पूरी टीम ऑफिस में हाजिर थी। समीर खुश था। टीम के होंसले बुलंद थे। सबकी ऑंखों में ऐवरेस्ट का चित्र जा बैठा था। सब जल्दी में थे कि कब ऐवरेस्ट अभियान आरम्भ हो! लेकिन वक्त को तो अपने पैरों चलना था!

“यहॉं लिखिये अपना नाम!” डेस्क पर बैठी युवती डॉक्यूमेंट्स पूरा कराने लगी थी। समीर – टीम का अगुआ सबसे पहले था। उसने मोटे मोटे अक्षरों में अपना नाम जड़ दिया था। “यहॉं लिखिये – पिता का नाम!” दूसरा आदेश था। समीर ने उस कॉलम में ‘माधुरी’ लिख दिया था। डेस्क पर बैठी युवती ने समीर को घूरा था। “मैंनें कहा – पिता का नाम!” उसने कड़क स्वर में कहा था। “और मैने लिख दिया है मॉं का नाम!” समीर ने भी तल्खी के साथ उत्तर दिया था। “मिस्टर भॉंग खाई है?” युवती बिगड़ गई थी। “मैडम! घास खाकर बैठी हो?” समीर ने भी बिगड़ कर पूछा था।

एक अच्छा खासा संग्राम खड़ा हो गया था। मैडम का पारा आसमान पर था और समीर का सातवें आसमान पर!

“हुआ क्या ..?” ऑफिस की हैड ने आकर पूछा था।

“हमने कहा – पिता का नाम लिखो – ये मॉं का नाम लिख रहे हैं!” मैडम ने शिकायत की थी।

“पिता न हो तो मॉं का ही नाम लिखेंगे!” समीर ने गरज कर कहा था।

बात समझ में आई थी तो समझौता हो गया था। लेकिन टीम के कुछ सदस्यों ने समीर को पलट कर देखा था। समीर तनिक सा छोटा हो गया था। उसे आज पहली बार अपनी मॉं पर रोष आया था। उसने न जाने कहॉं जा बैठे अपने पापा को खूब कोसा था!

“मॉं तो पार्टी में आ रहीं हैं न?” कमल ने समीर का सोच तोड़ा था। कमल के पिता – कपीस पूरी टीम को आज शाम ओबरॉए रॉयल में पार्टी दे रहे थे। उनका उद्देश्य था – सारे टीम के सदस्यों के परिवारों से परिचय! “पापा को तुम जानते हो!” कमल ने प्रसन्न होकर कहा था। “तुम्हारी जान ले लेंगे .. अगर ..”

“मन बिगड़ गया यार!” समीर खिन्न था।

“क्या बिगड़ गया रे! मन कोई दाल है .. जो बिगड़ जायेगा?” कमल ने मजाक किया था। “अइसा छोकरी .. टोकरी .. चलता है यार!”

समीर हँस पड़ा था। कमल भी खुश हो गया था। फिर सोनम चली आई थी! उसकी फरमाइश भी वही थी! “मॉं को मॉं से मिलाना है! नहीं तो मेरी जान ले लेगी!” उसने भी स्पष्ट कहा था। सब शायद जानते थे कि समीर और उसकी मॉं किसी अनाम संकट को झेल रहे थे – दिन रात!

“समीर! मेरा तो बिलकुल मन नहीं है बेटे!” माधुरी ने विनम्र निवेदन किया था। “न हो तो .. तू चला जा!” उनका सुझाव था। “तू तो जानता है कि मैं ..?”

“मजबूरी है मॉं!” समीर ने सीधी बात की थी। “सबका आग्रह है कि आप आएं! और फिर .. आप अकेली होंगी तो मुझे चिंता रहेगी!” समीर ने मॉं को मना लिया था।

एक बेहद साधारण सी साड़ी पहन, मांथे पर छोटी सी बिंदिया लगा और सोलापुरी चप्पलें पहन माधुरी पार्टी में जाने के लिये तैयार हो गई थी। समीर ने मॉं के दैवीय स्वरूप को देखा था तो प्रसन्न हो गया था। ‘कुछ भी क्यों न पहनलें मॉं – उसी में दिखने लगती हैं!’ समीर का अपना मत था। उसे अपनी मॉं का ये दिव्य स्वरूप ही पसन्द था!

पार्टी हॉल को बड़े ही करीने से सजाया गया था। बहुत बड़े बड़े वी आई पी पधार रहे थे। प्रेस के लोग भी पहुँच गये थे। दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार के भी नुमाइंदे आये हुए थे। इस घटना को एक राष्ट्रीय पर्व की तरह मनाया जा रहा था। पूरे देश की किशोर मनीषा का यह एक ऐसा उत्कर्ष था – जहॉं हर कोई सहमत था कि समाज अब किशोरों के भविश्य की ओर ध्यान दे!

आशीर्वााद के साथ साथ बहुत सारे लोगों ने अनुदान भी दिया था। शैव्या – जो अमेरिका में सांसद थीं उनके मित्रों ने तो बढ चढ कर इस ऐवरेस्ट अभियान की प्रसंशा की थी और अनुदान भी दिया था!

बसंत वीर सिंह का तो जवाब ही न था!

भिन्न प्रकार की एक गहमा गहमी से पूरा हॉल लबालब भरा था!

सोनम की मॉं – शैव्या जैसे इस पार्टी की जान थीं, लोग उन्हें घेरे खड़े थे। क्या पत्रकार और क्या मिनिस्टर सब उनके आस पास थे। शैव्या जी अमेरिका में सांसद थीं। बेटी सोनम के आग्रह पर लम्बी छुट्टी लेकर भारत चली आईं थीं।

“मॉं! समीर .. और ..” सोनम ने बीच में बात काट कर कहा था।

शैव्या जी ने पलट कर देखा था। एक सुदर्शन किशोर उनके सामने खड़ा हँस रहा था और साथ खड़ी उसकी मॉं माधुरी, उन्हें अभिभूत कर गई थी। उनकी रूह जैसे प्रसन्न हो गई थी – वह गहक कर बोलींं थीं, “आओ .. आओ .. ! समीर .. माधुरी!” उन्होने बड़े ही प्यार से माधुरी को बाहों में समेट लिया था। “अरे यार! क्या दर्शनीय रूप स्वरूप है रे!” अनायास ही उनके मुँह से निकल गया था। “न जाने क्यों – मैं जब अमेरिका से चली थी तो मन था कि भाारत पहुँच कर ‘सीता-सावित्री’ की तलाश में निकलूँगी। लो! ये तो मिल ही गई!” वह ठहाका मार कर हँसी थी। “बहुत बहुत प्यारी लग रही हो!” उन्होने माधुरी की खुल कर प्रसंशा की थी। “तुम्हारे वो कहॉं हैं?” वह पूछ बैठी थीं।

एक चुप्पी चली आई थी। समीर ने कहीं दूर देखा था। माधुरी नें पलकें ढाल लीं थीं। शैव्या जी ने पलट कर सोनम को देखा था। वह समझ गई थीं – सोनम की ऑंखें पढ़ कर!

सभी जमा लोग आपस में बतियाने लगे थे!

“मैडम! आप अमेरिका कैसे पहुँच गईं ..?” प्रेस ने शैव्या जी का पीछा न छोड़ा था। “आप .. कैसे इतना राइज़ कर गईं ..?” वह जानना चाहते थे।

शैव्या जी कई पलों तक इसी सोच में डूबी रहीं थीं। फिर कुछ सोच कर वह प्रेस की ओर मुड़ी थीं। उनके चेहरे पर एक चमक उठ बैठी थी।

“मान लो कि मैं अब भारत आई हूँ तो – बिहार, अपने गॉंव असोला अवश्य जाउँगी। और वहॉं अपने कच्चे घर में चूल्हे पर रोटी दाल बना कर हम दोनों खाएंगे!” उन्होने साथ खड़े अपने पति को देखा था। “बी ए करके प्राइमरी में मुश्किल से मास्टर लगे थे!” वो बता रही थीं। “और जब मैं ब्याह कर आई थी तो दंग रह गई थी!” उन्होने ऑंखें पसार कर पॉंच सितारा होटल के वैभव को देखा था। “कहॉं से चले हैं हम?” उन्होने कहा था।

“आप अमेरिका में सांसद हैं ..” प्रेस ने पूछना आरम्भ किया था।

“सो व्हॉट ..?” शैव्या जी ने टोक दिया था। “मैं – भारत को नहीं भूलती भइया!” वह बताने लगी थीं। “मैं रोज गीता का पाठ करती हूँ। मैरे आंगन में तुलसी लगी है। मैने अपनी बेटी को भारत में पढ़ाया है। इन्होने .. वही संस्कार दिये हैं बेटी को – जो सीता सावित्री के थे!”

“आप वहॉं .. फिर ..?”

“कहीं भी जाओ भाई! अपनी औकात याद रख्खो – देश धर्म को कभी मत भूलो!” उन्होने नारा जैसा दिया था।

भारत की बात बड़ी हो गई लगी थी। सब लोगों को शैव्या जी बेहद पसंद आई थीं। अब सबकी निगाहें माधुरी पर टिकीं थीं। साधारण और सीधे सादे परिधान में लिपटी माधुरी मांथे पर बिंदिया लगाये किसी अलौकिकता की बात करती लग रही थी।

“आप डॉक्टर माधुरी हैं?” बसंत वीर सिंह पूछ रहे थे। “कहॉं पढाती हैं?” उनका पृश्न था।

“जी, मैं सेंट स्टीफन कॉलेज में फिजिक्स पढाती हूँ!” माधुरी ने बड़ी ही शालीनता के साथ उत्तर दिया था।

“और आपके वो ..?” उनका अगला पृश्न था। लेकिन फिर सम्भल कर बोले थे। “अच्छा अच्छा वो तो ठीक है!” वह विहँसे थे। “आप महान हैं डॉक्टर माधुरी!” उनके शब्द थे।

लगा था जैसे कि लोगों ने स्वीकार कर लिया था कि नारी को भी अकेले रहने का अधिकार था!

लेकिन समीर को संतोष नहीं हुआ था! “मेरे पापा कौन हैं .. कहॉं हैं ..?” वो उन्हें इस जमा भीड़ में भी तलाशता ही रहा था!

क्रमश:

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य

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