कुछ पल होंगे ऐसे भी जब
जलता होगा सूरज
बहती होगी गरम हवा
दूर-दूर तक छांव न होगी
फिर भी चलना होगा!
फिर पुरवाई आएगी
कुछ बादल बरखा लाएँगे
तपती हुई धरा को
तृप्ति का एहसास कराएँगे
हरियाली तब होगी चारों ओर!
बादल जब बरसेंगे ज्यादा
होगा जल ही चारों ओर
हाथ जोड़ तब प्रकृति सारी
करती होगी त्राहि-त्राहि!
बदलेंगे फिर दिन
थोड़ी-थोड़ी ठंडक होगी
मनाएंगे लोग दिवाली!
चक्र यही है जीवन का भी
चलना होगा हर मौसम में
चलना होगा हर मौसम में!
- आशीष वर्मा