
“क्या है , हमारे बैंक में ….?” रानी ने मुझे पलट कर देखा था तो प्रश्न पूछा था . “जो मिलता है ….खा-पी लेते हैं ! “कल का क्या होगा …..अल्ला जाने ….!!” उस ने हाथ पीटे थे . ” न …बाबा …न ! मैं न मानूंगी , मुकुल ! इस मौके को नहीं छोड़ते , डार्लिंग ! नौकरी भी कोई करने का काम है ….?” उस ने उपहास किया था .
चुपचाप बना मैं कुछ समझने का प्रयत्न कर रहा था ! रानी की तैयारियां लगातार ही चल रहीं थीं . वह एक अतिरिक्त उत्साह से भरी थी . प्रसन्न थी …और एक उमंग की तरह हवा पर लहरा रही थी ! वह अकेली न जाने किन दिवा स्वप्नों के साथ डोल-भाग कर रही थी ….जब कि मेरा तो मन ही मर गया था !
“हमारी फ्लाईट ….फ्राइडे ….सोलह तारीख को है !” रानी मुझे बता रही थी . “शनिवार …..इतवार की छुट्टी है . तुम सोमवार की छुट्टी और ले लेना !” रानी हंसी थी . “इत्ता ही टाइम बहुत है ! हम सैफ पहुँच जाएंगे !” वह बता रही थी .
मैं डर गया था . लग रहा था जैसे मैं किसी भयंकर स्वप्न को जी रहा था ! मेरे दिमाग में रानी का कोई और ही चित्र घूमने लगा था !!
“और हाँ, सुनो मुकुल !” रानी ने मुझे स्नेह पूर्वक पुकारा था . “एक छोटा-सा फेवर ….डार्लिंग !” उस ने मेरी आँखों में देखा था . “फ्राइडे …को ऑफिस टाइम मैं ही ….फ़ाइल ‘डी – वन’ …और ‘डी -टू ‘ की नक़ल कैमरे में उतार लाना !” वह मुझे समझा रही थी . “वो क्या है कि …..’गिव ….एंड …टेक ‘ का सौदा है ! जो हमें मिल रहा है ….कुछ कीमत तो हमें भी देनी होगी ….? डार्लिंग …मुकुल ….बी सपोर्टिंग ….!” उस ने मेरी रान पर हाथ रखा था . वह सतर्क थी . “ये लायल्टी ….देश-भक्ति ….और देश-प्रेम ….लेबर क्लास के लोगों के लिए हैं ….!” अब वो मुझे समझा रही थी . “पापा को देखो ! पूरे विश्व में चाय का व्यापार करते हैं ! उन के लिए तो ……..” रानी आदतन हंस पड़ी थी .
“ठीक कहती हो , डार्लिंग !” मैंने भी मुड कर कहा था . “वी आर ….ब्लडी फूल्स …..!!” मैंने अपने आप को ही कोसा था . “दिन-रात लगे रहते हैं ….! क्या मिलाता है ….? न-ट -स ….!!” मैं रोष में था .
अब रानी प्रसन्न थी ….महा प्रसन्न !!
लेकिन मैं तो भीतर से फुक गया था ! मैं कतरों-कतरों में टूट -टूट कर ….बिखर गया था ! मैं अब समझ गया था कि जिस बशीर बानो की हमें तलाश थी – वह तो मेरे ही घर में मेरे ही साथ रानी बन कर रह रही थी ! और अब एक बेटे की माँ भी थी …अंगद की माँ …मेरे बेटे की माँ …!! और अब बशीर बानो ….फ़ाइल ‘डी -वन ‘ और ‘डी -टू ‘ की फोटो कापी ले उड़ जाना चाहती थी . मैं और अंगद तो उस के लिए वाद की ही बात थे !!
और हाँ ! मैं अब बशीर बानो के निशाने पर था . मैं ये भी जानता था कि बशीर बानो अव्वल नम्बर की लड़ाकू थी ! उस का किया वार खाली न जाता था . उस ने कई असंभव कारनामे किए थे . और अब वह एक और एतिहासिक कारनामा कर डालना चाहती थी ! फ़ाइल …’डी -वन ‘ और ‘डी- टू ‘ में पूरा सर्जीकल स्ट्राइक का मसौदा था ! ‘वी गेट …यू ….एनीवेयर …ओन द ग्लोब ‘ तक का सब सौदा इन फाइलों में था ! और ये थी – मेरे ही पापा जनरल समर श्रेष्ठ की उम्र भर की साधना ! भारतीय सेना की ये एक अनूठी उपलब्धि थी और अब तो जग-जाहिर थी ! बशीर बानो के हाथ आने के बाद तो …..?
मैं अब बशीर बानो की आँखों में एक टार्गेट की तरह जड़ गया था ! हिला नहीं ….कि मारा नहीं …..!!
जो-जो बशीर बानो कहती गई …मैं करता गया ! मैंने पूरी ईमानदारी से काम किया . मैं अब उस का एक जर-खरीद गुलाम था . रात के ठीक एक बजे हम घर को लांक कर सड़क पर थे . हमारी फ्लाईट …दो बजे की थी . अंगद पिछली सीट पर सो रहा था . गाडी बशीर ही चला रही थी . मेरी गर्दन में कैमरा लटका था . बशीर की आँख कैमरे पर ही थी . बशीर ने मुझे घूरा था .
“लाओ ….कैमरा ….!” उस ने मुझे हुक्म दिया . पर मैं नहीं हिला . उस ने गाडी को ब्रेक मारा और दूसरे हाथ से टन्न-से गोली चला दी ! मेरी कनपटी को छू कर गोली गाडी का शीशा तोड़ कर बाहर निकल गई . इस से पहले कि बशीर दूसरा वार करती ….मैंने अंटी मैं छुपी खुखरी निकाली थी ….और उस का दांया हाथ एक ही वार में काट दिया था . “यूं …बास्टर्ड …..!!” बशीर गरजी थी . उस ने दूसरे हाथ से फायर करना ही चाहा था कि मैंने उसे भी काट दिया ! और अब जब बशीर मुझ पर टूट कर पड़ी तो मैंने उस की गर्दन उड़ा डी ! अब क्या बोलती – बशीर …..?
मैं बाहर निकला था तो हमारा पीछा करती कार मुड़ी थी और भाग गई थी ! मैंने बशीर का शव बाहर खींचा था …और बेरहमी से ही सड़क पर फ़ेंक दिया था . कार खून से भरी थी ….और मैं भी खून मैं सना था ! लेकिन मैं सही-सलामत घर लौट आया था !
“पापा ….!” मेरा गला रुंध गया था . “आई ….नीड यू …..पापा ….!” मैं रो पड़ा था !
बे -खबर अंगद सोता ही रहा था ….!!
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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!